
सीकर. जीवनभर बच्चों को शिक्षा का उजाला देने वाली शिक्षिका किरण तनेजा मृत्यु के बाद भी नेत्र ज्योति प्रज्जवलित कर गई । शिक्षिका के नेत्रदान से न केवल दो नेत्रहीनों को नई ²ष्टि मिलेगी, बल्कि समाज में फैली नेत्रदान को लेकर भ्रांतियों पर भी प्रहार हुआ है। विड्बना की बात है कि मेट्रो सिटी बनने की ओर अग्रसर सीकर जिले में नेत्रदान की सुविधा नहीं होने से सरदारशहर से आई टीम ने श्मशान स्थल पर ही नेत्रदान की प्रक्रिया पूरी की। आइबैंक को ऑर्डिनेटर गणेश दास स्वामी और प्राणनाथ हॉस्पिटल,सरदारशहर के मैनेजर शांतिलाल चौरडिय़ा ने नेत्रदान के लिए एंबुलेंस से इबीएसआर के सरदार शहर चैप्टर के टेक्नीशियन भंवरलाल और सहयोगी दिनेश शर्मा को सीकर भेजा। शिक्षिका के परिजन सुदेश तनेजा ने बताया कि नेत्रदान में मोहन फाउंडेशन जयपुर सिटीजन फोरम, शाइन इंडिया,आईबैंक सोसायटी सरदारशहर चेप्टर, प्राणनाथ हॉस्पिटल, और तेरापंथ युवक परिषद सरदारशहर का सहयोग रहा।
चिकित्सकों के अनुसार नेत्रदान एक सरल और पूरी तरह सुरक्षित प्रक्रिया है, लेकिन जानकारी के अभाव और भ्रांतियों के कारण लोग इससे हिचकिचाते हैं। समाज में यह भ्रांति फैली है कि नेत्रदान से चेहरे की बनावट बिगड़ जाती है, जबकि वास्तविकता यह है कि नेत्र निकालने के बाद चेहरे पर कोई फर्क नहीं पड़ता। इसके अलावा भी यह भी आम गलतफहमी है कि उम्र या चश्मा पहनने वाले व्यक्ति नेत्रदान नहीं कर सकते, जबकि लगभग हर व्यक्ति नेत्रदान कर सकता है। इसके अलावा कई लोग यह मानते हैं कि नेत्रदान धार्मिक मान्यताओं के खिलाफ है, जबकि अधिकांश धर्म मानव सेवा को सर्वोपरि मानते हैं और नेत्रदान का समर्थन करते हैं। इसको लेकर समाज में जागरुकता जरूरी है।
चिकित्सकों के अनुसार आंखें दान करने के लिए सबसे आसान अंगों में से एक है। कमजोर ²ष्टि और यहां तक कि मोतियाङ्क्षबद का इलाज करवा चुकी आंखों को भी दान करने में कोई परेशानी नहीं है। हालांकि दानदाता को उच्च जोखिम वाली बीमारियों जैसे एचआइवी, हेपेटाइटिस, सिफलिस आदि के लिए परीक्षण कराने की जरूरत होती है। ऐसे मामलों में जहां आंखों के टिशू दान के लिए उपयुक्त नहीं हैं, उन्हें मेडिकल रिसर्च के लिए उपयोग किया जाता है।
Published on:
26 Dec 2025 12:03 pm
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