विज्ञान और टेक्नोलॉजी

Patrika Explainer: क्या है Pegasus सॉफ्टवेयर जिस पर भारतीय संसद में मचा हंगामा

सॉफ्टवेयर और एडवांस टूल्स बनाने वाली कंपनी NSO के अनुसार पैगासस (Pegasus) सॉफ्टवेयर सिर्फ सरकार या सरकारी एजेंसियों को ही दिया जाता है।

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नई दिल्ली। भारतीय संसद का मानसून सत्र आरंभ हो चुका है। इस सत्र में अब तक जिस मुद्दे पर सर्वाधिक चर्चा की गई है, वह है पेगासस (Pegasus) नाम के स्पाईवेयर के जरिए देश के बड़े राजनेताओं, पत्रकारों और अधिकारियों की जासूसी क्यों की गई? परन्तु क्या आप जानते हैं कि पेगासस क्या है और किस तरह काम करता है?

पेगासस को बनाने वाली कंपनी की ये है कहानी
वर्ष 2010 में इजरायल में एक टेक कंपनी की नींव रखी गई थी। इस कंपनी को फाउंडर्स के नाम पर एनएसओ (NSO) कहा गया। कंपनी का उद्देश्य था उन्नत किस्म के सॉफ्टवेयर बनाना। दुनिया भर में कई देशों की सरकारें, बहुत ही एडवांस किस्म के सॉफ्टवेयर्स और टूल्स बनाने वाली इस कंपनी की ग्राहक हैं। इसी एनएसओ ने एक स्पाईवेयर बनाया, जिसे बाद में ग्रीक माइथोलॉजिकल स्टोरीज के नाम पर पैगासस नाम दिया गया।

इस सॉफ्टवेयर की सबसे बड़ी खास बात यह है कि इसे किसी भी तरह से रोका नहीं जा सकता। इसे रिमोटली किसी भी स्मार्टफोन में इंस्टॉल किया जा सकता है और उसके बाद उस स्मार्टफोन की निगरानी की जा सकती है। सॉफ्टवेयर बनाने वाली कंपनी एनएसओ के अनुसार यह सॉफ्टवेयर सिर्फ सरकार या सरकारी एजेंसियों को ही दिया जाता है।

आतंकियों पर नजर रखने के लिए बनाया गया था यह टूल
कंपनी द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार इसे आतंकवादियों पर नजर रखने और आतंकी हमलों को रोकने के लिए बनाया गया था। एनएसओ के अनुसार यह एक मास सर्विलांस टूल नहीं है बल्कि चुनिंदा लोगों पर नजर रखने के लिए इसे विकसित किया गया है। यह टारगेट फोन को कंट्रोल करके उससे जुड़ा डेटा का एक्सेस टूल यूज करने वाले को देता है। इसके जरिए फोन कॉल सुने जा सकते हैं, फोन के कैमरे तथा माइक्रोफोन का भी प्रयोग किया जा सकता है। हालांकि बाद में इस तरह की भी कई खबरें पढ़ने को मिली कि इसकी खूबियों को देखते हुए कुछ देशों की सरकारों ने इसे राजनीतिक विरोधियों की जासूसी करने के लिए भी उपयोग किया।

इस सॉफ्टवेयर या टूल की वास्तविक कीमत का किसी को अंदाजा नहीं है परन्तु अनुमान के अनुसार इसकी कीमत लाखों डॉलर (या भारतीय मुद्रा में करोड़ों रुपए) तक हो सकती है। एक्सपर्ट्स के अनुसार यह केवल एक टूल नहीं है वरन एक पूरा सिस्टम है जिसे चलाने के लिए बहुत ही खास ट्रेनिंग की भी जरूरत होती है जो पेगासस की निर्माता कंपनी द्वारा उपलब्ध करवाई जाती है।

सबसे पहले 2016 में सामने आया पहला केस
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार वर्ष 2016 में संयुक्त अरब अमीरात के एक मानवाधिकार कार्यकर्ता अहमद मंसूर को उनके स्मार्टफोन पर कुछ संदेश भेजे गए थे। इन संदेशों को देख कर उन्हें कुछ गलत लगा और उन्होंने टोरंटो यूनिवर्सिटी में 'सिटिजन लैब' तथा एक साइबर सुरक्षा कंपनी 'लुक आउट' के एक्सपर्ट्स को दिखाया। दोनों ने ही मंसूर के अनुमान को सही बताते हुए एक मैलवेयर का पता लगाया। उन्होंने ही इसे पैगासस का नाम दिया।

आश्चर्य की बात थी कि इस मैलवेयर ने एप्पल स्मार्टफोन की सिक्योरिटी को भी धता बताते हुए उसे अपने कंट्रोल में ले लिया। हालांकि बाद में एप्पल ने इसके लिए अपडेट जारी करते हुए अपने फोन की सिक्योरिटी को और मजबूत कर दिया। इसके बाद इस सॉफ्टवेयर और इंजरायली कंपनी के साथ कई नए विवाद जुड़ते चले गए।

वर्ष 2019 में फेसबुक ने एनएसओ पर आरोप लगाया
टेक कंपनियों में संभवतया फेसबुक पहली कंपनी थी जिसने एनएसओ पर कानूनी कार्यवाही की। फेसबुक ने कंपनी पर आरोप लगाया कि कंपनी ने वॉट्सऐप के जरिए अपने सॉफ्टवेयर को फैलाया। फेसबुक ने यह भी कहा कि जिनके फोन हैक हुए उनमें अधिकतर पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता थे। विवाद यही नहीं रुके वरन यह भी कहा गया कि सऊदी पत्रकार जमाल खशोग्जी की हत्या से पहले उनके फोन की जासूसी भी इसी सॉफ्टवेयर के जरिए की गई थी। मैक्सिको सहित कई अन्य देशों की सरकारों पर भी इस सॉफ्टवेयर के जरिए राजनैतिक जासूसी करने का आरोप लग चुका है।

Updated on:
20 Jul 2021 02:46 pm
Published on:
20 Jul 2021 01:54 pm
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