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महिलाओं की जिन्हें परवाह नहीं, उनकी तनख्वाह काटो

जवाब नहीं, हिसाब मांगो

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जगदीश विजयवर्गीय
थानागाजी सामूहिक बलात्कार प्रकरण किसे याद नहीं है? राज्य में महिलाओं की सुरक्षा की स्थिति को लेकर पूरे देश में सवाल उठ खड़े हुए थे। खुद राज्य सरकार को लगा था कि महिलाओं की सुरक्षा के लिए कुछ खास प्रबन्ध करने चाहिए। तभी तो आदेश जारी किए थे कि पुलिस विभाग अपने हर जिले में पुलिस उप अधीक्षक स्तर के अधिकारी के नेतृत्व में 'स्पेशल इन्वेस्टिगेशन यूनिट क्राइम अगेंस्ट वूमेनÓ गठित करे। इसकी पालना में पुलिस ने अगस्त के दूसरे पखवाड़े में यह यूनिट गठित भी कर दी लेकिन सरकार और पुलिस की यह गम्भीरता यहीं तक रही। गठित करने के बाद यूनिट को कागजों में दबा दिया गया। पुलिस महानिदेशक ने आदेश दिए थे कि उक्त यूनिट महिलाओं पर हो रहे अपराधों के मामलों में त्वरित एवं प्रभावी कार्रवाई करे। इस यूनिट को अन्य ड्यूटी पर तब ही लगाया जाए, जब विशेष परिस्थिति हो। लेकिन जिलों के पुलिस अधिकारियों ने महानिदेशक के आदेश को भी उसी तरह 'निपटाÓ दिया, जिस तरह वह फरियादियों के मामलों को निपटाते हैं। यूनिट को कहीं वीआइपी ड्यूटी पर लगा दिया गया, कहीं अन्य कामों में झोंका जाता रहा।
यह थानागाजी गैंगरेप को लेकर गम्भीरता है या महिला सुरक्षा के प्रति घोर लापरवाही? पुलिस के 31 जिलों में हर यूनिट में अफसर सहित न्यूनतम 6-7 लोग भी मानें तो प्रदेश में कुल 200 लोगों की मजबूत टीम सामने आती है। पुलिस के इन 200 दमदार अफसर-कार्मिकों को लक्ष्य देकर महिला सुरक्षा के काम में लगाया जाता तो तीन महीने में क्या नहीं हो सकता था? कई दरिन्दों-मनचलों को अंजाम तक पहुंचाया और उनमें खौफ बरपाया जा सकता था। लेकिन हर स्तर पर फिर वही रवैया दिखाया गया, जैसा हर बार दिखाया जाता है। सरकार आदेश देकर भूल गई और जिलों के पुलिस अधिकारी खानापूर्ति करते रहे।
दरअसल, नए दौर में नई प्रवृत्ति चल पड़ी है। जब भी कोई बड़ा अपराध होता है, सियासी लोग और अन्य संस्था-संगठन सड़कों पर उतरते हैं। जनता में उबाल देखकर पुलिस और सरकार कागज रंगती है। फिर मामला ठंडा पड़ते ही हर कोई पुन: अपने-अपने 'कामÓ में लग जाता है। इस इन्तजार में कि कब पिछले से भी बड़ा अपराध हो और हरकत में आने का उपक्रम करें। छोटे-मोटे अपराधों में तो आज सिर्फ सोशल मीडिया पर भड़ास निकालकर चुप्पी साध ली जाती है। यह स्थिति समाज, देश और लोकतन्त्र के लिए ठीक नहीं है।
हालांकि अब पुलिस मुख्यालय ने जिलों के पुलिस अधिकारियों से जवाब मांगा है लेकिन अब यह तय करना होगा कि कागजों में मांगा गया जवाब सिर्फ कागजों तक सीमित होकर न रह जाए। बेहतर हो कि जवाब नहीं बल्कि हिसाब मांगा जाए। जनता की कमाई से वेतन, संसाधन व अन्य सुख भोग रहे अफसर-कार्मिकों ने लक्ष्य पूरा क्यों नहीं किया, आदेश का पालन क्यों नहीं हुआ, जनता और खासकर महिलाओं की सुरक्षा में लापरवाही क्यों बरती गई, इसका हिसाब लिया जाए। जिसके हिसाब में जरा भी कमी पाई जाए, उसके वेतन-सुविधाओं में कटौती की जाए। ताकि आइन्दा कोई आदेश कागजों में न दबे। महिलाओं की सुरक्षा जैसे गम्भीर मुद्दे को फिर कभी नजरअन्दाज न किया जा सके।