
जनतंत्र में जनता जनार्दन होती है। वह किसी भी उम्मीदवार को फर्श से अर्श और अर्श से फर्श दिखा सकती है। उम्मीदवार की योग्यता, पार्टी व प्रतिष्ठा भी उसमें कोई मायने नहीं रखती। विधानसभा चुनाव में जिले के ऐसे ही कई मुकाबले अब भी इसकी नजीर बने हुए हैं। जिनमें से दो जीतों का जिक्र जानकारों की जुबान और जहन में अब भी जिंदा है।
हस्ताक्षर भी नहीं आता, एलएलबी उम्मीदवार को हराया
शिक्षाविद दयाराम महरिया बताते हैं कि 1952 में सीकर तहसील विधानसभा से कांग्रेस से रामदेव सिंह महरिया और राम राज्य परिषद से पृथ्वी सिंह उम्मीदवार थे। जिनके सामने कृषकार लोक पार्टी ने ईश्वर सिंह को अपना उम्मीदवार चुना था। इनमें एलएलबी शिक्षा प्राप्त रामदेव सिंह सबसे पढ़े लिखे व ईश्वर सिंह पूर्ण रूप से निरक्षर उम्मीदवार थे। वे हस्ताक्षर करना भी नहीं जानते थे। पर चुनाव में जनता ने उम्मीदवारों की शैक्षिक योग्यता को दरकिनार कर ईश्वर सिंह को 20912 में से 8467 मत देकर विजयी बना दिया। जबकि 5451 मतों के साथ महरिया तीसरे नम्बर पर रहे।
सेवा पर भारी पड़ी राजनीति
सीकर तहसील से चुनाव हारने के बाद रामदेव सिंह महरिया ने 1957 व 1962 का चुनाव सिंगरावट विधानसभा से लड़ा। दोनों चुनाव जीतने के बाद कांग्रेस ने 1967 में फिर सीकर विधानसभा से उन्हें अपना उम्मीदवार चुना। जहां इस बार उनकी जीत चर्चा का विषय बनी। दरअसल इस चुनाव में उनके सामने प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने बद्री नारायण सोढाणी को अपना प्रत्याशी तय किया।
सांवली में एशिया के सबसे बड़े टीबी अस्पताल व धोद रोड पर होम्योपैथिक अस्पताल सहित कई समाजसेवी कार्यों की वजह से सोढ़ाणी उस समय प्रतिष्ठा के शिखर पर थे। जिनके काम को देखते हुए उनकी जीत के दावे भी जोर-शोर से हुए। पर इस चुनाव में बद्री नारायण सोढाणी की सेवा व सामाजिक प्रतिष्ठा पर महरिया का राजनीतिक अनुभव व रणनीति भारी पड़ गई। चुनाव में कुल 49 हजार 154 मतों में से सोढाणी के 21 हजार 471 मतों के मुकाबले रामदेव सिंह महरिया ने 25 हजार 48 मत हासिल कर यह चुनाव 3577 मतों से जीता।
Updated on:
24 Oct 2023 11:35 am
Published on:
24 Oct 2023 11:32 am
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