
मिलिट्री मशरूम की खेती से लाखों का हो रहा मुनाफा
यंत्रों से सुसज्जित लैब में होती है खेती
एक बार में तीन-चार किलो मिलिट्री मशरूम का उत्पादन होता है। यह तीन माह में तैयार होती है। इस दौरान जीरो कंटामिनेशन रखना पड़ता है। छोटी सी चूक पूरी फसल बर्बाद कर सकती है। मिलिट्री मशरूम को ब्राउन राइस के साथ 120 डिग्री ताप पर ऑटोक्लेव किया जाता है। फिर जार में भरकर जरूरी रसायन डाले जाते हैं। इसके बाद बैक्टीरिया रहित प्रक्रिया से गुजारा जाता है। करीब एक हफ्ता अंधेरे कमरे में रखा जाता है। सात दिन बाद अंकुरण शुरू होता है। फिर इसे पर्याप्त रोशनी वाले कमरे में रखा जाता है। पूरी प्रक्रिया के दौरान कमरे का तापमान 16 से 23 डिग्री रखा जाता है। इसके लिए तापमान की मॉनिटरिंग लगातार करनी होती है। ह्यूमिडिटी नियंत्रित करने के लिए अलग से यंत्रों का उपयोग किया जाता है। पूरी प्रक्रिया के दौरान अलर्ट रहने की आवश्यकता रहती है।
औषधीय गुणों से भरपूर
युवाओं का कहना है, कार्डिसेप्स या मिलिट्री मशरूम यानी कीड़ाजड़ी से प्राकृतिक रूप से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है। कोरोना काल में इसका प्रचलन बढ़ा। चीन, तिब्बत, थाईलैंड आदि देशों में इसका उपभोग पहले से किया जा रहा है। शुगर टाइप-2, अस्थमा, गठिया व कैंसर जैसे रोगों में यह कारगर मानी जाती है।
नैनीताल से लिया प्रशिक्षण
मनीष ने बताया, उत्तराखंड के नैतीताल में मिलिट्री मशरूम की खेती करने वाली दिव्या रावत के बारे में जानकारी मिली। यूट्यूब पर वीडियो देखकर मन बनाया और दोस्त संदीप व अभय से विचार साझा किया। इसके बाद 2018 में तीनों दोस्तों ने नैनीताल से मिलिट्री मशरूम खेती का प्रशिक्षण लिया।
साल भर में 20 किलो मशरूम का उत्पादन होता है। सोशल मीडिया के जरिए मार्केटिंग करते हैं। प्रति किलोग्राम के हिसाब से एक से सवा लाख रुपए मिल जाता है। इस तरह हर साल 20 से 22 लाख रुपए टर्न ओवर हो जाता है। जिसमें लगभग 12 लाख रुपए की आय हो जाती है।
- युवा अभय बिश्नोई, संदीप बिश्नोई और मनीष बिश्नोई
- कृष्ण चौहान ( श्रीगंगानगर)
Published on:
06 Mar 2024 06:21 pm
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