26 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

मजदूर दिवस 1 MAY- रोजगार की तलाश में खाली हो गए गांव, बस्तियों में पसरा सन्नाटा

ज्यादातर घरों में लटके हैं ताले, महानगरों में काम की तलाश

2 min read
Google source verification

सतना

image

Deepesh Tiwari

May 01, 2022

rojgar.jpg

,,

सतना। नागौद ब्लॉक के चुनहां गांव की खाली सड़कें व गलियों में पसरा सन्नाटा पलायन की स्याह तस्वीर बयां करता है। शादी-विवाह व खेती किसानी के सीजन में ऐसा सूनापन संभवत: पहली बार देखने को मिल रहा है। इस सीजन में ज्यादातर लोग परदेश से गांव-घर लौट आते थे, लेकिन कोविड के बाद स्थितियां बहुत कुछ बदल गईं हैं। मुख्य मार्ग से चंद कदम दूर मलिन बस्ती है।

वहां अकसर लोग बांस के बर्तन बनाते दिख जाते थे, लेकिन ज्यादातर घरों में ताला लटका है। आसपास के लोगों ने बताया कि यह लोग रोजगार की तलाश में दिल्ली-मुंबई व सूरत चले गए हैं। कुछ ऐसा ही नजारा पड़ोसी गांव सुरदहा की गिरीशपुर बस्ती में देखने को मिला। वहां भी कई घरों में ताले लटके मिले। कुछ लोग तो रोजगार की तलाश में अकेले गए हैं, जबकि कुछ परिवार के साथ बाहर हैं। खेती-किसनी घर की महिलाएं व बच्चे संभालते हैं।

मनरेगा में दौड़ रहीं मशीनें, मजदूर कर रहे पलायन
गांवों से पलायन रोकने व श्रमिकों को स्थानीय स्तर पर रोजगार उपलब्ध कराने के लिए सरकार मनरेगा के जरिए भारी भरकम बजट उपलब्ध कराती है। सरपंच-सचिव व रोजगार सहायक सरकार की मंशा के विपरीत यह राशि ठेकेदारों को सौंप देते हैं, जो मजदूरों की बजाय मशीनों से काम कराते हैं और स्थानीय श्रमिकों को रोजागर की तलाश में दिल्ली - मुंबई जैसे महानगरों का रुख करना पड़ता है।

गांव में काम धंधे नहीं, मनरेगा महज सरकारी ढिंढोरा
लंबे समय तक गुजरात व सउदी अरब में रहे बद्री कुशवाहा पिछले कुछ वर्षों से गांव में ही रह हैं। पलायन की वजह पूछने पर बताया कि घर-परिवार की जिम्मेदारियां हैं। छोटा भाई बाहर है, नहीं तो मैं भी अभी बाहर ही होता। गांव में काम धंधे नहीं बचे। खेती-किसानी के ज्यादातर काम मशीनों से हो जाते हैं।

गांवों से पलायन रोकने सरकार मनरेगा योजना का ढिंढोरा पीटती है, लेकिन इसमें भी ज्यादातर काम मशीनों से हो रहे हैं। भुगतान में देरी व कमीशनबाजी के चलते मजदूर भी इसमें काम नहीं करना चाहते। इससे ज्यादा मजदूरी उन्हें नागौद सतना में मिल जाती है। तत्काल भुगतान भी हो जाता है।

गांव में डेढ़ साल किया काम का इंतजार
कोविड की दूसरी लहर में लॉकडाउन के दौरान परदेश से लौटे प्रवासी मजदूरों को स्थानीय स्तर पर ही रोजगार व प्रशिक्षण दिलाने की बात कही गई थी। सरकार ने सर्वे व पंजीयन भी कराया था, लेकिन हुआ कुछ नहीं। सिद्धनगर निवासी कमलेश कुशवाहा कुछ इसी उम्मीद से डेढ़ साल तक गांव में रहे, लेकिन सरकार से कोई मदद मिलती नहीं दिखी तो दो माह पहले वह फिर गुजरात चले गए। कमलेश ही नहीं गांव के ज्यादातर लोग इन दिनों बाहर हैं।