
भविष्यवक्ता अशोक एम. पंडित।
सिरोही. भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा मसलन 10 सितम्बर से श्राद्ध शुरू होंगे। जो 25 सितम्बर को सर्व पितृ अमावस्या तक चलेंगे। श्राद्ध में अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति और पितृ दोष से मुक्ति के लिए पितरों के तर्पण, पिंडदान और श्राद्ध का विधान है। मान्यता के मुताबिक पितृ पक्ष के समय हमारे पूर्वज स्वर्गलोक से धरती पर अपने परिजनों से मिलने आते हैं। पितरों के प्रसन्न होने पर उनकी कृपा से जीवन में सुख-समृद्धि आने की मान्यता है। वहीं पितृपक्ष में कुछ करने करने की मनाही होती है। सारणेश्वर धाम के भविष्यवक्ता अशोक एम. पंडित ने बताया कि इस साल श्राद्ध पक्ष 15 दिन की बजाए 16 दिन रहेंगे। पितृपक्ष में ऐसा संयोग 2011 के बाद आया है।
श्राद्ध का महत्व
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार पितृपक्ष में पितरों का श्राद्ध और तर्पण करने से उनकी आत्मा को शांति मिलती है। हमारे पूर्वज हमें आशीर्वाद देने आते हैं और उनकी कृपा से जीवन की तमाम समस्याएं खत्म हो जाती हैं। पितृपक्ष में श्राद्ध कर्म के अलावा जरूरतमंदों को दान देना भी फलदायी माना जाता है।
पितृ पक्ष में ये काम न करें
माना जाता है कि श्राद्ध पक्ष में आपके पितर आपसे मिलने के लिए किसी भी रूप में आपके घर आ सकते हैं। नतीजतन अपने घर की चौखट पर आए किसी भी व्यक्ति अथवा पशु का न तो अपमान करें और ना ही किसी को घर से भूखा जाने दें। घर में लड़ाई-झगड़ा करने से भी पितृ नाराज हो सकते हैं। शास्त्रों के अनुसार पितृ पक्ष में नए वस्त्र और आभूषण खरीदने, बाल कटवाने, दाढ़ी बनवाने, कोई नया या मांगलिक कार्य शुरू शुभ नहीं माना जाता। पितरों का तर्पण या श्राद्ध कभी भी तड़के, सुबह-शाम या रात में नहीं करना चाहिए। यह कर्म दिन में करना शुभ होता है।
कब किनका करें श्राद्ध
ऐसी मान्यता है कि पितृपक्ष में मृत्यु की तिथि के अनुसार श्राद्ध करना चाहिए। इसके मायने ये हुए कि जिस व्यक्ति की जिस तिथि पर मृत्यु हुई, उसी तिथि पर उसका श्राद्ध किया जाना चाहिए। अगर किसी की मृत्यु की तिथि की जानकारी नहीं है, तो उसका श्राद्ध सर्वपितृ अमावस्या पर किया जा सकता है।
Published on:
09 Sept 2022 03:26 pm
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