यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की एक नई रिसर्च बताती है कि इंसानों की जैविक घड़ी (सर्केडियन रिदम) अब भी मौसम के अनुसार बदलती है।
जयपुर। भले ही आज की आधुनिक जीवनशैली ने हमें प्रकृति से दूर कर दिया हो — जैसे कि बिजली की रोशनी और बंद कमरों में रहना — लेकिन यूनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन की एक नई रिसर्च बताती है कि इंसानों की जैविक घड़ी (सर्केडियन रिदम) अब भी मौसम के अनुसार बदलती है।
क्या हैं मुख्य बातें?
रिसर्च से जुड़े वैज्ञानिक रूबी किम कहती हैं, “हम इंसान असल में मौसम के अनुसार ढलते हैं, भले ही हम मानना न चाहें। सूरज की रोशनी की मात्रा हमारे शरीर की कार्यप्रणाली को प्रभावित करती है।”
इस खोज से सीजनल अफेक्टिव डिसऑर्डर (मौसम से जुड़ा डिप्रेशन) और अन्य बीमारियों को बेहतर समझने का रास्ता खुल सकता है।
इसके अलावा, पहले की रिसर्च भी दिखा चुकी है कि जब हमारी नींद की दिनचर्या और हमारी जैविक घड़ी एक-दूसरे से मेल नहीं खातीं, तो इससे मूड और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होता है।
रिसर्च में पाया गया कि कुछ लोगों के जीन ऐसे होते हैं जो मौसम के बदलाव के प्रति ज्यादा संवेदनशील होते हैं। इससे यह समझने में मदद मिल सकती है कि कुछ लोग शिफ्ट वर्क (बार-बार बदलने वाला काम का समय) को क्यों बेहतर तरीके से झेलते हैं और कुछ क्यों नहीं।
वैज्ञानिक डैनियल फॉरजर बताते हैं, “कुछ लोगों के लिए यह सामान्य हो सकता है, लेकिन दूसरों के लिए यह बहुत मुश्किल भरा हो सकता है।”
रिसर्च में यह भी सामने आया कि हमारे शरीर में सिर्फ एक नहीं, बल्कि दो जैविक घड़ियां होती हैं — एक सुबह यानी सूर्योदय को ट्रैक करती है और दूसरी शाम यानी सूर्यास्त को। ये दोनों एक-दूसरे से संवाद करती हैं।
इस अध्ययन में हजारों मेडिकल इंटर्न (ट्रेनिंग कर रहे डॉक्टरों) के डेटा का विश्लेषण किया गया, जिन्होंने एक साल की इंटर्नशिप के दौरान वियरेबल डिवाइसेज पहने थे। इंटर्न की शिफ्ट बार-बार बदलती रहती है, जिससे उनकी नींद पर असर पड़ता है।
फिर भी, उनकी नींद की घड़ी में मौसम के अनुसार बदलाव देखे गए — जो यह दिखाता है कि यह प्रणाली हमारे भीतर गहराई से जुड़ी हुई है।
प्रकृति में फल मक्खियों और चूहों पर हुई रिसर्च पहले ही यह दिखा चुकी है कि जानवरों की भी जैविक घड़ियां मौसम के अनुसार बदलती हैं। अब यह शोध इंसानों में भी इसका सटीक प्रमाण देता है।
शोध में शामिल प्रतिभागियों ने डीएनए टेस्ट के लिए लार के नमूने भी दिए। इससे यह जानने में मदद मिली कि जिन लोगों में एक खास जीन में मामूली बदलाव थे, उनमें मौसम के अनुसार उनकी नींद और जैविक घड़ी का तालमेल अधिक बिगड़ता था।
यह रिसर्च एक शुरुआती लेकिन महत्वपूर्ण कदम है, जो यह दिखाता है कि हम इंसान अब भी प्रकृति और सूरज की रोशनी से गहराई से जुड़े हुए हैं। आने वाले समय में वैज्ञानिक यह जानने की कोशिश करेंगे कि यह जैविक प्रणाली हमारी सेहत को कैसे प्रभावित करती है, खासकर उन लोगों में जो शिफ्ट वर्क करते हैं।