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मिट्टी में मिल गया पाइका योजना का पैसा
कोच तो दूर खेल संसाधन भी नहीं जुटा सकी गांवों की सरकार
सीकर. सरकारी पैसे की बर्बादी और किस तरह योजनाओं की दुर्गती होती है इसका बड़ा उदाहरण पाइका योजना है। प्रदेशभर में दस साल पहले खेल मंत्रालय ने पाइका योजना शुरू की थी। इसके तहत सीकर जिले में 150 ग्राम पंचायतों में लगभग 80-80 हजार रुपए की लागत से ग्रामीण खेल मैदानों का निर्माण कराया गया था। इस समय सरकार ने दावा किया कि मैदान बनते ही खेल सामग्री व कोच के इंतजाम भी किए जाएंगे। लेकिन दस वर्ष गुजरने के बाद भी योजना धरातल पर नहीं आ सकी। इस मामले में पिछले दिनों राज्य सरकार ने सभी खेल मैदानों की वर्तमान स्थिति जानने को लेकर कवायद की थी। लेकिन आचार संहिता की वजह से मामला अटक गया था।
मिनी खेल स्टेडियम की योजना भी दफन
ब्लॉक स्तर पर बनने वाले मिनी खेल स्टेडियमों की योजना भी कागजों में दफन हो गई है। ब्लॉक स्तर पर भी दो लाख से अधिक के बजट से मिनी खेल स्टेडियमों का निर्माण हुआ था। लेकिन यहां भी जमीन के समतलीकरण के अलावा कोई काम नहीं हुआ।
संसाधनों का टोटा
खेलों में प्रदेश को कई पदक दिलाने वाले सीकर के युवाओं को खेल स्टेडियम में भी सुविधाएं नहीं मिल पा रही है। हालत यह है कि स्टेडियम में सभी खेलों के कोच नहीं होने के कारण खिलाडिय़ों को निजी एकेडमियों में जाना पड़ रहा है। स्टेडियम विकास के लिए वर्षो पहले तय की गई खेल मैदानों की जगह भी अब तक खाली पड़ी
हुई है।
एकेडमी भी बंद
पांच खेलों को प्रोत्साहित करने के लिए भाजपा सरकार ने कोठ्यारी स्पोट्र्स एकेडमी शुरू की थी। लेकिन महज एक साल बाद ही खेल एकेडमी बंद हो गई। इस कारण यहां के खिलाडिय़ों को अब जयपुर व बीकानेर सहित अन्य एकेडमियों में अभ्यास के लिए जाना पड़ता है। यहां के युवाओं ने कई बार खेल एकेडमी के लिए आंदोलन भी किया, लेकिन कमजोर सियासी पैरवी के कारण मामला कागजों से आगे नहीं बढ़ पाया।
पता ही नहीं, कहां बनाया खेल मैदान
जिले की कई ग्राम पंचायतों के वर्तमान सरपंचों से जब इस संबंध में बातचीत की तो बताया कि पता ही नहीं है कि खेल मैदान ग्राम पंचायत क्षेत्र में कहां बनाए गए। खेल मैदानों के निर्माण के समय में भी कई ग्राम पंचायतों की ऑडिट में पैरा बनाए गए थे। हालांकि बाद में कमियों को दूर कर दोबारा सत्यापन कराया था।
Published on:
26 Apr 2019 06:03 pm
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