Pandit Pradeep Mishra Controversy: अक्सर सुर्खियों में रहने वाले पंडित प्रदीप मिश्रा ने एक बार फिर से माफी मांगी ली है। आइए इसकी वजह जानते हैं...
Pandit Pradeep Mishra Controversy: इंटरनेशनल कथावाचक और कुबेरश्वर धाम के मुख्य पंडित प्रदीप मिश्रा भी अक्सर अपने बयानों के कारण सुर्खियों में बने रहते हैं। उन्होंने ने हाल ही में भगवान चित्रगुप्त पर एक बयान दे दिया था। जिस पर कायस्थ समाज के लोगों ने नाराजगी जताई थी। इसके बाद सीहोर वाले प्रदीप मिश्रा को माफी मांगनी पड़ी।
पंडित प्रदीप मिश्रा ने कहा कि ऐसा नहीं है कि किसी समाज या किसी अन्य व्यक्ति को कोई बात कही गई हो। देवताओं का क्रम था। शिव महापुराण की कथा महाराष्ट्र में चल रही थी। जो सोशल मीडिया पर चल रही है। उसमें यमराज और चित्रगुप्त और भगवान शिव की भक्ति का प्रसंग चल रहा था। उसमें भी यदि किसी व्यक्ति विशेष को समाज को ऐसा लगा हो कि हम ऐसी वाणी बोल गए हो मैं क्षमा चाहता हूं। किसी के हृदय को ठेस पहुंचाना कभी शिवमहापुराण नहीं कहती। शिवमहापुराण हमेशा का जगत का कल्याण का कार्य करती है और जगत कल्याण की बात करती है। फिर भी मेरी वाणी से या शिवमहापुराण के शब्द से किसी भी समाज को किसी भी वर्ण को किसी व्यक्ति को ठेस पहुंची है तो क्षमा चाहता हूं।
पत्रिका ने पंडित प्रदीप मिश्रा से सवाल किया कि आखिर अंतराष्ट्रीय स्तर के कथावाचक को बार-बार क्यों माफी मांगनी पड़ रही है। चाहे राधा-रानी का विषय हो, होली वाला विषय। जिस पर सीहोर वाले प्रदीप मिश्रा ने जवाब देते हुए कहा कि देखिए अगर शास्त्रों का कोई भी प्रसंग उठाएंगे तो ब्रह्मवैवर्त पुराण उठाएंगे तो राधा-रानी का प्रसंग का पढ़ने को मिलेगा। हम लोग जो पुराणों और शास्त्रों में अध्यन करते हैं। वहीं हमलोग सम्मुख में कहते हैं। पर हो सकता है। कई लोगों को वो चीजें स्मरण या पढ़ने में नहीं आती तो उन्हें लगता है कि ये हो ही नहीं सकता। पर अभी के जो प्रसंग हैं या जो मूल्य प्रसंग हैं।
आगे मिश्रा ने कहा देखिए एक वक्ता है। वक्ता अगर अपनी व्यास सीट से कोई बात कह रहा है तो वह उसके अंदर की बात भी सामने प्रस्तुत करता है कि उसके अंदर के भाव को क्या हैं। परंतु कोई किसी के हृदय को ठेस पहुंचाना या किसी को गलत कहना ये किसी वक्त के लिए नहीं है। या किसी के व्यासपीठ के लिए नहीं है। कायस्थ समाज भी हमारी है। हम तो चारों वर्णों को अपना मानकर चलते हैं। ब्राह्मण हो, क्षत्रिय हो, शुद्र हो। किसी की समाज के लिए आजतक ने व्यासपीठ ने कभी गलत नहीं कहा। चाहे पूर्व की व्याख्यन उठाकर देखेंगे तो सभी समाजों का सम्मान किया है व्यासपीठ ने। अगर फिर भी किसी समाज को हमारी वाणी से ठेस पहुंची है तो क्षमा चाहता हूं।