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mp election 2018: वादा ही रहा रामपथ, डकैतों का खौफ बरकरार

चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र

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सतना

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Sajal Gupta

Nov 11, 2018

mp election 2018: chitrakoot vidhan sabha ground report in hindi

mp election 2018: chitrakoot vidhan sabha ground report in hindi

ब्रजेश चौकसे
सतना. चित्रकूट विधानसभा क्षेत्र। यह जिले के सात विधानसभा क्षेत्रों में इसलिए खास है क्योंकि यहां से उठा एक मुद्दा पूरे प्रदेश के साथ खासकर विंध्य में बड़ा असरकारक हुआ था। वह था, 'राम वन गमन पथÓ। वर्ष 2007 मेें मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस पथ को विकसित करने वादा किया था। उसका असर विंध्य की 29 विधानसभा सीटों पर पड़ा। दोबारा सरकार बनने के बाद वादा पूरा करने 35 करोड़ की योजना और विद्वानों की कमेटी बनी। राम की राह के सर्वे पर तीन करोड़ खर्च भी किए, लेकिन फिर इसे भुला दिया गया। अब राम से की गई यह धोखेबाजी यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है। कांग्रेस इसे भांपकर हवा दे रही है। उसने राम वनगमन पथयात्रा निकाली है और वादा कर रही कि वह इसे विकसित करके दिखाएगी।
सुबह का वक्त है, कामतानाथ मंदिर में दर्शन के बाद मंदाकिनी नदी की ओर बढ़ा। मुख्य सड़क पर आते ही ऑटो वालों ने घेर लिया। बोले-रामघाट चलोगे। दस रुपए सवारी लगेगी। बातचीत शुरू हुई तो बोले-यहां राम ही सब कुछ हैं। राम ही रोजगार हैं और राम ही बेरोजगारी की वजह। क्योंकि, सरकार कुछ करती नहीं। ऑटो चालक राजेश कुमार कहते हैं, कोई सिस्टम नहीं है। दो राज्यों की सीमा पर बसे शहर में दोहरी मार है। उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश पुलिस को 300-300 रुपए महीना देना पड़ता है। कोई काम धंधा है नहीं या तो दुकान खोलो या ऑटो चलाओ। भोपाल में रहकर बीटेक कर रहे हिमांशु त्रिपाठी कहते हैं रामपथ बड़ा मुद्दा है। यदि सरकार इस पर काम कर टूरिस्ट सर्किट बना देती तो रोजगार के अवसर बढ़ जाते। साफ है, यहां राम से ही रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं। वे कहते हैं, पानी, बिजली और सड़क तो सब ठीक है पर यहां डकैतों का खौफ एक बड़ी समस्या है। उनके साथ अंकुर गुप्ता, बलराम पटेल, गंगाराम और भोला सिंह भी बोलने लगते हैं। शाम होते ही सती अनसुइया (सतना की ओर) नहीं जा सकते। उधर जाने की सोचने से भी डर लगता है। शहर के बाहर निकलते ही डकैत उठा ले जाते हैं। अब भी लोग इस खौफ के साए में रहने को मजबूर हैं। यहां सड़क बनाने से लेकर अन्य काम तो हुए लेकिन बड़े वादे धरे रह गए।
दोपहर का वक्त है। बाजार से मंदाकिनी नदी के किनारे पहुंचा। इच्छा हुई उस घाट पर जाकर आचमन करूं जहां भगवान राम ने 14 वर्ष के वनवास में से साढ़े 12 साल काटे। लेकिन, घाट पर जाकर कदम ठिठक गए। मंदाकिनी का पानी काला था। उत्तरप्रदेश के कई नाले इसमें मिल रहे हैं। श्रद्धालु निराश होकर न लौटें, इस कारण पानी रोककर रखा गया है। नाविक जगदीश कहार कहते हैं, साफ-सफाई पर सरकार ध्यान नहीं देती। कहने को दोनों तरफ रामभक्तों की सरकार है, लेकिन आप घाट और नदी का हश्र देख लो। मैं मध्यप्रदेश के हिस्से वाले चित्रकूट में रहता हूं, लेकिन यहां व्यवस्थाएं नहीं हैं। इस कारण बाजार करने भी उतरप्रदेश जाना पड़ता है। नाव वालों के लिए नियम हैं, लेकिन पालन नहीं होता। मनमर्जी से पैसे लेते हैं। घाटों पर गंदगी की भरमार है। नाविक घनश्याम कहार, भागीरथ प्रसाद और मेहरबान कहते हैं कि राम-राम जपकर सत्ता में तो आ गए लेकिन राम की नगरी तक का कोई भला नहीं किया। एसआइसीएस चित्रकूट के छात्र विजय पटेल, नीरज द्विवेदी, अंकुर गुप्ता, धीरज सिंह, बलराम विश्वकर्मा और कुलदीप कहते हैं कि नदी की सफाई, रामपथ और डकैतों के भय से मुक्त करने का वादा करने वालों को ही वोट देंगे। रामपथ गमन मार्ग क्यों? इस पर इन युवाओं का कहना है कि इसी से रोजगार के अवसर पैदा हो सकते हैं। क्योंकि यहां और कोई उद्योग नहीं हैं।
यह हैं प्रमुख समस्याएं
डकैतों का खौफ बना रहना।
नदी की साफ-सफाई नहीं।
निचली बस्ती में पानी की समस्या।
उपचार के लिए सतना या फिर उत्तरप्रदेश जाना पड़ता है।
नाव चालक मनमर्जी से वसूली। किराया 150 रुपए सवारी तय, लेकिन पालन नहीं।
घाट और धार्मिक स्थलों का
रख-रखाव ठीक नहीं।
उपचुनाव में हार-जीत का अंतर

52677 मत मिले भाजपा के शंकर दयाल त्रिपाठी को
66810 मत मिले कांग्रेस के निलांशु चतुर्वेदी को
14133 जीत का अंतर
2455 मत मिले नोटा को
यह सबसे बड़े मुद्दे
क्षेत्र के लिए डकैती, रामपथ और मंदाकिनी की सफाई बड़ा मुद्दा है।
वादा तोड़ा तो जनता ने मुंह मोड़ा
राधेलाल और गजराज सिंह कहते हैं कि चित्रकूट वर्ष 1957 से कांग्रेस का गढ़ रहा है। यहां ६० साल में सिर्फ एक बार भाजपा वर्ष 2008 के चुनाव में जीती थी। वह भी शायद रामपथ के वादे के कारण, लेकिन वादा पूरा नहीं हुआ तो फिर 2013 में हार गई।
विधायक रहे जनता के बीच
इस सीट पर लंबे अर्से से कांग्रेस का कब्जा है। यहां से तीन बार कांग्रेस के प्रेम सिंह विधायक चुने गए। उनके निधन के बाद 2017 में उपचुनाव हुए, जिसमें कांग्रेस के उम्मीदवार निलांशु चतुर्वेदी जीते। वे क्षेत्र में सक्रिय रहे। जबकि हार के बाद भाजपा प्रत्याशी शंकर दयाल त्रिपाठी की सक्रियता कम रही। भाजपा ने इस बार वर्ष 2008 में प्रेम सिंह को हराकर विधायक बने सुरेंद्र सिंह गहरवार को मैदान में उतारा है। वे क्षेत्र में सक्रिय भी हैं।