भारत और चीन, जी20 के लिए मुख्य विकास इंजन बने हुए हैं, लेकिन अन्य देश समावेशन और स्थिरता के मामले में बेहतर स्कोर कर रहे हैं। यूरोपीय देश, जापान और कोरिया जीवन प्रत्याशा से लेकर बैंक खातों वाली जनसंख्या की हिस्सेदारी जैसे कई संकेतकों पर आगे हैं।
नई दिल्ली। भारत, चीन और इंडोनेशिया 2030 तक जी20 देशों में दुनिया की सबसे बड़ी कामकाजी उम्र वाली आबादी वाले पांच देशोंं में से तीन होंगे। ग्लोबल मैनेजमेंट कंसल्टिंग फर्म मैकिन्से की हालिया जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया ऐसी दहलीज पर खड़ी है, जहां आर्थिक ताकत पूर्वी देशों की ओर स्थानांतरित हो रही है। वैश्विक देश एक-दूसरे पर निर्भर हैं। लेकिन डिजिटल और डाटा संचार ने दुनिया को पहले से कहीं अधिक परस्पर निर्भर बना दिया है। भारत और चीन, जी20 के लिए मुख्य विकास इंजन बने हुए हैं, लेकिन अन्य देश समावेशन और स्थिरता के मामले में बेहतर स्कोर कर रहे हैं। यूरोपीय देश, जापान और कोरिया जीवन प्रत्याशा से लेकर बैंक खातों वाली जनसंख्या की हिस्सेदारी जैसे कई संकेतकों पर आगे हैं।
जी20 देशों में मौजूद गरीबी का स्तर:
यह शोध इस बात की जांच करता है कि 2030 तक सभी के लिए न्यूनतम जीवन स्तर को बढ़ाने और कम उत्सर्जन वाले निवेश में तेजी लाने के लिए जी20 देशों को क्या करना होगा। जी20 अर्थव्यवस्थाओं में आधी से अधिक आबादी, लगभग 2.6 अरब लोग 'आर्थिक सशक्तिकरण' (इसमें यह सुनिश्चित करना शामिल है कि हर किसी के पास बुनियादी सुविधाओं तक पहुंचने के साधन हों) की रेखा से नीचे रहते हैं। विश्लेषण में पाया गया कि इस आबादी का 75 फीसदी से अधिक हिस्सा भारत और दक्षिण अफ्रीका में रहता है। इसके बाद ब्राजील, चीन, इंडोनेशिया और मैक्सिको का स्थान है। यूरोप और उत्तरी अमरीका जैसी विकसित अर्थव्यवस्थाओं में लगभग 20-30 प्रतिशत लोग इस रेखा के नीचे रहते हैं। गरीबी कम करने के लिए जी20 अर्थव्यवस्थाओं को 2030 तक आवश्यक वस्तुओं पर खर्च में 21 ट्रिलियन डॉलर की वृद्धि करनी होगी।
50% तक घटाना होगा कार्बन उत्सर्जन:
पर्यावरण के लिहाज से उभरती अर्थव्यवस्थाओं में प्रति व्यक्ति कार्बन उत्सर्जन सबसे कम है। सालाना 31 गीगाटन कार्बनडाइ ऑक्साइड उत्सर्जित करने वाली जी20 अर्थव्यवस्थाओं में इसे कम करने की दिशा में ठोस प्रगति हुई है। लेकिन समय पर शुद्ध-शून्य के लक्ष्य तक पहुंचने के लिए कार्बन उत्सर्जन को 2020 के मुकाबले 2030 तक लगभग 50 प्रतिशत कम करना होगा। 2050 तक शुद्ध-शून्य के लिए मौजूदा खर्च के अलावा इस दशक के अंत में लगभग 35 ट्रिलियन डॉलर का निवेश करने की आवश्यकता होगी। साथ ही कम उत्सर्जन वाली बिजली उत्पादन के लिए जीवाश्म ईंधन से दूरी, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा और उन संपत्तियों को रिटायर करना होगा जो भारी मात्रा में ग्रीनहाउस गैसों का कारण बनती हैं।
कई मोर्चों पर हुई भारत की प्रशंसा:
रिपोर्ट में भारत के संबंध में कहा गया है कि जन धन खातों, आधार और मोबाइल ने वित्तीय समावेशन में सुधार किया है, जिससे सरकारी सब्सिडी के वितरण में पारदर्शिता बढ़ी है। कोविन पोर्टल के माध्यम से भारत ने एक समग्र टीकाकरण पारिस्थितिकी तंत्र बनाया। पोषण से भरपूर फसलों का उत्पादन बढ़ाकर देश और वैश्विक स्तर पर मोटे अनाज के बारे में जागरुकता बढ़ाई है। यह दुनिया के सबसे सस्ते सौर ऊर्जा उत्पादकों में से एक है। साथ ही दोपहिया इलेक्ट्रिक वाहनों के मामले में भी भारत के प्रमुख खिलाड़ी बनने पर सराहना की गई।