10 दिसंबर 2025,

बुधवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

यहां मौत के बाद मुर्दे को नसीब नहीं होती है जगह

जानिए क्यों होता है ऐसा

2 min read
Google source verification

सीहोर

image

Anil Kumar

Jul 23, 2022

श्मशान

श्मशान

अनिल मालवीय की रिपोट...
सीहोर. इस दुनिया में जन्म लिया है तो एक दिन मरना निश्चित है। कहते हैं कि मरने के बाद अच्छी जगह नसीब हो जाएं तो बहुत बड़ी बात रहती है, लेकिन जिले में एक गांव ऐसा जहां मरने के बाद मुर्दे को जलाने जगह नसीब नहीं होती है। यहां तीन किमी दूर मुर्दे को लेकर जाना पड़ता है, तब जाकर उसका अंतिम संस्कार हो पाता है। यह सिस्टम की लापरवाही को उजागर करता है।

हम बात कर रहे हैं जिले के आष्टा विकासखंड के चार सौ की आबादी वाले बड़ी झिकड़ी गांव की। मेहतवाड़ा से सात किमी दूर बड़ी झिकड़ी गांव के श्मशान में टीनशेड नहीं बना है। ग्रामीण सर्दी, गर्मी के मौसम में तो किसी की मौत होने पर अंत्येष्टी कर देते हैं पर बारिश के चार महीने दिक्कत आती है। बारिश में किसी की मौत हुई तो टीनशेड की सुविधा नहीं होने से अंतिम संस्कार करना एक बड़़ी चुनौती बनता है। कई बार चद्दर के सहारे अंत्येष्टी करना पड़ती है, जबकि बारिश की रफ्तार ज्यादा रही तो संभव नहीं हो पाता है। शनिवार को भी कुछ ऐसा ही हुआ। गांव में एक वृद्ध महिला की मौत हो गई, लेकिन बारिश ज्यादा होने से ग्रामीणों के सामने बड़ी परेशानी खड़ी हो गई। ग्रामीणों ने बारिश थमने काफी देर इंतजार किया,जब बंद नहीं हुई तो दूसरी जगह शव का ले जाना पड़ा।

नहीं हुई सुनवाई
ग्रामीण गांव से तीन किमी दूर कीचड़ से सने रास्ते पर पैदल चलकर सोनकच्छ तहसील के बरदरी गांव के श्मशान में मृत महिला का शव ले गए और अंतिम संस्कार किया। ग्रामीणों ने बताया कि बारिश के मौसम में कई बार ऐसी ही स्थिति बनती है। गांव के श्मशान में टीनशेड बनाने की लंबें समय से मांग की जा रही है, लेकिन आज तक पूरी नहीं हुई है। इससे लोगों में आक्रोश देखा जा रहा है। उन्होंने चेतावनी दी है कि जल्द ही समस्या दूर नहीं हुई तो धरना, प्रदर्शन या फिर आंदोलन करने जैसा कदम उठाना पड़ेगा। आष्टा विकासखंंड के कई गांव में यही हाल आसानी से देखे जा सकते हैं। बड़ी बात यह है कि कुछ साल पहले तक श्मशान की जगह लंबी चौड़ी हुआ करती थी, उस पर भी दबंग लोगों ने कब्जा कर लिया है। इससे जगह का दायरा सिमट गया है, ऊपर से श्मशान में बैठने के लिए कोई व्यवस्था है और न ही टीनशेड बनाया गया है। आष्टा के आसपास जिन गांव के श्मशान में टीनशेड नहीं है, वहां के लोग बारिश में आष्टा श्मशान में शव लाकर अंत्येष्टी करते हैं। इस तरह से पिछले कई वर्षो से होता चला आ रहा है बावजूद कोई ध्यान नहीं दे रहा है।