इसके लिए उन्होंने ज्यादा से ज्यादा अपने समर्थकों को पार्टी से जिला पंचायत सदस्य के टिकट दिलाए और साम-दाम-दंडभेद हर गणित लगाकर जिताया भी, लेकिन पार्टी ने दूसरे उम्मीदवार को जिला पंचायत अध्यक्ष के प्रत्याशी घोषित कर दिया। इससे नाराज रामपाल ने अपने बेटे को निर्दलीय परचा भरवा दिया। पार्टी ने उन पर बेटे का नाम वापसी का दबाव बनाया और एक डेटलाइन पर रखी, लेकिन रामपाल ने भी अपना हठ नहीं छोड़ा। इस वजह से इस दौरान उन्हें सपा से निकाल दिया गया। चुनाव के नतीजे रामपाल के पक्ष में थे, बेटे और बेटी ने सपा प्रत्याशियों को हराकर क्रमश: जिला पंचायत अध्यक्ष और ब्लॉक प्रमुख की सीट जीत ली।