Miracle Of Science: आज के इस समय में विज्ञान बहुत ही विकसित हो चुका है। विकसित विज्ञान की वजह से कई ऐसी चीज़ें भी संभव हो गई है जो किसी करिश्मे से कम नहीं लगती। विज्ञान का इसी तरह का करिश्मा हाल ही में देखने को मिला।
समय के साथ सबकुछ बदल जाता है। यह बात विज्ञान पर भी लागू होती है। समय के साथ विज्ञान बहुत विकसित हो गया है। विज्ञान के विकास का असर हर जगह देखने को मिला है। विकसित होते विज्ञान से आज ऐसी चीज़ीं भी संभव हो गई हैं जो एक समय में असंभव लगती थी। ऐसे में इन्हें किसी करिश्मे से कम नहीं माना जा सकता। आजकल समय-समय पर विज्ञान का कमाल देखने को मिलता है। हाल ही में विज्ञान का एक और कमाल देखने को मिला, जब 12 साल से पैरालाइज़्ड शख्स में ऐसा बदलाव देखने को मिला जो किसी करिश्मे से कम नहीं है।
दुर्घटना में पैरालाइज़्ड हुआ शख्स, विज्ञान के कमाल से फिर से लगा चलने-फिरने
नीदरलैंड (Netherlands) के लीडेन (Leiden) में रहने वाला 40 वर्षीय शख्स जॉन ओस्काम (John Oskam) पिछले 12 साल से पैरालाइज़्ड है। इसकी वजह है एक मोटरबाइक एक्सीडेंट। इस एक्सीडेंट की वजह से जॉन का चलना-फिरना पूरी तरह से बंद हो गया था। पर अब विज्ञान के कमाल की वजह से न सिर्फ जॉन फिर से चल-फिर सकता है, बल्कि सीढ़ियाँ भी आसानी से चढ़ लेता है।
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कैसे हुआ कमाल?
जॉन को चलने-फिरने के काबिल बनाने में डिजिटल इम्प्लांट (Digital Implant) की अहम भूमिका है। मस्तिष्क प्रौद्योगिकी में प्रगति के चलते जॉन को अपने पैरों को हिलाने में मदद मिली, जिससे उसका चलना-फिरना संभव हो सकता। रिपोर्ट के अनुसार स्विट्जरलैंड (Switzerland) में इकोले पॉलीटेक्निक फेडरेल डी लॉजेन (ईपीएफएल) के न्यूरोसाइंटिस्ट ने एक वायरलेस डिजिटल ब्रिज बनाया है। इस डिजिटल वायरलेस ब्रिज की मदद से इंसान के मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बीच खोए हुए कनेक्शन को वापस पाया जा सकता है। इसी से जॉन का चलना-फिरना संभव हो सका।
डिजिटल इम्प्लांट की मदद से भेजी जाती है कमांड
इस बारे में डॉक्टरों का कहना है कि रीढ़ की हड्डी की डिजिटल मरम्मत से उन्हें नए तंत्रिका कनेक्शन विकसित होने के बारे में पता चला। ऐसे में उन्होंने ब्रेन-कंप्यूटर इंटरफेस टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल करके मस्तिष्क और रीढ़ की हड्डी के बीच एक वायरलेस इंटरफेस बनाया, जिससे विचारों को कार्रवाई में बदला जाता है। चलने के लिए मस्तिष्क के कंट्रोल के लिए रीढ़ की हड्डी का जो पार्ट ज़िम्मेदार होता है, उसे डिजिटल इम्प्लांट की मदद से एक कमांड भेजी जाती है। इससे चलने-फिरने में मदद मिलती है।
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