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हकीकत में वजन घटाने के इंजेक्शन उतने असरदार नहीं, जितना क्लिनिकल ट्रायल में दिखा: अध्ययन

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉ. करन छाबड़ा के अनुसार, "हकीकत में इन दवाओं का इस्तेमाल करने वाले औसत मरीज को उतना वजन कम करने का लाभ नहीं मिल रहा, जितना क्लिनिकल ट्रायल्स में देखा गया था।

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जयपुर। एक नए अध्ययन के मुताबिक, मोटापा घटाने के लिए इस्तेमाल होने वाले इंजेक्शन (जैसे वेगोवी और माउंजारो) हकीकत की दुनिया में उतने असरदार नहीं हैं, जितने कि क्लिनिकल ट्रायल्स में नजर आते हैं।

ये इंजेक्शन सेमाग्लूटाइड और टिर्ज़ेपाटाइड दवाओं पर आधारित हैं और मोटापे के इलाज में एक क्रांतिकारी बदलाव माने जा रहे हैं। पहले के शोध बताते हैं कि इनसे इलाज के 72 हफ्तों में व्यक्ति अपने शरीर का लगभग 20% वजन कम कर सकता है।

लेकिन नई रिसर्च के अनुसार, असल जीवन में इन दवाओं से इतना ज्यादा वजन कम नहीं हो रहा है।

न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के ग्रॉसमैन स्कूल ऑफ मेडिसिन के डॉ. करन छाबड़ा के अनुसार, "हकीकत में इन दवाओं का इस्तेमाल करने वाले औसत मरीज को उतना वजन कम करने का लाभ नहीं मिल रहा, जितना क्लिनिकल ट्रायल्स में देखा गया था।"

शोधकर्ताओं ने 51,085 ऐसे मरीजों का डाटा विश्लेषण किया जिनका बॉडी मास इंडेक्स (BMI) 35 या उससे अधिक था और जो या तो वजन घटाने की सर्जरी या इन दवाओं के लिए योग्य थे।

इसमें 38,545 लोग ऐसे थे जिन्हें डॉक्टर ने सेमाग्लूटाइड या टिर्ज़ेपाटाइड लिखी थी, और 12,540 ऐसे लोग थे जिन्होंने वजन घटाने की सर्जरी करवाई। इन दोनों समूहों के आंकड़े 3 साल तक के समय के लिए देखे गए।

परिणाम ये निकला कि जिन लोगों ने सर्जरी करवाई थी, उन्होंने हर समयावधि में औसतन कहीं ज्यादा वजन घटाया। उदाहरण के तौर पर, दो साल बाद सर्जरी करवाने वालों का औसतन 26.5% वजन कम हुआ, जबकि दवा लेने वालों का केवल 5.7%।

यह अध्ययन अभी समीक्षा (peer review) के लिए नहीं गया है और इसे अमेरिकन सोसाइटी फॉर मेटाबोलिक एंड बैरिएट्रिक सर्जरी की 2025 की सालाना बैठक में प्रस्तुत किया जाना है।

डॉ. छाबड़ा कहते हैं, “20% से 30% वजन कम करने का सबसे भरोसेमंद तरीका बैरिएट्रिक सर्जरी है।”

उन्होंने यह भी कहा कि असल जीवन में दवाओं से कम असर क्यों हो रहा है, इसका स्पष्ट कारण नहीं है। संभव है कि इसकी कीमत, पहुंच की समस्याएं, लंबे समय तक उपयोग में कठिनाई, और डॉक्टरों की ओर से सही निगरानी की कमी इसकी वजह हो सकती है — जैसे कि धीरे-धीरे डोज़ बढ़ाना, साइड इफेक्ट्स पर ध्यान देना और मरीज को अतिरिक्त सहायता देना।

उन्होंने यह भी कहा कि इन दवाओं से अधिकतम लाभ पाने के लिए और काम करने की जरूरत है।

"हमारा लक्ष्य यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को मोटापे के सही इलाज तक पहुंचाया जाए। लेकिन लोगों को यह जानना जरूरी है कि जो इलाज वे चुन रहे हैं, उससे वे क्या उम्मीद कर सकते हैं — और यह उम्मीद क्लिनिकल ट्रायल्स नहीं, बल्कि हकीकत के आंकड़ों पर आधारित होनी चाहिए,” उन्होंने कहा।

ग्लासगो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर नवीन सत्तार, जो इस शोध में शामिल नहीं थे, ने कहा कि कुछ ट्रायल्स में टिर्ज़ेपाटाइड से तीन साल में काफी वजन कम होते देखा गया है। लेकिन वास्तविक जीवन में कई मरीज इन दवाओं को समय से पहले बंद कर देते हैं — या तो कीमत की वजह से या साइड इफेक्ट्स को ठीक से ना संभाल पाने के कारण।