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विलुप्त नदी के साथ मिले श्रीकृष्ण के समय के बर्तन व औजार

गिर्राज शर्मा / जयपुर . गोवर्धन गिरिराजजी से महज 6 किलोमीटर दूर विलुप्त हो चुकी नदी के साथ महाभारत काल की पीजीडब्ल्यू संस्कृति (हस्तिनापुर) के प्रमाण मिले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को यह बड़ी उपलब्धि डीग जिले के बहज गांव में चल रही खुदाई में मिली है। जमीन से 24 मीटर नीचे नदी […]

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गिर्राज शर्मा / जयपुर . गोवर्धन गिरिराजजी से महज 6 किलोमीटर दूर विलुप्त हो चुकी नदी के साथ महाभारत काल की पीजीडब्ल्यू संस्कृति (हस्तिनापुर) के प्रमाण मिले हैं। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को यह बड़ी उपलब्धि डीग जिले के बहज गांव में चल रही खुदाई में मिली है। जमीन से 24 मीटर नीचे नदी का 2 मीटर मोटाई का कंकड व रेत का जमाव मिला है, वहीं भगवान श्रीकृष्ण के समय के बर्तन और औजार मिले हैं।

एएसआई के जयपुर मंडल की ओर से बहज में उत्खनन किया जा रहा है। इसमें पुरातात्विक जो प्रमाण मिले हैं, उसमें पीजीडब्ल्यू संस्कृति का करीब 9 मीटर मोटा जमाव मिला है। एएसआई के अफसरों की मानें तो अब तक भगवान श्रीकृष्ण के समय के 2 ही प्रमाण साक्षात उपलब्ध है, इसमें यमुना नदी और गोवर्धन पर्वत शामिल है। अब इस उत्खनन में जो प्रमाण मिले है, वे ब्रज क्षेत्र और भगवान श्रीकृष्ण के समय की प्राचीनता को सिद्ध करने में सहायक होंगे। यहां भगवान शिव व मां पार्वती की अलग-अलग मृण्मूर्तियां (मिट्टी की मूर्तियां) मिली है, जो 3 हजार साल से अधिक पुरानी बताई जा रही है।

पहले आंकी गई थी मथुरा की प्राचीनता 2700 साल पुरानी
एएसआई के अफसरों की मानें तो वर्ष 1973 से 1977 तक मथुरा उत्खनन में जो प्रमाण मिले थे, उसमें मथुरा की प्राचीनता पुरातात्विक तिथि के अनुसार 2600 से 2700 साल वर्ष पूर्व की आंकी गई थी, जबकि इस उत्खनन के बाद मथुरा की प्राचीनता 5100 साल पुरानी होने के प्रमाण मिल रहे हैं। पहले उत्खनन में पीजीडब्ल्यू संस्कृति के पात्रों में केवल 5 टुकड़े ही प्राप्त हुए थे और नियमित जमाव तो मिला नहीं था, जबकि बहज में सैकड़ों मिट्टी के बर्तन मिले हैं, ये भगवान श्रीकृष्ण के समय के बताए जा रहे हैं। कुछ प्रमाण भगवान श्रीकृष्ण के पहले के मानव जीवन के भी बताए जा रहे हैं।

खास-खास
- बहज उत्खनन में मध्य पाषाण कालीन संस्कृति के भी प्रमाण मिले है। हालांकि अधिकारियों ने इसकी जानकारी देने से मना कर दिया।
- यहां हड्डियों से निर्मित औजार भी मिल चुके है, जिसमें सूई के आकार के ऐसे अनूठे औजार शामिल है, जो पहले देश में कहीं भी नहीं मिले हैं।
- एएसआई ने बहज गांव में 10 जनवरी 2024 से उत्खनन कार्य शुरू किया
- खुदाई में सबसे कुषाण कालीन अवशेष, उसके बाद शुंग कालीन, मौर्य कालीन, महाजनपद कालीन संस्कृति के भी अवशेष मिले हैं।

10 जनवरी से चल रहा उत्खनन कार्य
बहज में 10 जनवरी से उत्खनन कार्य चल रहा है, इसमें पुरास्थल के नीचे विश्व में पहली बार पुरातात्विक उत्खनन में विलुप्त नदी के प्रमाण मिले हैं। इसमें विभिन्न प्राचीन संस्कृतियों के ऐसे प्रमाण भी मिले हैं, जो भारतीय पुरातत्व संबंधी अध्ययन को नए आयाम देंगे।
- विनय कुमार गुप्ता, अधीक्षण पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण जयपुर मंडल