सीहोर. शहर में कई ऐसे विकास कार्य है जिनके लिए कागजी कार्रवाई तो महीनों से चल रही है, लेकिन यह विकास कार्य धरातल पर उतर नहीं पा रहे है। चाहे सैकड़ाखेड़ी सड़क का मामला हो या फिर दोराहा से भोपाल नाका तक बनने वाले बायपास मार्ग का।
निर्माण कार्य की स्वीकृति के बाद वित्तीय स्वीकृति, निविदा आमंत्रण जैसी कागजी कार्रवाई पूर्ण करने के बाद भी इन निर्माण कार्यो का श्रीगणेश नहीं हो सका है। अब भी यह विकास कार्य कागजों में ही सिमटे हुए है। निर्माण कार्यो को वास्तविक धरातल पर उतरने में होने वाली देरी के पीछे विभागीय कार्रवाई सबसे बड़ा कारण मानी जा रही है। जनप्रतिनिधियों की घोषणाओं के बाद उन घोषणाओं को अमली जामा पहनाना अधिकारियों का काम होता है।
बजट की स्वीकृति होने के बाद तकनीकी स्वीकृति और निविदा आमंत्रण जैसे कार्य विभागीय अधिकारियों के भरोसे होते है, लेकिन इन कार्यो को इतनी सुस्त रफ्तार से किया जाता है कि घोषणा के छह महीने से सालभर बाद निर्माण कार्य प्रारंभ हो पाते है। निर्माण कार्य चाहे लोक निर्माण विभाग के अंतर्गत आता हो या नगर पालिका के। उन्हें जमीन तक पहुंचने में कम से कम साल भर का समय लगता है।