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कृ​षि वैज्ञानिकों के सुझाव पर अमल हुआ तो बदल जाएगी किसानों की तकदीर

कृषि विज्ञान केंद्र में परामर्शदात्री समिति की बैठककिसानों ने बताई समस्याएं, वैज्ञानिकों ने दिया सुझाव

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suggestion of agricultural scientists is implemented farming change

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सिंगरौली. प्राकृतिक खेती से मिट्टी के साथ अनाज का सेवन करने वाले व्यक्ति की सेहत भी प्रभावित नहीं होती है। प्राकृतिक यानी जैविक खेती की शुरुआत करने वाले किसानों को शुरुआत में उत्पादन व उत्पादकता पर बहुत अधिक ध्यान नहीं देना चाहिए। कुछ वर्षों की खेती के बाद जब मिट्टी की सेहत दुरुस्त हो जाएगी तो उत्पादकता में भी स्वत: वृदि्ध हो जाएगी। किसानों को यह सुझाव जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय के सहायक संचालक एवं कृषि वैज्ञानिक डॉ. टीआर शर्मा ने दिया। डॉ. शर्मा शुक्रवार को कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित परामर्शदात्री समिति की बैठक में उपिस्थत रहे।

कृषि विज्ञान केंद्र के देवरा िस्थत कार्यालय में आयोजित बैठक में बतौर मुख्य अतिथि कृषि वैज्ञानिक डॉ. शर्मा ने किसानों से कहा कि उन्हें एक साथ ही कई अलग-अलग प्रकृति की फसलों की खेती करनी चाहिए। इससे एक फसल खराब हुई तो दूसरी से आय अर्जित हो जाएगी। उन्होंने जिले में अरहर के साथ अदरक की खेती पर जोर दिया। इससे पहले केंद्र के प्रमुख व कृषि वैज्ञानिक डॉ. जय सिंह ने वार्षिक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया। पॉवर प्वाइंट प्रजेंटेशन के जरिए डॉ. सिंह ने केंद्र द्वारा पूर्व में किए गए कार्यों के साथ आगामी योजना पर प्रकाश डाला।

केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. अखिलेश चौबे ने समिति की सभी सदस्यों की ओर से दिए गए सुझावों पर अमल किए जाने और किसानों की समस्याओं को दूर किए जाने का आश्वासन दिया। समिति की बैठक में कृषि, उद्यानिकी, पशुपालन, एमपी एग्रो व मार्फेड सहित अन्य विभागों के अधिकारी व जिले के प्रगतिशील किसान उपिस्थत रहे। बैठक में सबसे पहले किसानों की ओर से बतौर सुझाव खेती-किसानी में आ रही समस्याओं से समिति को अवगत कराया और समाधान की मांग की। समिति की बैठक के बाद कृषि वैज्ञानिकों और अधिकारियों ने वहां किसानों द्वारा लाए गए फसल उत्पाद व वर्मी कंपोस्ट जैसे अन्य नवाचार को देखा और सराहना की। इस दौरान किसानों को सम्मानित भी किया गया।

ऐरा प्रथा को बताई बड़ी समस्या
समिति की बैठक में बतौर विशिष्ट अतिथि उपिस्थत पशुपालन विभाग के संचालक डॉ. एमपी गौतम ने कहा कि वर्तमान में ऐरा मवेशी सबसे बड़ी समस्या हैं। स्वयं किसानों द्वारा उत्पन्न की गई इस समस्या का पीडि़त भी किसान ही है। ऐरा मवेशी किसानों की फसल चट कर जाते हैं। सुझाव के तौर पर उन्होंने कहा कि किसान देशी गायों का नस्ल सुधार करें। ताकि अधिक से अधिक दुग्ध उत्पादन हो सके। मवेशी अनुपयोगी होने की िस्थति में छोड़ें नहीं। इसके अलावा डॉ. गौतम ने पशुपालन विभाग की योजनाओं से भी किसानों को अवगत कराया।

