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भयावह हकीकत : बीमार मासूमों पर अंधविश्वास का कहर

जानकर आप भी हैरान हो जाएंगे

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भयावह हकीकत : बीमार मासूमों पर अंधविश्वास का कहर

@शुभम बघेल

शहडोल- आदिवासी अंचलों में अंधविश्वास की भयावह हकीकत है। यहां बुखार और दर्द से तड़पते मासूम को परिजन गर्म लोहे से दाग देते हैं। बीमारी की हालत में परिजन मासूमों को इलाज के लिए अस्पताल लेकर नहीं पहुंचते हैं। कभी तांत्रिक के पास ले जाकर टोना टोटका कराते हैं तो कभी गर्म लोहे से पूरे शरीर को जला दिया जाता है।

दागने से बच्चों के शरीर में इंफेक्शन फैल रहा है। हर दो दिन के अंतराल में एक प्रकरण जिला अस्पताल पहुंच रहा है। डॉक्टरों की मानें तो ये मासूम के लिए बेहद ही खतरनाक है। कई मर्तबा जान भी जा सकती है। परिवार और समाज के बड़े बुजुर्गों का मानना है कि दागने से दर्द और बीमारी खत्म हो जाती है। सरकारी अमले के तमाम जागरुकता प्रयासों के बाद भी कोई प्रभावी सुधार नहीं आ रहा है। हकीकत यह है कि

गांवों में यह प्रचलन खत्म ही नहीं हो रहा है

लगातार डॉक्टरों के पास पहुंच रहे इस तरह के मामलों में मैदानी अमले की भी लापरवाही उजागर हो रही है। मैदानी अमला ग्रामीणों को सेवाएं मुहैया कराने में नाकाम रहा है। ये सीधी-सीधी स्वास्थ्य महकमे की नाकामी है। डॉक्टरों की मानें तो जिले के आदिवासी गांवों से इस तरह के मामले सबसे ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। जिला अस्पताल प्रबंधन के अनुसार हर दो दिन में दागने (गर्म लोहे से जलाना) के मामले आ रहे हैं। इसमें सबसे ज्यादा आदिवासी समुदाय के बच्चे शामिल हैं। अस्पताल प्रबंधन ने कई परिजनों को चेताया भी है।


48 दिन के मासूम को 16 बार दागा

सीने में दर्द और सांस लेने में दिक्कत होने की वजह से परिजन डॉक्टर से न मिलकर मासूम को लोहे के हंसिया से दाग दिए। परिजनों ने मासूम के पेट में 16 बार गर्म लोहे से दागा। अस्पताल प्रबंधन के अनुसार जयसिंहनगर गिरईखुर्द निवासी सुहाना कंवर (45 दिन) के सीने में दर्द होने पर दादी से गर्म लोहे से आंका है। बताया गया कि मां बाहर गई हुई थी तभी बच्चे को दर्द उठा। तत्काल इलाज की व्यवस्था न होने पर परिजनों ने आंकना सही समझा और पेट में बच्चे के दाग दिया।


पेट में दर्द तो दाग दिया शरीर

हाल ही में उमरिया से रेफर होकर पहुंचे रामप्रताप के बेटे को भी इलाज की बजाय परिजनों ने गर्म लोहे से दाग दिया था। बच्चे को दागने की वजह से शरीर में इंफेक्शन फैल गया था। बाद में परिजन इलाज के लिए जिला अस्पताल लेकर पहुंचे थे। परिजनों के अनुसार बच्चे के पीठ में दर्द था। डॉक्टरों को भी काफी दिखाया था लेकिन सुधार नहीं हुआ, जिसके बाद परिजनों ने आंक दिया था।

दर्द हो या लकवा सबका एक ही इलाज

आदिवासी अंचलों में स्थिति यह है कि वैद्य गर्म लोहे की सरिया और हंसिया से आंककर दर्द से लेकर लकवा और गांठ तक का इलाज कर रहे हैं। मासूमों के अलावा बड़ों के साथ भी ऐसे मामले अस्पताल पहुंच रहे हैं। इस तरह से इलाज वाले मानते हैं कि ऐसा करने से पूरी तरह बीमारी ठीक हो जाती है।


दर्द की दवा गर्म हंसिया से दागना

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जिला अस्पताल के डॉक्टरों के अनुसार हाल ही में इस तरह के मामलों को लेकर रिपोर्ट भी बनाई थी। जिसमें परिजनों का कहना था कि लोहे की हंसिया को गर्म करके शरीर को जलाया जाता है। जिस अंग में दर्द होता है, वहीं पर दाग (आंकना) देते हैं। बुजुर्गों का मानना है कि ऐसा करने से दर्द खत्म हो जाता है। नाम न छापने की शर्त पर महिला ने बताया कि घर के बड़े बुजुर्गों का दबाव था। बुजुर्गों का तर्क था कि इलाज से पहले दागने से ठीक हो जाएगा। दबाव में आकर मजबूरी में मासूम को गर्म लोहे से दगवाना पड़ा।

एक्सपर्ट व्यू : शरीर में इंफेक्शन से मौत का खतरा

जिला अस्पताल के डॉ धर्मेंन्द्र द्विवेदी के अनुसार बच्चों के बीमारी की स्थिति में दागना बेहद गंभीर प्रथा है। आदिवासी अंचलों में अक्सर इस तरह के मामले सामने आते हैं। बच्चों के शरीर में दागने से इंफेक्शन तक का खतरा रहता है। इससे बच्चे की मौत भी संभव है। गांवों में अभी भी अंधविश्वास कायम है, जबकि ऐसी स्थिति में परिजनों को नजदीकी स्वास्थ्य केन्द्र की सहायता लेनी चाहिए।