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सतना

मेडिकल कॉलेज की पांच एकड़ जमीन में मिला अतिक्रमण, अब हटाना चुनौती

राजस्व अमले की दो दिन की मशक्कत का परिणाम: आरक्षित जमीन पर दो दर्जन से अधिक कच्चे-पक्के अवैध निर्माण मिले

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सतना. देर आए, दुरुस्त आए…, इस मुहावरे को राजस्व अमले ने दो दिन की कड़ी मशक्कत के बाद चरितार्थ कर दिया। राजस्व अमले शनिवार को मेडिकल कॉलेज के लिए आरक्षित जमीन का सीमांकन करते हुए आरक्षित जमीन की चौहद्दी पत्थर गड़वाकर तय कर दी। प्रशासन द्वारा कराए गए सीमांकन में मेडिकल कॉलेज की लगभग पांच एकड़ जमीन पर अतिक्रमण मिला। जिला प्रशासन के भौतिक सत्यापन में आरक्षित जमीन की चौहद्दी में पश्चिम एवं दक्षिण भाग में ५० से ज्यादा कच्चे-पक्के अवैध निर्माण मिले। इनमें से कुछ मकान में तो लोग परिवार सहित निवासरत हैं। कुछ में बाड़ी लगाकर खेती की जा रही। अतिक्रमण को संरक्षित करते कुछ अतिक्रमणकर्ताओं ने अवैध निर्माण के सामने मंदिरों का निर्माण भी करा लिया है। मेडिकल की जमीन का सीमांकन होने से निर्माण एजेंसी ने राहत की सांस ली है। लेकिन, अब प्रशासन के लिए मेडिकल कॉलेज की जमीन से अतिक्रमणकर्ताओं को बेदखल करना एक बड़ी चुनौती है।

अब आगे…अतिक्रमण हटने के बाद तय होगी ले-आउट की प्लॉनिंग
अफसरों को मेडिकल कॉलेज के लिए आरक्षित जमीन का भौतिक सत्यापन निविदा जारी करने से पहले पूरा कर जमीन को आरक्षित करना था। लेकिन, जिम्मेदार कागज में ही सीमांकन कर रिपोर्ट सरकार को भेजते रहे। परिणाम यह रहा कि राजस्व अमले को प्रोजेक्ट के निर्माण का वर्क आर्डर जारी होने के बाद जमीन तलाशने के लिए पसीना बहाना पड़ रहा। पीआईयू के अधिकारियों ने कहा कि जमीन की चौहद्दी तय हो गई है। अभी अतिक्रमण हटाने का कार्य बाकी है। जब तक जमीन पूरी तरह से अतिक्रमणमुक्त नहीं होगी, वहां किसी भी प्रकार का कार्य संभव नहीं। आरक्षित जमीन से अतिक्रमण हटने के बाद ही जमीन पर लेआउट की प्लॉनिंग की जाएगी। जितना जल्दी अतिक्रमण हटेगा कार्य उतना ही जल्दी चालू हो जाएगा।
दोषी ये भी…१२ साल में एक बोर्ड नहीं लगा पाया चिकित्सा शिक्षा विभाग

मेडिकल कॉलेज की जमीन खुर्दबुर्द होने में चिकित्सा शिक्षा विभाग की भी बड़ी भूमिका है। डोंगरी नईबस्ती की 12 एकड़ जमीन वर्ष 2006 में मेडिकल कॉलेज के लिए आरक्षित की गई थी। लेकिन, इस जमीन को संरक्षित करने चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा किसी प्रकार की पहल नहीं की गई। आलम यह रहा कि जिले के सबसे बड़े प्रोजेक्ट के लिए आरक्षित जमीन दूसरे विभाग लूटते रहे और चिकित्सा शिक्षा विभाग के जिम्मेदार सोते रहे। इसका अनुमान इससे लगाया जा सकता है कि जमीन आरक्षित होने के बाद इस जमीन पर अपनी दावेदारी करने 12 वर्ष में विभाग के अफसर इसका सीमांकन कराकर सुरक्षित करना तो दूर एक हजार रुपए का बोर्ड तक नहीं लगवा पाए।

कागजी तैयारियां दिखाकर करते रहे गुमराह
मेडिकल कॉलेज की मंजूरी से लेकर निर्माण कार्य की निविदा जारी करने तक निर्माण एजेंसी एवं जिम्मेदार अधिकारी कार्यालय में बैठकर कागज में मेडिकल कॉलेज की विस्तृत कार्ययोजना बनाकर सरकार को रिपोर्ट भेजते रहे। मेडिकल कार्य की निविदा जारी होने से पहले जमीन का सीमांकन कर उसे अधिग्रहित करना चाहिए थे, लेकिन निर्माण एजेंसी जमीन पर उतरने की बजाय कागजी रिपोर्ट भेजकर एक साल तक सरकार को भी गुमराह करती रही। इसका खुलासा राज्य सरकार चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा सामाजिक कार्यकर्ता राजीव खरे को मेडिकल कॉलेज के निर्माण कार्य को लेकर दी गई जानकारी में हुआ है।5 नवंबर को जारी पत्र में बताया गया है कि मेडिकल कॉलेज के निर्माण को लेकर निर्माण एजेंसी द्वारा सभी आवश्यक पूर्तियां की जा चुकी हंै। जबकि हकीकत यह है कि 15 नवंबर 2019 तक मेडिकल कॉलेज की जमीन का भौतिक सत्यापन अधिकरारियों द्वारा नहीं कराया गया।
राजस्व अमले के साथ अभद्रता

शनिवार को दूसरे दिन मेडिकल कॉलेज की जमीन के सीमांकन के दौरान जमीन के पश्चिमी भाग में नाप जोख करने पहुंचे राजस्व अमले के साथ अतिक्रमणकर्ताओं ने अभद्रता कर दी। विभाग द्वारा आरिक्षत जमीन पर चूना डालकर अतिक्रमण चिह्नित किया गया। इससे बौखलाए अतिक्रमणकारियों ने कर्मचारियों के साथ गाली-गलौज भी की। हालांकि टीम देर शाम तक सीमांकन में जुटी रही। जमीन की सीमा तय करने के बाद ही लौटी।