मां और बेटियों ने जुनून से हराया दिव्यांगता: नेत्रहीन विद्यार्थियों की रोशन हुई राहेंदोनों बेटियों का बैंक में हुआ चयन, एक दिल्ली तो दूसरी सीकर बैंक में दे रही सेवास्कूल के चार विद्यार्थियों को भी मिली सरकारी नौकरी, खुद अपने दम पर चला रही विशेष आवासीय विद्यालय
अजय शर्मा
दिव्यांगता को मात देकर सफलता का इतिहास लिखने की यह संघर्षभरी कहानी है। इसमें अहम किरदार है सीकर की निर्मला कंवर शेखावत का। दो बेटियां बचपन से नेत्रहीन होने के बाद भी निर्मला ने हार नहीं मानी। उन्होंने बेटियों को सामान्य बच्चों की तरह शिक्षा दिलाने की ठानी। लेकिन सीकर में ब्रेललिपि का शिक्षक नहीं मिला। कुछ दिन मायूस रहने के बाद वह बेटियों को पढ़ाने के लिए दिल्ली ले गई। यहां दोनों को विशेष विद्यालय में पढ़ाई कराई। इस बीच मन में ख्याल आया कि न जाने सीकर, चूरू व झुंझुनूं जिले के और कितने बेटे-बेटियां है जो दिव्यांगता की जंजीरें को तोडऩा चाहते है लेकिन कोई स्कूल नहीं है। इसके लिए उन्होंने वर्ष 2015 में सीकर में दिव्य ज्योति नेत्रहीन शिक्षण संस्थान की स्थापना की। मानवता की सेवा के बीच निर्मला की छोटी बेटी रिन्कू शेखावत का दिल्ली स्थित एक सरकारी बैंक में डिप्टी मैंनेजर के पद पर चयन हो गया। पिछले दिनों बड़ी बेटी आशा शेखावत की भी सरकारी बैंक में लिपिक के पद पर नौकरी लग गई। खास बात यह है कि दोनों बेटी नेत्रहीन होने के बाद भी आसानी से कम्प्यूटर पर काम करती है। विद्यालय में बच्चों को शिक्षा के साथ आवास व भोजन की व्यवस्था निशुल्क उपलब्ध कराई जाती है।
शुरूआत में शिक्षक नहीं मिले तो खुद खाना बनाती और बच्चों को पढ़ाती
निर्मला कंवर को नेत्रहीन स्कूल संचालन में कई तरह की दिक्कतों का सामना करना पड़ा। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। शुरूआत में नेत्रहीन बच्चों को पढ़ाने के लिए शिक्षक नहीं मिले तो उन्होंने खुद बे्रल सीखी और बच्चों को पढ़ाती। इस काम में उनकी दोनों बेटियों ने भी शिक्षक की जिम्मेदारी संभाली।
पहल: संघर्ष देखकर भामाशाह ने दी निशुल्क जमीन
नेत्रहीन विद्यर्थियों में शिक्षा की अलख जगाने पर भामाशाह नेमीचंद गिठाला ने चन्द्रकला की पहल पर हर्ष रोड पर संस्थान के लिए 667 वर्गगज जमीन दान दी है। स्कूल संचालिका निर्मला का कहना है कि यदि और भामाशाह भी आगे आए तो जल्द संस्थान का भवन तैयार कराया जाएगा।
मिसाल: पहले पति के वेतन और अब बेटियों की तनख्याह से खुशियां
निर्मला देवी के स्कूल में पति व दोनों बेटियों की अहम भूमिका है। पहले निर्मला के पति के वेतन से स्कूल संचालन होता। अब दोनों बेटियों की तनख्याह से नेत्रहीन विद्यार्थियों की जिदंगानी में खुशियां बसर कर रही है। कई बार भामाशाहों की से भी मदद मिलती है लेकिन स्थायी सदस्य नहीं होने की वजह से चुनौती कम नहीं हो रही है।
मिला सहारा, तो नेत्रहीन सरकारी नौकरियों में मार रहे बाजी
दिव्य ज्योति दृष्टिहीन स्कूल में हर उम्र व स्तर के नेत्रहीन बच्चों को निशुल्क शिक्षण दिया जा रहा है। बकौल निर्मला 2015 में शुरू हुए स्कूल में अब तक 75 से ज्यादा बच्चों को निशुल्क शिक्षण दिया जा चुका है। जिनमें से दो बच्चे सरकारी शिक्षक बन चुके हैं। वहीं कई बीएसटीसी व बीएड सहित कई व्यवसायिक कोर्स भी कर रहे हैं। स्कूल में वर्तमान में 35 बच्चे पढ़ रहे हैं। वहीं दो विद्यार्थियों को रेलवे में नौकरी मिल चुकी है।