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दो करोड़ के भूखंड पर दिया नौ करोड़ का लोन, पूर्व IAS सहित 11 के खिलाफ 11 साल की जांच के बाद FIR

भ्रष्टाचार के इस मामले में 11 साल चली प्राथमिक जांच के आधार पर FIR का निर्णय लिया गया है। मामले में दो करोड़ के भूखंड पर नौ करोड़ का लोन दिया गया, जिसमें पूर्व आइएएस सहित 11 के खिलाफ एफआइआर दर्ज की गई। ये खेल हुआ है राजस्थान वित्त निगम (आरएफसी) में। नौ करोड़ रुपए के इस घोटाले में एसीबी ने अब जाकर पूर्व आइएएस अधिकारी सहित ग्यारह लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की है। अब देखना होगा की जांच कब तक होती है।

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राजस्थान वित्त निगम (आरएफसी) में नौ करोड़ रुपए के घोटाले में एसीबी ने पूर्व आइएएस अधिकारी सहित ग्यारह लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज की है। एसीबी ने एफआइआर का निर्णय 11 साल चली प्राथमिक जांच के आधार पर लिया है। मामले में अधिकारियों ने मिलीभगत कर दो करोड़ रुपए के भूखंड पर नौ करोड़ रुपए का लोन स्वीकृत कर दिया। दर्ज मामले में आरएफसी के तत्कालीन अधिकारियों में सीएमडी अतुल कुमार गर्ग, एफए व कार्यकारी निदेशक सुरेश चंद सिंघल, प्रबंधक नरेश कुमार जैन, उप प्रबंधक अजय कुमार, प्रबंधक प्रेम दयाल वर्मा, उप महाप्रबंधक आशुतोष प्रसाद माथुर, प्रबंधक मनोज मोदवाल, एम.के. चतुर्वेदी, उप प्रबंधक रूप नारायण नागर और कृष्णा विला प्राइमा अपार्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड के प्रवर्तक मेराज उन्नबी खान और नावेद सैदी नामजद हैं। एफआइआर के अनुसार नियमों को दरकिनार कर अधिकारियों ने मिली-भगत से आरएफसी को लोन के जरिए नौ करोड़ रुपए की चपत लगा दी।

कृष्णा विला प्राइम अपार्टमेंट का है मामला

अधिकारियों ने कृष्णा विला प्राइम अपार्टमेंट प्राइवेट लिमिटेड को नौ करोड़ रुपए का लोन दिया। जिस भूखंड पर लोन दिया गया उसको एक करोड़ रुपए में खरीदा गया था। उसके कंवर्जन सहित अन्य शुल्क जमा होने के बाद कीमत 2.08 करोड़ रुपए हुई थी। फर्म ने अपनी लेखा पुस्तकों में उसकी कीमत बढ़ाकर 10.07 करोड़ दर्ज की। इसके बाद आरएफसी के अधिकारियों ने कीमत 14.07 आंकने की रिपोर्ट तैयार की। इस आधार पर नौ करोड़ रुपए का लोन स्वीकृत कर दिया।

लोन बकाया फिर भी निदेशक बदले

लोन मेराज उन्नबी खान और नावेद ने लिया था। उन्होंने समय पर ब्याज व किस्तें जमा नहीं कराई। इसके बाद भी उनसे कम वित्तीय क्षमता वाली कंपनी के प्रबंधक रोहित सूरी, विनोद जैन और राहुल महाना को प्रबंधन में शामिल करने की छूट आरएफसी के अधिकारियों ने दी। मामला प्रकाश में आने पर एसीबी ने वर्ष 2011 में प्राथमिक जांच रिपोर्ट दर्ज की थी। 11 साल बाद एफआइआर का निर्णय लिया गया है।

गलत स्कीम में दे दिया लोन

जांच में आया था कि भूखंड पर निर्माण चल रहा है। ऐसे में प्रोजेक्ट लोन स्कीम के तहत लोन दिया जाना चाहिए था। जिसमें प्रोजेक्ट की लागत शामिल होती है और निर्माण के स्तर पर किस्तों में भुगतान किया जाता। इसी वजह से उसको फाइनेसिंग अगेंस्ट एसेट्स स्कीम में लोन दिया गया। जिसमें कुल लोन का नब्बे फीसदी 8.1 करोड़ रुपए 3 दिसंबर 2008 को और शेष 90 लाख रुपए नौ जनवरी 2009 को दे दिए।