1- सिर दर्द – ज्योतिषशास्त्र के अनुसार जन्म कुंडली में अगर चंद्र 11, 12, 1,2 भाव में नीच का हो और पाप प्रभाव में हो, या सूर्य अथवा राहु के साथ हो तो मस्तिष्क पीड़ा रहती है।
2- डिप्रेशन या तनाव- चंद्र जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थान में शनि के साथ हो। शनि का प्रभाव दीर्घ अवधि तक फल देने वाला माना जाता है तथा चंद्र और शनि का मिलन उस घातक विष के समान प्रभाव रखने वाला होता है जो धीरे-धीरे करके मारता है। शनि नसों का कारक होता है। इन दोनों ग्रहों का अशुभ स्थान पर मिलन परिणाम अवसाद व तनाव उत्पन्न करता है।
3- भय व घबराहट- चंद्र व चतुर्थ भाव का मालिक अष्टम स्थान में हो, लग्नेश निर्बल हो तथा चतुर्थ स्थान में मंगल,केतु, व्ययेश, तृतियेश तथा अष्टमेश में से किन्ही दो ग्रहों या ज्यादा का प्रभाव चतुर्थ स्थान में हो तो इस भयानक दोष का प्रभाव व्यक्ति को दंश की तरह चुभता रहता है। चतुर्थ स्थान हमारी आत्मा या चित्त का प्रतिनिधित्व करता है, ऐसे में इस स्थान के पाप प्रभाव में होने पर उसका प्रभाव सीधे-सीधे हमारे मन व आत्मा पर पडता है।
4- मिर्गी के दौरे-चंद्र राहु या केतु के साथ हो तथा लग्न में कोई वक्री ग्रह स्थित हो, तो मिर्गी के दौरे पड़ते हैं।
5- पागलपन या बेहोशी- चतुर्थ भाव का मालिक तथा लग्नेश पीड़ित हो या पापी ग्रहों के प्रभाव में हो, चंद्रमा सूर्य के निकट हो तो पागलपन या बेहोशी के योग बनते हैं। इस योग में मन व बुद्धि को नियंत्रित करने वाले सभी कारक पीड़ित होते हैं। चंद्र, लग्न, व चतुर्थेश इन पर पापी प्रभाव का अर्थ है व्यक्ति को मानसिक रोग होना। लग्न को सबसे शुभ स्थान माना गया है परन्तु इस स्थान में किसी ग्रह के पाप प्रभाव में होने से उस ग्रह के कारक में हानि दोगुने प्रभाव से होती है।
2- डिप्रेशन या तनाव- चंद्र जन्म कुंडली में 6, 8, 12 स्थान में शनि के साथ हो। शनि का प्रभाव दीर्घ अवधि तक फल देने वाला माना जाता है तथा चंद्र और शनि का मिलन उस घातक विष के समान प्रभाव रखने वाला होता है जो धीरे-धीरे करके मारता है। शनि नसों का कारक होता है। इन दोनों ग्रहों का अशुभ स्थान पर मिलन परिणाम अवसाद व तनाव उत्पन्न करता है।
3- भय व घबराहट- चंद्र व चतुर्थ भाव का मालिक अष्टम स्थान में हो, लग्नेश निर्बल हो तथा चतुर्थ स्थान में मंगल,केतु, व्ययेश, तृतियेश तथा अष्टमेश में से किन्ही दो ग्रहों या ज्यादा का प्रभाव चतुर्थ स्थान में हो तो इस भयानक दोष का प्रभाव व्यक्ति को दंश की तरह चुभता रहता है। चतुर्थ स्थान हमारी आत्मा या चित्त का प्रतिनिधित्व करता है, ऐसे में इस स्थान के पाप प्रभाव में होने पर उसका प्रभाव सीधे-सीधे हमारे मन व आत्मा पर पडता है।
4- मिर्गी के दौरे-चंद्र राहु या केतु के साथ हो तथा लग्न में कोई वक्री ग्रह स्थित हो, तो मिर्गी के दौरे पड़ते हैं।
5- पागलपन या बेहोशी- चतुर्थ भाव का मालिक तथा लग्नेश पीड़ित हो या पापी ग्रहों के प्रभाव में हो, चंद्रमा सूर्य के निकट हो तो पागलपन या बेहोशी के योग बनते हैं। इस योग में मन व बुद्धि को नियंत्रित करने वाले सभी कारक पीड़ित होते हैं। चंद्र, लग्न, व चतुर्थेश इन पर पापी प्रभाव का अर्थ है व्यक्ति को मानसिक रोग होना। लग्न को सबसे शुभ स्थान माना गया है परन्तु इस स्थान में किसी ग्रह के पाप प्रभाव में होने से उस ग्रह के कारक में हानि दोगुने प्रभाव से होती है।
प्रस्तुतिः डॉ. राधाकृष्ण दीक्षित, ज्योतिषवेत्ता, सोरों