scriptComment : मुंबई का विकास जरुरी, क्या लोगों का भरोसा जीतना नहीं? | why aarey forest has been demolished if mumbaikars are not happy | Patrika News
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Comment : मुंबई का विकास जरुरी, क्या लोगों का भरोसा जीतना नहीं?

प्रहार (Aarey Forest)
क्या उनको इस बात का जवाब नहीं देना पड़ेगा कि एक पेड़ (Tree) को बड़ा होने और जिन्दगी देने में कितना समय लगता है?
न जाने मौसम (Seasons) की कितनी मार झेलनी पड़ती है?
कुदरत (Nature) के कोप का भाजक बनना पड़ता है?
इंसानों (Human Being) की बदनीयती (Bad Intention) से बचना पड़ता है?
तब कहीं जाकर बरसों की तपस्या (Austerity) और त्याग (Sacrifice) के बूते हरियाली से आच्छादित मुकाम देता है।

मुंबईOct 08, 2019 / 09:49 pm

Rajesh Kumar Kasera

Comment : मुंबई का विकास जरुरी, क्या लोगों का भरोसा जीतना नहीं?

Comment : मुंबई का विकास जरुरी, क्या लोगों का भरोसा जीतना नहीं?

– राजेेश कसेरा

मुंबई में गोरेगांव क्षेत्र में स्थित आरे कॉलोनी (Aarey Colony) में बीती रात से शनिवार शाम तक जिस निर्ममता के साथ सैकड़ों हरे-भरे पेड़ काट (Cutting Lush Green Trees) दिए गए, उससे मुंबईकरों के दिलों पर गहरी चोट पहुंची। भयंकर गुस्सा भी आया, जिसे उजागर करने के लिए वे पेड़ों को बचाने तक पहुंचे। लेकिन, वहां भी भारी संख्या में तैनात पुलिस बल ने खदेड़ दिया। जिन्होंने पीछे हटने से इनकार किया तो गिरफ्तार कर लिया। वहीं जो नहीं माने उनको हिरासत में लेकर दूर भेज दिया गया।
लाखों मुंबईकर ऐसे भी होंगे, जो मौके पर तो नहीं गए, पर पेड़ों के जमींदोज होने का दर्द वे भी महसूस कर रहे होंगे। सोशल मीडिया पर जिस तरह से पूरे दिन यह मुद्दा गूंजता रहा, उससे एक बात तो साफ हो गई कि विकास पर कुल्हाड़ी कोई नहीं चलाना चाहता। लेकिन उसी विकास के नाम पर एक ही दिन में 1500 पेड़ों की बलि दे दी गई तो उसे कैसे सही ठहराएंगे? इसी सवाल के जवाब का इंतजार मुंबईकर लम्बे समय से कर रहे हैं। और दुर्भाग्य की बात है कि किसी जिम्मेदार जनप्रपतिधि या अधिकारी ने इस बात का जवाब नहीं दिया। कुछ किया तो 2700 पेड़ों को काटने का आदेश देना और जो विरोध करे, उसकी आवाज को दबा देना।
सवाल यहां एक और उठता है कि मुंबई में विकास किसके लिए हो रहा है? आम लोगों के लिए ही ना। मगर, वे ही खुश नही हैं तो किसे राजी रखने के लिए इतने प्रपंच हो रहे हैं? मैट्रो के विकास जितना ही जरुरी है कि मुंबईकरों को भी भरोसे में लिया जाए। आरे कॉलोनी में बसा सघन वन मुंबई का ऑक्सीजन पॉकेट है,जिस पर सब गर्व करते रहे हैं। विकास की दौड़ में जिस तरह से देश की आर्थिक राजधानी कंकरीट के जंगलों में फैली है, उसमें आरे जंगल ने कहीं न कहीं छाया और सुकून देने का काम किया है। यही कारण रहा कि भारत रत्न लता मंगेशकर से लेकर इस महानगर में रहने वाली सभी शख्सियतों ने पेड़ों के कटने के खिलाफ आवाज उठाई। बॉलीवुड के कई सितारे इस निर्णय के विरोध में खड़े हो गए।
मुंबई के युवा, महिला और जागरुक नागरिक तक सब एकजुट हो गए। यहां तक की महाराष्ट्र सरकार में शामिल शिवसेना तक ने इस निर्णय को गलत करार दिया। इतना सब होने के बावजूद किसी नए रास्ते या योजना पर काम करने के बजाय आरे जंगल को नेस्तनाबूद करना ज्यादा आसान लगा। यातायात समस्या और जाम से जूझने वाली मुंबई को मैट्रो का विस्तार बड़ी राहत देगा, पर आरे जैसी हरियाली को बर्बाद करने पर क्या पर्यावरण संतुलन का खतरा नहीं बढ़ेगा? इसकी सफाई में केन्द्रीय पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावडेकर कह रहे हैं कि एक पेड़ के बदले पांच पौधे रौपे जाएंगे। उनकी यह पहल अनुकरणीय है, पर क्या उनको इस बात का जवाब नहीं देना पड़ेगा कि एक पेड़ को बड़ा होने और जिन्दगी देने में कितना समय लगता है? न जाने मौसम की कितनी मार झेलनी पड़ती है? कुदरत के कोप का भाजक बनना पड़ता है?इंसानों की बदनीयती से बचना पड़ता है? तब कहीं जाकर बरसों की तपस्या और त्याग के बूते हरियाली से आच्छादित मुकाम देता है।
सरकार विकास करे और मुंबई को तेजी से आगे बढ़ने वाला महानगर भी बनाए, पर ऐसा विनाश करके तो हरगिज नहीं। आने वाले पीढ़ी को हम विरासत में आरे जंगल जैसे ऑक्सीजन हब सौंपेगे तो वे बेहतर ढंग से सांसें ने सकेंगे। उनका स्वास्थ्य मजबूत बनेगा और मुंबई के साथ प्रदेश और देश का भी। इसके लिए ऐसे ठोस रास्ते निकलने होंगे जो विकास की परिभाषा काे सार्थक करे। और हां, देरी अब भी नहीं हुई है।
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