
बिहारीलाल शर्मा/रींगस. दिल्ली से जोधपुर वाया रींगस, नीमकाथाना होते हुए एक बार फिर से ट्रेन की शुरुआत होने वाली है। इस बार ट्रेन की शुरुआत दिल्ली जोधपुर जैसलमेर के बीच होगी। करीब 72 साल पहले जोधुपर-दिल्ली के बीच स्टीम की ट्रेन चलती थी। इसी ट्रेन से लोग मारवाड़ का सफर करते थे। मारवाड़ की तरफ तोरण मारने जाने वाले लोग भी इसी ट्रेन से जाते थे। बारात में आठ-दस लोग ही शामिल होते थे। बाद में यह ट्रेन बंद हो गई। रूणिचा एक्स शुक्रवार को रींगस स्टेशन पर सुबह दस बजे आएगी। यहां से ये ट्रेन दिल्ली जाएगी।
जोधुपर की ट्रेन बंद हुई तो लोग रेवाडी -फुलेरा चलने वाले 9 अप-10 डाउन शटल का प्रयोग करते। ट्रेन में चढऩे की आपाधापी के बीच नव विवाहितों की दुल्हनें अदला बदली हो जाती थी। इससे बाराती जहां पर भी ट्रेन रुकती वहीं पर दुल्हनों की तलाश करते। घूंघट प्रथा होने तथा संचार के साधनों की कमी के कारण कई बार तो दुल्हनों को घर पर भी छोड़ कर जाते तथा अपनी दुल्हने साथ लेकर जाते। कुछ ऐसा ही वाक्या नीमकाथाना, खण्डेला, श्रीमाधोपुर जयपुर जिले के बधाल रेनवाल, किशनमानपुरा सहित स्थानों के अनेक दुल्हो तथा दुल्हनों के बीच भी हुआ था। जोधपुर के लिए जैसे ही ट्रेन की घोषणा हुई तो अपने साथ 70 साल पहले हुए घटना की जानकारी रींगस के पुलिस थाने के पास रहने वाले 90 वर्षीय सेवानिवृत्त शिक्षक रामूसिंह शेखावत ने भी बताई।
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मारवाड़ के लिए ट्रेन से ही जाती थी बारात
90 वर्षीय रामू सिंह शेखावत ने बताया कि जब वे 16 साल के हुए तो उनकी शादी मारवाड़ में स्थित मेडता रोड के पास एक औलादन गांव में हुई। 1952 में आखातीज पर उनकी शादी तय हुई। उनकी पत्नी खमां कंवर की बड़ी बहन की शादी भी कालाडेरा के पास स्थित खरनीपुरा में तय हुई। दोनों की बारात ट्रेन से रवाना हुई। शादी से पहले जोधपुर की ट्रेन बंद हो गई। बारात 9 अप 10 डाउन रेवाडी-फुलेरा से फुलेरा पहुंची। यहां से कोटा जोधपुर ट्रेन से बारात मारवाड़ में मेडता रोड पहुंची।
वापसी में भी इसी ट्रेन का सहारा लिया गया। फुलेरा पहुंचते ही देखा कि वहां तो 100-150 विवाहित जोड़े पहले से ही खड़े थे। ये सभी जोड़े रींगस नीमकाथाना रूट सहित आस पास के गांवों व शहरों के थे। कुछ जोड़े जयपुर जिले के भी थे। रेवाड़ी फुलेरा ट्रेन में चढऩे में उनकी पत्नी खमां कंवर पीछे रह गई जबकि दूसरे की पत्नी उनके साथ हो गई। रेनवाल में दुल्हन की बड़ी बहन ने देखा की उसकी छोटी बहन खमां कंवर तो उसके साथ नहीं है। यह दुल्हन तो कोई दुसरी है। ऐसे में डिब्बे में अफरा तफरी मच गई। डिब्बे में ही दो अन्य दुल्हों की दुल्हनें भी गायब थी जबकि उनके साथ भी दूसरे दूल्हों की दुल्हनें हो गई। बधाल रेलवे स्टेशन पर दूसरे दूल्हों ने भी अपनी पत्नियों को खोजते हुए डिब्बे के पास पहुंच गए और मेरे साथ गए लोग भी आवाजे देने लगे की दुल्हन की अदला-बदली हो गई। रींगस से दस किमी आगे फुलेरा रेलमार्ग पर स्थित बधाल में उसे अपनी दुल्हनें मिल गई। कुछ की दुल्हनों को रींगस जंक्शन पर तलाश किया गया। शेखावत ने बताया कि कुछ लोगों की दुल्हनें फिर भी नहीं मिली। इस पर घर पर लोगों को पता चला तो दूसरों की दुल्हन को सम्मान के साथ घर तक छोडऩे गए और अपनी पत्नी लेकर आए। कई बार तो दोनों ही परिवार वाले नहीं मिले। ऐसे में दोनों ही परिवारों के परिजनों को मेहमानों को वहीं पर रुकने की हिदायत देकर जाते ताकि आते ही दुल्हनों को एक दूसरे के जान पहचान होने के बाद भेज देंगे।
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नहीं था संचार का साधन
उस जमाने में आज की तरह संचार का साधन नहीं थे। पत्नी की फोटो तो दूर नाम तक पता नहीं था। रिश्तेदार ही शादी तय कर देते थे। शादी के दस साल बाद तक पति-पत्नी में बात नहीं होती थी। सड़क परिवहन का साधन ना के बराबर था। जोधपुर की तरफ जाने के लिए तो वाहन की सोच भी नहीं सकते थे। लोगों में इतनी समझ भी नहीं थी। हम यह सोच भी नहीं सकते थे एक दिन हाथ में मोबाइल भी होगा। भारी भीड़ तथा एक ही ट्रेन होने से ऐसी होनी अनहोनी होती थी,लेकिन लोग इतने सजग रहते थे कि दुल्हनों की अदला बदली नहीं हो जाए, लेकिन फिर भी भीड़ की वजह से दुल्हनों की अदला बदली हो जाती थी। इस पर ससम्मान दुल्हनो को उनके घर पर छोड़ कर आते थे। लोग बहुत ही सज्जन थे। घर में जब तक दूसरों की दुल्हन रहती थी पुरुष घर में घुसता भी नही था।
कठोर थी पर्दा प्रथा
70 साल पहले पर्दा प्रथा काफी कठोर थी। छोटी उम्र में शादी हो जाती थी। घुंघट से भी महिलाएं आर पास नहीं देख पाती थी। बड़ी महिलाए ही घूंघट उठाकर पूछती थी। एक परिवार में दो-दो शादियां होती थी। दुल्हन के साथ अन्य बालिका एक बार साथ आती थी, वही बातचीत का जरिया होती थी। दुल्हनें सास, ननद आदि से बोल भी नहीं पाती थी, जिनके घर में छोटी लड़की नहीं होती थी।
Published on:
06 Oct 2023 04:53 pm
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