बकौल हीरालाल- 'बचपन में तीसरी कक्षा में दोनों हाथ काट दिए गए थे। हर कोई कहता था अब कुछ नहीं कर सकता। पहले खेती किसानी शुरू की, लेकिन सहारा नहीं मिलने से सफल नहीं हो सका। पूरे परिवार में आर्थिक समस्या आने लगी, लेकिन कभी भिक्षावृत्ति नहीं की। खुद की पैरों पर खड़ा होकर संघर्ष किया। पूरे एक साल तक अकेले में वाहन चलाना सीखा। कई बार असफल हुआ, लोग देखकर हसते थे लेकिन हार नहीं माना और एक साल के भीतर ऑटो चलाना सीख गया। अब पत्नी और बच्चों के साथ खुद की ऑटो खरीदकर परिवार का गुजर बसर कर रहा हूं।'