ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमरीका की एजेंसियों से बने खुफिया गठबंधन नेटवर्क ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि रूस की ओर से प्रायोजित हैकर्स यूक्रेनी सैन्य कर्मियों के एंड्रॉइड से डाटा चुराने के लिए मैलवेयर का प्रयोग कर रहे थे। यह घटना यूक्रेन के खिलाफ एक दशक से चल रहे साइबर युद्ध अभियान में नवीनतम है। विशेषज्ञ यूक्रेन को वैश्विक डिजिटल युद्धक्षेत्र के लिए 'ग्राउंड जीरो' मानते हैं।
नई दिल्ली। दुनियाभर में युद्ध का नया स्वरूप साइबर वॉर है। विश्व के कई देश वर्चस्व बढ़ाने और दुश्मनों से बदला लेने के लिए इसका सहारा लेने लगे हैं। युद्ध का यह स्वरूप खतरनाक है। इसी साल अगस्त के अंत में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूजीलैंड, ब्रिटेन और अमरीका की एजेंसियों से बने खुफिया गठबंधन नेटवर्क ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया कि रूस की ओर से प्रायोजित हैकर्स यूक्रेनी सैन्य कर्मियों के एंड्रॉइड से डाटा चुराने के लिए मैलवेयर का प्रयोग कर रहे थे। यह घटना यूक्रेन के खिलाफ एक दशक से चल रहे साइबर युद्ध अभियान में नवीनतम है। विशेषज्ञ यूक्रेन को वैश्विक डिजिटल युद्धक्षेत्र के लिए 'ग्राउंड जीरो' मानते हैं।
चीन पर आरोप लगाने वाले देशों की सूची लंबी:
विश्व में इन हमलों के प्रमुख खिलाड़ी रूस, उत्तर कोरिया, चीन और मध्य पूर्व के कई देशों से समर्थित साइबर आपराधिक समूह और संगठन हैं। जैसे-जैसे साइबर युद्ध विकसित हुआ है, चीन से जुड़े हमले भी बढ़े हैं। चीन पर साइबर युद्ध का आरोप लगाने वाले देशों में ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, भारत, जापान और अमरीका आदि शामिल हैं। हालिया एक अमरीकी रिपोर्ट में कहा गया कि चीन, अमरीका में तेल, गैस पाइपलाइनों और रेल प्रणालियों सहित बुनियादी ढांचे को बाधित कर सकता है।
परमाणु ताकत बढ़ाने के लिए कोरियाई जुगत:
उत्तर कोरिया से जुड़े हैकिंग समूह राजनीतिक उद्देश्यों के लिए अवैध धन जुटाने हेतु साइबर हमला करते हैं। पिछले साल उत्तर कोरिया से जुड़े हैकर्स ने रेकॉड 1.7 अरब डॉलर की चोरी की। विशेषज्ञ मानते हैं कि इस चोरी से उत्तर कोरिया अपने सैन्य और परमाणु कार्यक्रमों को वित्तपोषित करता है। उत्तर कोरिया के कड़े इनकार के बावजूद, देश पर कई ऐतिहासिक साइबर हमलों के आरोप लगे हैं जिसमें दक्षिण कोरिया लॉजिक बॉम्ब अटैक और ग्लोबल वाना क्राई अटैक भी शामिल हैं।
सरकारें ले रहीं नॉन-स्टेट एक्टर्स का सहारा:
कई मुद्दे जो कभी आधिकारिक बातचीत, सशस्त्र संघर्ष या सैन्य कार्रवाइयों से निपटाए जाते थे, अब साइबर अपराधियों के हाथों में हैं। वैश्विक सरकारें साइबर जगत में अपना वर्चस्व कायम करना चाहती हैं। लेकिन किसी भी देश को साइबर सेना तैयार करने में वक्त और पैसा लगता है। सभी के पास इतने संसाधन नहीं कि वे अपनी साइबर फौज खड़ी कर लें इसलिए बहुत से देश ऐसे संगठनों की मदद ले रहे हैं, जिन्हें नॉन-स्टेट एक्टर्स कहा जाता है। इनकी मदद से ये देश साइबर जगत में अपनी कमियां दूर कर रहे हैं।
सशस्त्र युद्ध के दायरे से बाहर साइबर वॉर