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बरसते पानी का भी नहीं पड़ा असर, भक्तों ने भीगते हुए निकाली शोभा यात्रा

जैन समाज ने मनाया राष्ट्रीय संत विद्या सागर महाराज का दीक्षा दिवस महोत्सव

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सीहोर

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Sunil Sharma

Jul 18, 2018

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जैन समाज ने मनाया राष्ट्रीय संत विद्या सागर महाराज का दीक्षा दिवस महोत्सव

सीहोर। राष्ट्रीय संत विद्या सागर महाराज के 51 वें दीक्षा दिवस महोत्सव पर भारी बारिश के बाद भी भक्तों ने भक्ति भाव से ओतप्रोत हो भजन कीर्तन के साथ शोभा यात्रा निकाली। शोभा यात्रा में भक्त नृत्य करते हुए साथ चल रहे थे।
इसके पहले राष्ट्रीय संत विद्या सागर महाराज के 51वें दीक्षा दिवस महोत्सव का धार्मिक अनुष्ठान के साथ प्रारंभ हुआ।

सुबह श्रीजी के अभिषेक शांति धारा नित्य नियम पूजा अर्चनाकर आचार्य विद्या सागर विधान व विश्वशांति महायज्ञ संपन्न हुआ। इस अवसर पर इंद्र इंद्राणी के रूप में श्रावकों ने भक्ति भाव से पूजा अर्चना कर अनुष्ठान संपन्न किया। तत्पश्चात एक शोभा यात्रा नगर के प्रमुख मार्गो से निकाली। भारी वर्षा के चलते भी भक्तों ने भक्ति भाव से ओतप्रोत हो भजन कीर्तन के साथ नृत्य करते हुए भक्त यात्रा में साथ साथ चल रहे थे।

जीवन दर्शन पर आधारित नृत्य

दिन धार्मिक अनुष्ठान के साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं संध्या को महाआरती एवं महिला मंडल द्वारा आचार्य गुरूवर के जीवन दर्शन पर आधारित नृत्य नाटिका व प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस अवसर पर भक्तों ने पृभावना के रूप में मेवा मिष्ठान व उपहार के रूप में पूजा अर्चना से संबंधित सामग्री का भी वितरण किया ।

हाईस्कूल के बाद ले लिया ब्रम्हचर्य
आचार्य विद्यासागर जी का जन्म 10 अक्टूबर 1946, शरद पूर्णिमा को कर्नाटक के बेलगांव जिले के सद्लगा ग्राम में हुआ था। उनके पिता मल्लप्पा व मां श्री मति ने उनका नाम विद्याधर रखा था। कन्नड़ भाषा में हाईस्कूल तक अध्ययन करने के बाद विद्याधर ने 1967 में आचार्य देशभूषण जी महाराज से ब्रम्हचर्य व्रत ले लिया। इसके बाद जो कठिन साधना का दौर शुरू हुआ तो आचार्यश्री ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा...। उनके तपोबल की आभा में हर वस्तु उनके चरणों में समर्पित होती चली गई।

ऐसे बने विद्या के सागर
कठिन साधना का मार्ग पार करते हुए आचार्यश्री ने महज 22 वर्ष की उम्र में 30 जून 1968 को अजमेर में आचार्य ज्ञानसागर महाराज से मुनि दीक्षा ली। गुरुवर ने उन्हें विद्याधर से मुनि विद्यासागर बनाया। 22 नवंबर 1972 को अजमेर में ही गुरुवार ने आचार्य की उपाधि देकर उन्हें मुनि विद्यासागर से आचार्य विद्यासागर बना दिया।