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Amra Ram CPIM : एसके कॉलेज छात्रसंघ अध्यक्ष बनते ही जीप के बोनट पर बैठ पूरे सीकर में घूमे अमराराम

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Amara Ram CPIM sikar

Amraram was student president of SK college Sikar in 1978-79

सीकर. राजस्थान की छात्र राजनीति में इस समय चुनाव परवान पर हैं। राजस्थान छात्रसंघ चुनाव 2018 के लिए 31 अगस्त को मतदान होना है। सीकर में श्री कल्याण महाविद्यालय (एसके कॉलेज) का छात्रसंघ चुनाव हमेशा से चर्चा का विषय रहा है। पूरे राजस्थान की एसके कॉलेज के चुनाव परिणाम पर नजर रहती है। इसी कॉलेज ने किसानों को सबसे नेता भी दिया है। नाम है अमराराम।

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अखिल भारतीय किसान सभा के अध्यक्ष अमराराम करीब 39 साल पहले एसके कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए थे। जीत के बाद अमराराम को समर्थकों ने खुली जीप के बोनट पर बैठाकर पूरे सीकर में शानदार जुलूस निकाला था। अमराराम का वो चुनाव कैसा रहा था जानिए खुद उन्हीं की जुबानी।

‘‘हमारे जमाने के चुनाव अलग थे। विद्यार्थियों के पास ना चार पहिया वाहन होते थे ना दो पहिया। कॉलेज के अनेक व्याख्याता भी साइकिल से ही आते थे। मोटरसाइकिल भी किसी के पास नहीं थी। बहुत कम व्याख्याता थे जो स्कूटर से आते थे। प्रचार के लिए भी गांवों में कोई नहीं जाता था, क्योंकि किसी के पास साधन ही नहीं होते थे। उस समय निजी कॉलेज भी इतने नहीं थे।

बाहर के विद्यार्थी सीकर शहर में ही किराऐ के कमरे लेकर या छात्रावासों में रहते थे। मेरे से पहले श्रीकल्याण राजकीय महाविद्यालय सीकर के छात्रसंघ अध्यक्ष किशन सिंह ढाका रहे। इसके बाद वर्ष 1978-79 में मैंने एसएफआई के टिकट पर अध्यक्ष का चुनाव जीता। कितने वोट आए यह तो पूरी तरह से याद नहीं है। दूसरे स्थान पर एबीवीपी के चितरंजन सिंह राठौड़ व तीसरे स्थान पर एनएसयूआई के देवेन्द्र रहे।

अब के तथा पहले के चुनाव में बहुत अंतर आ गया। अब पहले से कई गुणा ज्यादा पैसे खर्च हो रहे हैं। विद्यार्थियों व प्रत्याशियों के पास चार पहिया वाहन हैं। प्रचार भी हाइटेक हो गया। पोस्टर, बैनर के अलावा सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार किया जा रहा है।

प्रचार का माध्यम केवल डोर टू डोर सम्पर्क होता था। पहले छह पदों के लिए चुनाव होता था। अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महासचिव, संयुक्त सचिव, खेल सचिव व सांस्कृतिक सचिव। अब खेल सचिव व सांस्कृतिक सचिव के चुनाव बंद हो गए। दोनों ही पद महत्वपूर्ण होते थे। पहले व अब के चुनाव में केवल एक ही समानता है पहले भी मतदान बैलेट पेपर से होता था और अब भी। शेष बहुत कुछ बदल गया। ’’
(जैसा श्रीकल्याण राजकीय महाविद्यालय सीकर के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष अमराराम ने पत्रिका को बताया)

जानिए कौन है अमराराम
सीकर जिला मुख्यालय से करीब 20 किलोमीटर दूर धोद तहसील के गांव मूंडवाड़ा के रहने वाले हैं अमराराम। इनका जन्म डीडवाना-नागौर मार्ग पर स्थित मूंडवाड़ा के किसान दलाराम व रामदेवी के घर 5 अगस्त 1955 को हुआ। अमराराम चार भाइयों में तीसरे नम्बर के हैं। भाई ईश्वर सिंह व हीरालाल बड़े व भाई केशर सिंह छोटा है। इनके तीन बहन रुकमा देवी, छोटी देवी व जीवणी देवी हैं।

पढ़़ाई व नौकरी
प्राथमिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हुई। आठवीं कक्षा स्वतंत्रता सेनानी जमनालाल बजाज के गांव काशी का बास से उत्तीण की। फिर नौवीं से लेकर बीएससी व एमकॉम तक की पढ़़ाइ सीकर के एसके से की। 1975 में गोरखपुर विश्वविद्यालय से बीएड की डिग्री हासिल की। 1980 मेें पंचायती राज विभाग में सरकारी शिक्षक लगे। पहले नियुक्ति धोद के प्राथमिक स्कूल में मिली। फिर छह माह बाद नागवा के स्कूल में लगाया गया। सालभर बाद ही अमराराम ने शिक्षक की नौकरी छोड़ गांव मंूडवाड़ा से सरपंच का चुनाव लड़़ा व जीता।

पत्नी व बच्चे
वर्ष 1971 में अमराराम 11वीं कक्षा में थे तब उनकी शादी हो गई थी। पत्नी सोहनी देवी गृहणि हैं। इनके दो बेटे व एक बेटी है। बड़ा बेटा महावीर वर्तमान में गांव मंूडवाड़ा से सरपंच हैं। छोटा बेटे ने राजनीतिक विज्ञान में पीएचडी कर रखी है। बेटी सुनीता एमए, बीएड तक शिक्षित है। पहले इनका परिवार मंूडवाड़ा में रहता था। वर्तमान में सीकर के शांतिनगर में रह रहा है।

राजनीतिक सफर
अमराराम का राजनीतिक सफर कॉलेज से ही शुरू हो गया था। एसके कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ये सीपीआई (एम) की छात्र इकाई एसएफआई से जुड़े। 1979 में एसएफआई की टिकट पर एसके कॉलेज के छात्रसंघ अध्यक्ष चुने गए। इसके बाद 1983 से 1993 तक अपने गांव मंूडवाड़ा के सरपंच रहे। वर्ष 1993, 1998 व 2003 में विधानसभा क्षेत्र धोद व 2008 में दांतारामगढ़ से विधायक चुने गए। इस बीच वर्ष 1985, 1990 व 2013 के विधानसभा चुनाव में हार का भी सामना करना पड़ा।


दिनचर्या
अमराराम सुबह करीब पांच बजे उठते हैं। सीकर में रहते हैं कृषि उपज मंडी समिति परिसर व जयपुर में रहते हैं तो सिविल लाइन के पार्क में एक घंटे मॉर्निंक वॉक करते हैं। इसके बाद घर आकर अखबार पढ़ते हैं। कोई कार्यकर्ता या समर्थक आए हुए होते हैं उनसे मिलते हैं। फिर खाना खाकर साढ़े 9 बजे क्षेत्र में निकल जाते हैं।