राज्य पुष्प रोहिड़ा का विभाग के पास इनकी ट्रैकिंग व गणना जैसी सुविधा ही नहीं है।
रोहिड़ा को राज्य पुष्प घोषित किए जाने के बावजूद सीकर जिले में इस पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। वन विभाग के पास ऐसी कोई जानकारी ही नहीं है, जिससे इस पर आए संकट को पहचाना जा सके।
आश्चर्य की बात है कि राज्य पुष्प का विभाग के पास इनकी ट्रैकिंग व गणना जैसी सुविधा ही नहीं है। ऐसे में जिले में कितने पेड़ इस संरक्षित प्रजाति के हैं और कितने सुरक्षित हैं, इसका न तो किसी के पास जवाब है और न ही कोई इसकी जिम्मेदारी उठाने वाला है।
गौरतलब है कि नीमकाथाना, दांतारामगढ़, लक्ष्मणगढ़, फतेहपुर रेंज में रोहिड़ा के पेड़ देखे जा सकते हैं। वन विभाग भी रेंज क्षेत्रों में भी रोहिड़ा के पेड़ होने का दावा करता है।
बेशकीमती है लकड़ी
रोहिड़ा की लकड़ी की डिमांड को देखते हुए इसके पेड़ों की कटाई का खतरा बढ़ा है। रोहिड़ा के पेड़ की लकड़ी से बेहतरीन और उच्च गुणवत्ता का फर्नीचर बनाया जा सकता है और यही इसके चोरी-छिपे कटाई का कारण भी बन रहा है। हालांकि, इस खतरे को भांपते हुए वन विभाग ने पहले ही इसको राज्य पुष्प घोषित कर संरक्षित कर दिया है।
रोहिड़ा को काटना है प्रतिबंधित
उप वन संरक्षक राजेन्द्र हुड्डा का कहना है कि राज्य पुष्प घोषित होने के बाद रोहिड़ा की कटाई पूरी तरह से प्रतिबंधित है। जनपद में वन विभाग की रेंज में काफी संख्या में राज्य पुष्प रोहिड़ा के पौधे हैं। लेकिन, इसकी संख्या या ट्रैकिंग की व्यवस्था नहीं है।
देरी से होता है तैयार
जिले में पिछले कई वर्ष से मानसून सीजन के दौरान वन विभाग रोहिड़ा के पौधे लगाता है। हकीकत यह है कि अत्यधिक संवेदनशील होने के कारण तीन- चार वर्ष तक बिना उचित देखरेख के रोहिड़ा पनप नहीं सकता है।
यही कारण है कि खेतों में लगाए जाने वाले रोहिड़ा का भी यह पौधा अन्य पौधों की तुलना में धीरे-धीरे बढ़ता है। यही कारण है कि रोहिड़ा का पौधा पेड बनने में अधिक समय लेता है। इसके अलावा रोहिड़ा के पेड़ का तना सीधा नहीं होने से इसकी कटाई ज्यादा की जाती है।