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बेटा पत्थर दिल तो क्या… वो तो मां है, सलामती के लिए रखा व्रत

दो वृद्धाओं ने रखा निर्जला व्रत, मोहल्ले में जाकर की पूजा

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Santosh Dubey

Aug 24, 2016

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संतोष दुबे, सिवनी. किसी ने सच ही कहा है पूत कपूत हो सकता है, लेकिन माता कुमाता नहीं हो सकती। यह बात चरितार्थ करती हैं वृद्धाश्रम में रह रही महिलाएं। जो बेटे के तिरस्कार के बावजूद कई वर्षों से निर्जला व्रत रखकर उनके लम्बी उम्र की कामना कर रही हैं। उसे बेटे के लिए जिसने मां को कभी उम्मीद तो नहीं रही होगी कि जिस बेटों को उसने नौ माह कोख में रखा, लालन-पालन किया, खुद भूखी रहकर उससका पेट भरा। उसी की ठोकर से आज दर-दर भटक रही है। बेटे का दिल तो पत्थर का हो गया, लेकिन मां पत्थर का दिल कहां से लाए। ये मां वृद्धाश्रम में रहकर भी अपने पुत्र की सलामती, स्वास्थ्य और लम्बी आयु के लिए मंगलवार को हलछठ व्रत रखा।

नगर के बारापत्थर क्षेत्र स्थित स्नेह सदन वृद्धाश्रम में रहने वाली चंद्राबाई पति स्व. दादूराम साहू (76) निवासी झिडिय़ा पलारी और लीलाबाई प्रजापति (77) निवासी भोंगाखेड़ा ने निर्जला व्रत रखा। वृद्धाश्रम के समीप रहने वाले के घर जहां अन्य महिलाएं मिलकर हलछठ की पूजा के लिए एकत्रित हुईं वहां दोनों वृद्धाएं पूजन करने पहुंची और विधि-विधान से पूजा की।
वृद्धा लीलाबाई प्रजापति ने बताया कि उनकी एक पुत्री और दो पुत्र हैं। पांच एकड़ खेती है। घर में कलह होने पर पिछले चार साल से वह वृद्धाश्रम में रह रही हैं। उन्होंने आगे कहा कि संतानें हमारा ख्याल रखती तो यह नौबत ही क्यों आती? बच्चें कैसे भी निकल जाए लेकिन बच्चे जहां है, जैसे हैं अच्छे से रहे। हलछठ में भगवान बलराम से हम यहीं चाहते हैं।

इसी तरह से अपनी संतान की सलामती के लिए व्रत रख रही नेत्रहीन चंद्राबाई साहू ने बताया कि हम अपना कत्र्तव्य नहीं भूलेंगे भले ही बच्चे हमें भूल जाएं। उन्होंने बड़े ही दु:खी मन से कहा कि उनके तीन पुत्र हैं। पैतृक घर में वह छोटे बेटा-बहू के साथ रहती थीं लेकिन बेटा-बहू ने मारपीट कर घर से निकलने मजबूर कर दिया। वह पिछले सात माह से वृद्धाश्रम में हैं। दो बेटे हैं एक छिंदवाड़ा में और दूसरा नागपुर में है। दोनों आर्थिक रूप से मदद करते रहते हैं। खैर खबर लेने आते हैं। पूजन की सामग्री के लिए इन दोनों बेटों ने ही रुपए दिए हैं। बेटा बहू की हरकतों से दिल तो टूटा है लेकिन किसी भी मां की आत्मा अपने बच्चों की सालमती के लिए अभी भी ईश्वर के सामने हाथ जोडऩे से पीछे नहीं रहती है। इसलिए पुत्रों की सलामती के लिए व्रत रखा है।

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