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विंध्य के वीर सपूत…जिन्होंने 1957 की क्रांति में छुड़ाए थे अंगेे्रजों के छक्के

कोठी के मनकहरी गांव में जन्मे अमर शहीद ठाकुर रणमत सिंह ने नयागांव स्थित अंग्रेजों की छावनी पर बोला था हमला

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thakur ranmat singh freedom fighter

thakur ranmat singh freedom fighter

कोठी. विंध्य के वीर सपूत ठाकुर रणमत सिंह के जन्म स्थल को संरक्षित करने पर किसी का ध्यान नहीं है। जबकि, वह 1857 की क्रांति में उन्होंने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिए थे। ठाकुर रणमत सिंह ने कई बार अंग्रेजों से लोहा लिया और अपने युद्ध कौशल व पराक्रम के दम पर जीत हासिल की। पहला युद्ध नागौद के पास भेलसांय में अंग्रेजों से लड़ा और जीत हासिल की। इसके बाद नयागांव में अंग्रेजों की छावनी में हमला बोला था। चित्रकूट हनुमान धारा में साधु-संतों के साथ मिलकर भी उन्होंने अंग्रेजों से युद्ध लड़ा। इसमें कई साधु-संतों वीरगति का प्राप्त हुए थे। ठाकुर रणमत सिंह गंभीर रूप से घायल हुए, लेकिन अंग्रेजों के हाथ नहीं आए।

टूटा फूटा जर्जर किले का प्रवेश द्वार

इसी प्रकार वह क्रांति की मशाल लिए अंग्रेजों से युद्ध लड़ते रहे और 1859 में छलपूर्वक अंग्रेजों ने उनके साथ क्या किया, इस पर दोमत हैं। कुछ लोग मानते हैं कि उन्हें बांदा जेल ले जाकर फांसी दे दी गई थी, जबकि कुछ लोगों मानना है कि उन्हें आगरा जेल ले जाया गया था। ऐसे वीर सपूत योद्धा की जन्मस्थली आज जमीदोज होने की कगार में हैं, आज महज टूटा फूटा जर्जर केवल किले का प्रवेश द्वार ही शेष है। एक ओर देखा जाए तो कोठी, सतना, रीवा में अमर शहीद ठाकुर रणमत सिंह के नाम स्कूल, कॉलेज, खेल के मैदान, देखने को तो मिल जाएंगे, उनकी प्रतिमा भी स्थापित मिल जाएंगी, लेकिन उनकी जन्मस्थली को संरक्षित करने की ओर किसी का ध्यान आकृष्ट नहीं हो रहा है।

भव्य स्मारक और संग्रहालय की मांग
मनकहरी स्थित उनके जन्मस्थली की आखरी निशानी के तौर पर एक जर्जर प्रवेश द्वार ही बचा है। सतना चित्रकूट स्टेट हाइवे से 18 किमी दूर कोठी तहसील की इस पवित्र भूमि पर ठाकुर रणमत सिंह का जन्म हुआ था। सतना कोठी रोड से मनकहरी जाने वाले मार्ग पर मनकहरी प्रवेश द्वार तो बना दिया गया, लेकिन जन्मस्थली स्थित प्रवेश द्वार को संरक्षित करना किसी ने मुनासिब नहीं समझा। खंडहर हो चुके एतिहासिक प्रवेश द्वार के अंदर प्राथमिक पाठशाला संचालित है। स्थानीय लोग यहां भव्य स्मारक व संग्रहालय बनाए जाने की मांग कर रहे हैं। ताकि, उनके बलिदान को अलंकृति किया जा सके और आगे आने वाली पीढ़ी उनकी वीरता के बारे में जान सके।