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जिम्मेदारियों के बीच भारतीय महिलाएं चुन रहीं हाइब्रिड वर्किंग मॉडल

देश के महानगरों में ज्यादातर महिलाएं काम करने का हाइब्रिड मॉडल चुन रही हैं। इनमें भी पारिवारिक जिम्मेदारियां उठा रहीं 33-55 आयु वर्ग की महिलाओं की संख्या अधिक है। जबकि कॅरियर के शुरुआती स्तर पर 30 से कम उम्र की महिला पेशेवर ऑफिस से काम करना पसंद करती हैं।

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जयपुर

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Kiran Kaur

Mar 23, 2023

'हाइब्रिड वर्किंग मॉडल' ने महिलाओं को अपने समय का उपयोग करने में अधिक स्वायत्तता प्रदान की है। यह मॉडल कुछ दिन ऑफिस जाने और कुछ दिन घर से ही काम करने से जुड़ा है। आंध्र प्रदेश स्थित क्रिया यूनिवर्सिटी और वीडियो कम्युनिकेशन प्लेटफॉर्म जूम के सहयोग से तैयार की गई 'हाइब्रिड मॉडल और भारत में महिलाओं का काम' रिपोर्ट में कामकाजी महिलाओं के जीवन पर इसके प्रभाव का खुलासा किया गया है। रिपोर्ट के अनुसार देश के महानगरों में ज्यादातर महिलाएं काम करने का हाइब्रिड मॉडल चुन रही हैं। इनमें भी पारिवारिक जिम्मेदारियां उठा रहीं 33-55 आयु वर्ग की महिलाओं की संख्या अधिक है। जबकि कॅरियर के शुरुआती स्तर पर 30 से कम उम्र की महिला पेशेवर ऑफिस से काम करना पसंद करती हैं।

समय की बचत के साथ वित्तीय प्रबंधन में सुधार:

सर्वे में पाया गया कि जब महिलाओं को हाइब्रिड तरीके से काम करने का विकल्प दिया गया तो 71 फीसदी ने इसे स्वीकार किया। 69 फीसदी से अधिक ने बताया कि इस वर्क कल्चर से ऑफिस आने-जाने सहित अन्य खर्चों में कमी से उनके वित्तीय प्रबंधन में सुधार हुआ है। जबकि 89 प्रतिशत ने कहा कि काम के इस तरीके का सबसे बड़ा लाभ समय की बचत है। 80 प्रतिशत ने काम के घंटों के लचीलेपन को महत्वपूर्ण कारक माना।

पश्चिमी भारत में लोकप्रिय हाइब्रिड वर्किंग मॉडल:

कंपनियों में यह वर्किंग मॉडल पश्चिमी भारत में गोवा, गुजरात और महाराष्ट्र आदि में सबसे ज्यादा लोकप्रिय है। यहां 84 प्रतिशत महिलाओं ने कामकाज का यह तरीका चुना। जबकि पूर्वी भारत में बिहार, झारखंड, उड़ीसा, सिक्किम, असम और पश्चिम बंगाल में यह आंकड़ा महज 42 फीसदी तक ही सीमित है। औसतन छोटे संगठन चाहते हैं कि कर्मचारी ऑफिस आकर काम करें, मध्यम आकार की कंपनियों को कामकाज का रिमोट विकल्प पसंद है और बड़े संगठन हाइब्रिड मॉडल को अपना रहे हैं।

तरक्की की संभावनाओं में आती है कमी:

सर्वे में शामिल 50 फीसदी ने बताया कि हाइब्रिड मॉडल में काम करने की वजह से पुरुष समकक्षों की तुलना में महिला कर्मियों की तरक्की की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है। साथ ही लैंगिक भेदभाव भी बढ़ जाता है। इसके अलावा बिना वेतन, घरेलू कामकाज का असमान बोझ भी महिलाओं के लिए हाइब्रिड वर्किंग मॉडल में बना रहता है। 36 प्रतिशत ने माना कि इससे उनके शारीरिक स्वास्थ्य में कमी आई है। जबकि बिजनेस, कंसल्टिंग और समाज सेवा से जुड़ीं 20 प्रतिशत महिलाओं के तनाव में वृद्धि हुई है।

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