शिक्षक बताते हैं कि 1993 में सहायक शिक्षकों की अंतिम भर्ती हुई थी। उसके बाद से अब तक विभाग ने कार्यरत सहायक शिक्षकों को उच्च श्रेणी शिक्षक के वेतनमान का लाभ तो दे दिया, लेकिन किसी को “शिक्षक” पदनाम नहीं मिला। शिक्षकों का कहना है कि प्रदेश में सरकार चाहे जिसकी रही हो, लेकिन उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं गया। इनका कहना है कि प्रदेश में करीब 40 हजार सहायक शिक्षक, पदनाम के लिए संघर्षरत हैं। सरकार को अब सहायक शिक्षकों के पदनाम को लेकर उचित निर्णय ले लेना चाहिए।
सहायक शिक्षक बताते हैं कि 2015 में आयुक्त लोक शिक्षण में तत्कालीन डायरेक्टर राजेश जैन की अध्यक्षता में कमेटी गठित हुई थी। उस वक्त प्रदेश के 28 हजार सहायक शिक्षकों को स्नातक उपाधि धारक पाया गया, जिन्हें सहायक शिक्षक से शिक्षक के पद पर पदोन्नत किया जाना था। लेकिन शासन ने इस रिपोर्ट पर अमल नहीं किया। वो कहते हैं कि प्रदेश के मुख्यमंत्री ने भी कई बार सार्वजनिक सभाओं में सहायक शिक्षकों को शिक्षक पदनाम देने का भरोसा दिलाया लेकिन वो अब तक पूरा नहीं हो पाया।
शिक्षकों ने बताया कि 30 से 35 साल की सेवा देने के बाद भी कोई लाभ नहीं मिल रहा है। वेतनमान जरूर उच्च श्रेणी शिक्षक और व्याख्याता का दिया गया लेकिन पदनाम नहीं मिला। शिक्षकों का कहना है कि लंबे समय तक सेवा देने के बावजूद सहायक शिक्षकों के पदनाम में किसी तरह का परिवर्तन नहीं हुआ। कुछ तो ऐसे अध्यापक हैं जिन्होंने 1985 में उप शिक्षक के पद पर कार्य ग्रहण किया। सालभर बाद सहायक शिक्षक का वेतनमान मिला। जून 2019 को 34 साल की सेवा के बाद सेवानिवृत्त भी हो गए पर पदनाम सहायक शिक्षक ही रहा।