
बड़ी खबर- गर्भ में नहीं बना दो बच्चों का ब्रेन, मेढ़क की तरह तैयार हो रहा था सिर का हिस्सा
शहडोल- गर्भकाल में अनदेखी और मैदानी स्वास्थ्य अमले की लापरवाही कोख में पलने वाले बच्चों की जिंदगी के लिए खतरा साबित हो रही है। गर्भ में बच्चों का सिर का हिस्सा और ब्रेन ही तैयार नहीं हो रहा है। जिला अस्पताल के डॉक्टरों ने हाल ही में दो केस डाइग्नोस किए हैं। डॉक्टरों की मानें तो जिला अस्पताल पहुंचे दोनों मामले अजब गजब थे।
बच्चों का सिर नहीं बना था और धड़ का हिस्सा विकसित हो रहा था। इतना ही नहीं गर्भ में पल रहे बच्चों के सिर का हिस्सा मेढक के सिर की तरह डेवलप हो रहा था, आंखे भी मेढक की तरह तैयार हो रही थी। दोनों मामलों में प्रसूताओं की जान को भी खतरा था। बाद में डॉक्टरों ने जांच के बाद परिजनों को गर्भपात की सलाह दी। आश्चर्य की बात तो यह है कि दोनों मामले शहरीय क्षेत्र के थे। जब शहरीय क्षेत्र में स्वास्थ्य सिस्टम के ऐसे हालात हैं तो ग्रामीण अंचलों की हकीकत बेहद गंभीर होगी।
हर 5 दिन में अस्पताल में एक केस
जिला अस्पताल के डॉक्टरों की मानें तो गर्भ में बच्चों का सिर और ब्रेन न बनने के कई प्रकरण आते हैं। हर 5 दिन के अंतराल में ऐसे मामले अस्पताल पहुंचते हैं। किसी का सिर का हिस्सा नहीं बनता है तो किसी का ब्रेन ही नहीं रहता है। 99 फीसदी मामलों में डॉक्टर गर्भपात की ही सलाह देते हैं। डॉक्टरों की मानें तो इस तरह के सबसे ज्यादा मामले आदिवासी बाहुल गांवों से जिला अस्पताल पहुंचते हैं। कई मामले ऐसे भी पहुंचते हैं, जहां पैदा होते ही नवजात अपंग हो जाते हैं या फिर श्रवणबाधित हो जाते हैं। आदिवासी अंचलों से सबसे ज्यादा मामले आते हैं।
शहर से सटे गांवों में केस डाइग्नोस
जिला अस्पताल के रिकार्ड के अनुसार हाल ही में दो केस को डाइग्नोस किया गया है। इसमें एक महिला शहर से सटे छतवई गांव की है तो दूसरी महिला मुख्यालय से लगे गांव उधिया की है। दोनों प्रसूताओं के गर्भ में पल रहे बच्चों का सिर का हिस्सा न बनकर धड़ का हिस्सा विकसित हो रहा था। इसके अलावा ग्रामीण अंचलों से अक्सर इस तरह प्रकरण आते हैं। कई मामलों में तो बच्चे अपंग रहते हैं और कुछ मामलों में सुन भी नहीं पाते हैं।
एक्सपर्ट व्यू: साबुत अनाज और हरी सब्जियां बेहद जरूरी
जिला अस्पताल शहडोल के रेडियोलॉजिस्ट डॉक्टर पंजक श्रीवास्तव कहते हैं, हां हाल ही में दो प्रकरण इस तरह के पहुंचे थे। जिन्हे डाइग्लोस करके गर्भपात की सलाह दी गई है। गर्भकाल में देखभाल की बेहद जरुरत होती है। आयरन और फोलिक की दवाईयां समय पर नहीं ली जाती हैं।
सामान्य महिला को आहार में 21 सौ कैलोरी की जरुरत होती है, जबकि गर्भकाल में 25 सौ कैलोरी की जरुरत होती है। हरी पत्तेदार सब्जियां तो गर्भकाल में बेहद जरूरी हैं। सब्जी में लोह, एंटी ऑक्सीडेंट और फालिक एसिड होता है, जिससे गर्भ में पल रहे बच्चे को मदद मिलती है। शहर और ग्रामीण अंचलों में गर्भ के काफी समय बाद फालिक की दवाईयां और देखभाल शुरू की जाती है, जबकि ये पहले से ही जरूरी होता है। फालिक और पोषण आहार न मिलने से यह स्थिति बनती है कि कभी सिर नहीं बन रहा तो कोई अपंग पैदा हो रहा।
पत्रिका व्यू: आखिर कब तक कागजों में योजनाएं
प्रसूताओं के लिए सरकार तमाम योजनाएं चला रही हैं। प्रसूताओं को बेहतर इलाज और स्वास्थ्य सुविधाएं देने के नाम पर करोड़ों रुपए खर्च किया जा रहा है लेकिन मैदानी हकीकत एकदम विपरीत है। कागजों में सर्वे हो जाता है और प्रसूताओं तक पोषण आहार पहुंच जाता है। मैदानी अधिकारियों की अनदेखी से योजनाओं का लाभ प्रसूताओं तक नहीं पहुंच पाता है, सिर्फ कागजी घोड़े दौड़ाए जाते हैं। आखिर कब तक अधिकारियों की अनदेखी और कागजों में योजनाओं का लाभ चलता रहेगा।
Published on:
25 Jun 2018 05:40 pm
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