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यहां जानिए कहां से फैला दुनिया में फेक न्यूज का जाल

सासका नाम के खोजी पत्रकार जो फेक न्यूज उद्योग पर रिसर्च कर रहे हैं। उनका मानना है कि मैसिडोनिया एक ऐसा देश है जहां फेक न्यूज तैयार होने के साथ उसकी खपत भी होती है।

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यहां जानिए कहां से फैला दुनिया में फेक न्यूज का जाल

सासका नाम के खोजी पत्रकार जो फेक न्यूज उद्योग पर रिसर्च कर रहे हैं। उनका मानना है कि मैसिडोनिया एक ऐसा देश है जहां फेक न्यूज तैयार होने के साथ उसकी खपत भी होती है। स्थानीय मीडिया पूरी तरह बिका हुआ है। आलम ये है कि मैसिडोनियन लोगों को देश के बारे में खबरें फेसबुक और छोटी वेबसाइट चलाने वाले लोगों से ही मिलती हैं। इन खबरों पर रोक लगाने वाला कोई नहीं है जिसका नतीजा है कि बीस लाख की आबादी वाला देश उन्हीं खबरों पर भरोसा करता है। ऐसी खबरें लोकतांत्रित व्यवस्था को खतरे में डालती हैं।

फेक न्यूज पूरी दुनिया के लिए चुनौती बनी हुई है और इससे निपटने में सबको पसीने आ रहे हैं। 2016 में अमरीकी राष्ट्रपति चुनाव के दौरान इसका बाजार तेजी के साथ बढ़ा और अब मैसिडोनिया को इससे दो चार होना पड़ रहा है। मैसिडोनिया का संवैधानिक नाम उत्तरी मैसिडोनिया करने के लिए जनमत संग्रह की स्थिति बनी है। प्रधानमंत्री जोरान जेव और उनके ग्रीक समकक्ष एलेक्सिस तिसप्रास भी तैयार हैं। हालांकि यहां के लोगों और स्थानीय भाषा को मैसिडोनियन के नाम से ही जाना जाएगा।

मैसिडोनिया छोटा देश है जिसकी आबादी करीब बीस लाख है और बेहद गरीब देश है। मैसिडोनिया के संविधान का प्रारूप बनाने वाले लजोंबिर फ्रकोस्कि का कहना है कि किसी भी देश की जनता शांति और विकास चाहती है और मैसिडोनियावासी भी इसी की उम्मीद करते हैं। हालांकि लोगों को जनमत संग्रह में भाग लेने से रोकने के लिए सुरक्षाकर्मी, विरोधी ताकतें और फर्जी खबरें या सोशल मीडिया पर अफवाह इसके लिए पूरी ताकत लगा रहे हैं। फेक न्यूज का सबसे अधिक इस्तेमाल इस छोटे से देश में ही होता है। इसी का नतीजा है कि जनता फर्जी खबरों के जाल में फंसकर गलत फैसला करती है।

पढ़े लिखे युवाओं की टीम

इंटरनेट मार्केटिंग कंसलटेंट मिर्को सेसेलकोस्कि लोगों को इंटरनेट से पैसा कमाने का गुर सिखाते हैं। वे कहते हैं कि पढ़े लिखे युवा खबरों और सूचनाओं को बेहतर ढंग से प्रसारित करने में माहिर हैं। ये वही युवा हैं जिन्होंने अमरीकी राष्ट्रपति डॉनल्ड टं्रप को चुनाव जीतने में मदद की थी। वे बताते हैं कि इनके बहुत सारे स्टूडेंट कंप्यूटर साइंस के जानकार थे जिनके पास नौकरी नहीं थी। ये लोग कार, हैल्थ फिटनेस और सेलिब्रिटीज के बारे में खबरें लिखकर अपना खर्च चलाते थे। जब इन्हें ट्रंप के पक्ष में खबरें चलाने को कहा गया तो ये इनके लिए बेहतर मौका था। सभी ने इस मौके को भुनाया और आज दुनियाभर में यही हो रहा है।

एक खबर की दस तरह की हैडिंग बनाते हैं

इंटरनेट से शब्दों और खबरों का चयन करने के बाद उसको दस तरह के शीर्षक (हैडिंग) देकर उसकी गंभीरता जांची जाती थी जिससे वे आक्रामक और रोचक बन सके। फेसबुक को खबरों के प्रचार प्रसार का सबसे आसान माध्यम मानते हैं और खबरों पर काम करने वाले लोग इससे अच्छा पैसा भी कमाते हैं। बीस वर्ष से कम उम्र के युवा इस ओर अधिक दिलचस्पी दिखाते हैं क्योंकि उन्हें बखूबी पता होता है कि इंटरनेट यूजर कैसी परिस्थिति में किन चीजों को पढऩा या देखना पंसद करते हैं। प्लेटफॉर्म पर खबरों के आने के बाद शुरू होता है लाइक और शेयर का खेल जिससे कडिय़ां आपस में जुड़ती हैं और मैसेज व पोस्ट एक से दूसरे स्थान या फिर एक देश से दूसरे देश तक फैलते हैं।

अमरीका में बैठ भारत में फेक न्यूज रोकेंगी

कोमल लहरी भारतीय मूल की अमरीकी नागरिक हैं। हाल ही वाट्सऐप कंपनी के सीईओ क्रिस डेनियल ने इन्हें भारत के लिए वाट्सएप का ग्रिवांस अफसर नियुक्त किया है। केंद्रीय कानून मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने मॉब लिंचिंग और फेक न्यूज के बढ़ते मामलों को देखते हुए इस बारे में वाट्सऐप सीईओ से बात की थी। ये अमरीका से ही रहकर भारत में वाट्सऐप पर प्रसारित हो रही सूचनाओं पर कड़ी नजर रखेंगी। कोमल वाट्सऐप इंक में मार्च 2018 से ग्लोबल कस्टमर ऑपरेशंस एंड लोकलाइजेशन की सीनियर डायरेक्टर हैं। इससे पहले फेसबुक में प्रोडक्ट एंड प्लानिंग ऑपरेशंस विभाग में डायरेक्टर के तौर पर काम कर चुकी हैं। इन्हें मजबूत नेतृत्व वाली महिला मानते हैं। राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सोशल मीडिया से जुड़ी रणनीति बनाने में माहिर। इन्होंने बी-कॉम पुणे यूनिवर्सिटी जबकि इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट डेवलपमेंट एंड रिसर्च पुणे से एमबीए किया है।