केंद्र को जल्द मिलेगा ड्रोन
समिति की बैठक में मुख्य अतिथि डॉ. टीआर शर्मा ने बताया कि केंद्र में कृषि वैज्ञानिकों के खाली पदों को भरने के लिए प्रक्रिया चल रही है। जल्द ही नियुक्ति होगी। साथ ही उन्होंने अगले महीने तक केंद्र को एक ड्रोन दिए जाने की जानकारी दी। कहा कि केंद्र के वैज्ञानिक न केवल किसानों को ड्रोन से फसल पर कीटनाशक व उर्वरक छिड़काव का प्रशिक्षण दे सकेंगे। बल्कि जरूरत पर किसानों को ड्रोन की सुविधा मुहैया भी कराएंगे। इससे किसानों को दोहरा लाभ होगा।

किसानों ने दिया ये सुझाव
- जिले में मोटा अनाज का उत्पादन अधिक है। कोदो व कुटकी की अच्छी कीमत मिल रही है। सावा की अच्छी किस्म भी मुहैया कराई जानी चाहिए। उन्होंने कहा कि सावा के उत्पादन से मिट्टी में पोषक तत्वों की बढ़ोतरी होती है।

बाला शाह, किसान चितरंगी।

- मशरूम की खेती से अच्छा मुनाफा मिल रहा है। दूसरे किसानों को भी मशरूम के उत्पादन के लिए प्रेरित करना चाहिए। प्रशिक्षण देकर किसानों की आमदनी बढ़ाई जा सकती है। फ्रेश मशरूम के साथ सूखे मशरूम की भी अच्छी कीमत मिलती है।
क्रांति प्रसाद, किसान करैला।

- 200 क्विंटल वर्मी कंपोस्ट तैयार किया है। उसे खुद से प्राकृतिक खेती कर उपयोग में लाया जा रहा है। प्राकृतिक खेती को बढ़ावा मिले तो वर्मी कंपोस्ट की मांग अधिक होगी। किसानों को इससे भी मुनाफा कमाने का रास्ता खुलेगा।

सत्या जायसवाल, किसान कर्सुआराजा।

- प्राकृतिक खेती से उत्पादन व फसल की गुणवत्ता भी प्रभावित हो रही है। बाजार में मांग के साथ संतोषजनक कीमत भी नहीं मिल रही है। कुछ ऐसा उपाय किया जाए कि यह अंतर खत्म हो जाए। क्योंकि प्राकृतिक खेती में सबसे बड़ी बाधा यही है।
परमानंद शाह, किसान ओरगाई।

- जैविक खेती को प्रोत्साहित किया जाए। ताकि देसी खाद की मांग बढ़े। मवेशियों की उपयोगिता इससे बढ़ेगी। परवल व ड्रैगन फ्रूट की खेती भी यहां के किसान करना चाहते हैं। जानकारी के साथ सुविधाएं उपलब्ध कराई जाएं।

आदित्य कुशवाहा, किसान देवसर।

- अरहर की खेती में वानस्पतिक वृदि्ध बहुत अधिक होती है। इससे कीट व रोग का न केवल खतरा बढ़ जाता है। बल्कि सुरक्षा के उपाय करना भी मुश्किल होता है। ऐसी वेरायटी आनी चाहिए, जिससे पौधे छोटे हों और फलियां अधिक लगे।
पुष्पराज, किसान चितरंगी।

विभागीय अधिकारियों के सुझाव
- परंपरागत कृषि में तकनीकी का प्रयोग किया जाना चाहिए।

- दलहन व तिलहन के साथ मोटा अनाज का करें उत्पादन।
- खेत के मेड़ों पर अरहर जैसी फसल लगाई जानी चाहिए।

- टमाटर की फसल के लिए प्रसंस्करण इकाई शुरू की जाए।
- मत्स्य पालन के लिए तालाब बनाए जाए, कई लाभ होंगे।

- रोग से प्रभावित होने वाली फसल को चिह्नित कर उपाय हो।