
नई दिल्ली। सितंबर में 1965 की लड़ाई निर्णायक मोड़ पर थी। पाकिस्तान अपने विशेष तकनीक से लैस पैटन टैंकों के साथ भारत की सरजमीं की ओर बढ़ रहा था। 10 सितंबर को अब्दुल हमीद पाकिस्तानी टैंकों को ध्वस्त करते हुए शहीद हो गए। अब्दुल हमीद की शहादत ने भारतीय सैनिकों में जोश भर दिया।
अब्दुल हमीद की शहादत के बाद पाकिस्तानी सेना अमृतसर की ओर कूच करने लगी। सैनिकों के काफिले में सबसे आगे 2 जीप चल रही थी, जिस पर ब्रिगेडियर स्तर के अधिकारी थे। इधर भारत के दो वीर सपूत पाकिस्तानी सैनिकों का शिकार करने के लिए घात लगाकर बैठे थे।
ये दो जवान भारतीय सेना के 4 ग्रेनेडियर्स विंग के थे, जिनका नाम मोहम्मद शफीक और मोहम्मद नौशाद था। दोनों दोस्त थे और साथ ही में सेना ज्वाइन की थी। अब्दुल हमीद की शहादत के बाद भारतीय सेना के अधिकारियों ने इन्हें पाकिस्तानी सैनिकों को सबक सिखाने की जिम्मेदारी सौंपी थी। जहां पर अब्दुल हमीद शहीद हुए थे वहीं पर इन दोनों जांबाजों ने मोर्चा संभाला था।
दोनों ने तय किया कि जैसे ही पाकिस्तानी सैनिक पास आएंगे वैसे ही वे ताबड़तोड़ हमला कर उनको सबक सिखा देंगे।
इन दोनों जांबाजों की प्लानिंग से बेखबर पाकिस्तानी फौज आगे बढ़ रही थी। तभी शफीक और नौशाद ने लाइट मशीन गन (एलएमसी) से उनपर गोलियां बरसाना शुरू कर दी।
फायरिंग इतनी जबरदस्त थी कि पाकिस्तानी सेना के जवान अपनी जान बचाने को इधर उधर भागने लगे। जब पाकिस्तानी जवानों को कोई रास्ता नहीं मिला तो कोई पानी में कूद गया तो कोई खेतों में जा छिपा। भारत के जांबाजों की फायरिंग में पाकिस्तान के ब्रिगेड कमांडर ए.आर.शमीम और पाकिस्तान के फर्स्ट आर्म्ड डिविजन के मेजर जनरल नासिर अहमद खान मारे गए।
ताबड़तोड़ फायरिंग और अधिकारियों के मारे जाने से पाकिस्तानी सैनिकों का हौसला टूट गया था। कुछ ही पल में दोनों जवानों ने ब्रिगेडियर की जीप पर कब्जा कर लिया। दोनों जवानों की ओर से जवाबी कार्रवाई से पाकिस्तानी सैनिक बुरी तरह डर गए थे।
उन्हें डर था कि कहीं उनके मारे जाने के बाद भारतीय सेना उनके आधुनिक टैंकों पर कब्जा करके पाकिस्तान पर कार्रवाई न कर दे। इस वजह से उन्होंने अपने टैंकों को आग लगाकर वापस जाना ही सही समझा। एक-एक करके पाकिस्तानी सैनिकों ने अपने टैंक में आग लगाई और वापस लौट गए।
Published on:
22 Sept 2017 07:48 pm
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