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करंट से दोनों हाथ कटे, फिर सीखा ऑटो चलाना… ये है हीरालाल की कहानी

कुदरत के कहर ने बचपन में ही दोनों हाथों को छीन लिया। धीरे- धीरे परिवार में आर्थिक समस्याओं का पहाड़ तैयार होने लगा, लेकिन संघर्ष से पीछे नहीं हटा।

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Shubham Baghel

Oct 25, 2016

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शहडोल। कुदरत के कहर ने बचपन में ही दोनों हाथों को छीन लिया। धीरे- धीरे परिवार में आर्थिक समस्याओं का पहाड़ तैयार होने लगा, लेकिन संघर्ष से पीछे नहीं हटा। पहले गांव में ही खेती किसानी शुरू की, लेकिन हाथ न होने के कारण सफल नहीं हो सका। बाद में तमाम चुनौतियों को पछाड़ते हुए ऑटो चलाना सीखा और अब खुद के पैरों पर खड़ा होकर ऑटो के माध्यम से सवारियों को गतंत्व तक पहुंचा रहा है।

कुछ ऐसे ही प्रेरणादायी संघर्ष की कहानी है मुख्यालय से सटे गांव चाका निवासी हीरालाल महरा की। बचपन में करंट की चपेट में आने के बाद डॉक्टरों ने दोनों हाथ काट दिया था। धीरे- धीरे समय बीतता गया और परिवार में आर्थिक समस्याएं आ गई। पीडित हीरालाल ने गांव में ही खेती शुरू की।



एक साल में सीखा ऑटो चलाना
इस दौरान हाथ न होने के कारण दूसरे लोगों पर निर्भर रहना पड़ता था। जिसके कारण खेती में सफल नहीं हो सका। अतिशयोक्ति की बात तो यह है कि कुदरत के इतने कहर के बाद भी खुद का स्वाभिमान नहीं खोया और फिर दोबारा कोशिश की। लगभग एक साल की कड़ी मेहनत के बाद युवक ने असानी से ऑटो चलाना सीखा।

कभी नहीं हुआ हादसा
स्थिति यह है कि अब पीडि़त हीरालाल महरा खुद की ऑटो को चलाकर सवारियों को गतंत्व तक पहुंचाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि बिना हाथ के ऑटो चलाने के बाद भी तीन सालों के दौरान ऑटो से कोई भी हादसा नहीं हुआ है। ऑटो को सड़कों में दौड़ाने के लिए किसी तरह से पार्टस में छेडख़ानी भी नहीं की है।

बिना हाथ के करता है साइन, लिखता है नाम
इतना ही नहीं, दोनों हाथ न होने के बाद भी हीरालाल दस्तावेजों में साइन करता है और नाम भी लिखता है। हीरालाल सुबह से ऑटो लेकर निकल जाता है। हीरालाल की मानें तो दिनभर में लगभग 50 से अधिक सवारियों को गंतत्व तक पहुंचाता है। इस दौरान लगभग पांच सौ से अधिक रूपए हर दिन कमाता है।

सोमवार को हीरालाल गांधी चौक से फर्राटा भर रहा था, तभी यातायात पुलिस ने सुरक्षा के मद्देनजर रोककर दस्तावेजों की जांच पड़ताल करते हुए चालानी कार्रवाई कर रही थी। मामले की जानकारी आईजी डीके आर्य तक पहुंची तो हीरालाल के हौसले को प्रोत्साहित करते हुए दोबारा वाहन न चलाने की हिदायत देकर छोड़ दिया गया।

भीख मांगने से बेहतर है मेहनत करना
बकौल हीरालाल- 'बचपन में तीसरी कक्षा में दोनों हाथ काट दिए गए थे। हर कोई कहता था अब कुछ नहीं कर सकता। पहले खेती किसानी शुरू की, लेकिन सहारा नहीं मिलने से सफल नहीं हो सका। पूरे परिवार में आर्थिक समस्या आने लगी, लेकिन कभी भिक्षावृत्ति नहीं की। खुद की पैरों पर खड़ा होकर संघर्ष किया। पूरे एक साल तक अकेले में वाहन चलाना सीखा। कई बार असफल हुआ, लोग देखकर हसते थे लेकिन हार नहीं माना और एक साल के भीतर ऑटो चलाना सीख गया। अब पत्नी और बच्चों के साथ खुद की ऑटो खरीदकर परिवार का गुजर बसर कर रहा हूं।'

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