
शहडोल- सफल होने के लिए कड़ी मेहनत, और इरादे की जरूरत होती है। अगर ये दो चीज हैं तो फिर आपको सफल होने से कोई नहीं रोक सकता। डिंडोरी जिले के पाटनगढ़ गांव के आदिवासी कलाकार भज्जू श्याम की कहानी भी कुछ ऐसी ही है। मध्यप्रदेश के एक छोटे गांव से निकलकर भज्जू श्याम ने अपनी सफलताओं को सात समुंदर पार तक पहुंचा दिया।
भज्जू श्याम की कामयाबी
46 साल के भज्जू श्याम ने आदिवासी समुदाय गोंड आर्टिस्ट के रूप में प्रदेश में ही नही बल्कि देश और विदेश में भी अपनी एक अलग ही पहचान बनाई हैं। अपनी गोंड पेंटिंग के जरिए यूरोप में भी प्रसिद्धि हासिल कर चुके हैं। भज्जू श्याम के कई चित्र किताब का स्वरुप ले चुके हैं। द लंदन जंगल बुक 5 विदेशी भाषाओं में छप चुकी है। इन किताबों को भारत और कई देशों (नीदरलैंड, जर्मनी, इंग्लैंड, इटली, और फ्रांस) में प्रदर्शित कर चुके हैं। भज्जू श्याम की पेंटिंग की दुनिया में अलग ही पहचान बनी है।
आसान नहीं था यहां तक पहुंचना
ज्यादातर कामयाब लोगों के पीछे संघर्ष की कहानी भी छिपी होती है। भज्जू श्याम के लिए भी यहां तक पहुंचना इतना आसान नहीं था एक गरीब परिवार के भज्जू ने अपने करियर में काफी स्ट्रगल किया है। जिसके बाद उन्हें सफलता मिली है।
भज्जू श्याम का जन्म 1971 में एक गरीब आदिवासी परिवार में हुआ था। उन दिनों उनके परिवार की माली हालत ऐसी नहीं थी कि उनकी मामूली इच्छाएं भी पूरी हो सकें। घर खुशहाल रखने का और कोई संसाधन नहीं था। भज्जू श्याम की मां घर की दीवारों पर पारंपरिक चित्र बनाया करती थीं और दीवार के उन भागों पर जहां उनकी मां के हाथ नहीं पहुंच पाते थे, भज्जू श्याम अपनी मां की मदद करते थे। भज्जू श्याम अमरकंटक के आसपास कुछ दिनो तक पौधे रोपते रहे। उससे भी जिंदगी कहां बसर होने वाली थी। आगे की सोचने लगे। उन दिनों वो पंद्रह-सोलह साल के थे। और फिर एक दिन 16 साल की उम्र में भज्जू श्याम ने भोपाल की ओर रुख कर दिया।
जब अचानक पहुंच गए भोपाल
अचानक एक दिन वह रोजी-रोटी की तलाश में भोपाल पहुंच गए। कहीं ठीक ठाक काम नहीं मिला तो रात में चौकीदारी का भी काम किया। उसी दौरान साल 1993 में चाचा जनगढ़ सिंह श्याम उनके करियर के लिए टर्निंग प्वाइंट साबित हुए। जनगढ़ श्याम उस वक्त भारत भवन में बतौर आदिवासी चित्रकार काम कर रहे थे। उन्होंने भज्जू श्याम को नौकरी का भरोसा दिया। चाचा भी तब तक गोंड कलाकारी में नाम कमा चुके थे, उन्होंने भज्जू श्याम के अंदर के कलाकार को परख लिया। और भज्जू के कला को निखारा, संवारा और एक दिन वो देश के मशहूर कलाकार बन गए। 1998 तक भज्जू श्याम इंटरनेशनल लेवल पर पहुंच चुके थे। उसी समय दिल्ली की एक प्रदर्शनी में उनकी पांच पेंटिंग बिकीं, जिससे बारह सौ रुपए की कमाई हुई। इस कमाई के बाद भज्जू श्याम को बहुत खुशी हुई थी।
सफलता मिली तो फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा
एक बार सफलता की सीढ़ी पर चढऩा शुरू किया तो भज्जू श्याम ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। देश में तो उनकी शानदार पेंटिंग की प्रदर्शनी तो लगती ही रही। पेरिस और लंदन तक की धमक पहुंच गई। लंदन में द जंगल बुक की 30 हजार प्रतियां बिक गईं। ये किताब 5 विदेशी भाषाओं में प्रकाशित भी हो चुकी है।
जब भज्जू सिंह श्याम साल 2001 में लंदन से लौटे तो अपनी 8 किताबों का संपादन किया। और सैकड़ों की संख्या में पेंटिंग्स बनाई। पेरिस में एक प्रदर्शनी के दौरान उनके गोंड चित्र को खूब सराहा गया। उनकी पेंटिंग कई प्रदर्शनियों का हिस्सा बने। भज्जू श्याम की एक और विशेषता है। वो विदेश से लौटने के बाद वहां के अनुभवों पर अबतक सैकड़ों कहानियां लिख चुके हैं।
ये भी जानिए
डिंडौरी जिले के ही पाटनगढ से ही आदिवासी पेंटिंग के जनक जनगण सिंह श्याम आते हैं। जिनके नाम से मध्यप्रदेश सरकार हर साल पुरस्कार भी प्रदान करती है। भज्जू उन्हीं के भतीजे हैं। भज्जू सिंह श्याम को पुरस्कार की घोषणा के साथ ही वो खुश हैं और निरंतर अपने काम में जुटे हुए हैं।
मिलेगा पद्मश्री अवॉर्ड
आदिवासी कलाकार भज्जू श्याम को पद्मश्री अवॉर्ड देने की घोषणा की गई है। जिसके बाद उनके परिवार में खुशी की लहर है। भज्जू श्याम इन दिनों आगामी तीन फरवरी से हांगकांग में व्यक्तिगत सोलो शो की तैयारी मेंजुटे हुये हैं।
Published on:
31 Jan 2018 05:37 pm
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