सुरेन्द्र ओझा @ श्रीगंगानगर. पंजाब की सीमा से सटे साधुवाली गांव की इंदिरा ने बीते दो साल में खास मुकाम हासिल किया है। वह कभी स्कूल नहीं गई, लेकिन उनका उद्योग उन्हें सफलता के सोपान चढ़ा रहा है। उनके बनाए सॉफ्ट टॉयज की डिमांड विदेशों में हैं। आत्मनिर्भर बनने की उनकी यह यात्रा दो साल पहले ही शुुरू हुई है, कोरोना काल में इंदिरा ने जिला परिषद से सॉफ्ट टॉयज मेकर एंड सेलर की ट्रेनिंग ली, उसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा और अपने परिवार को आर्थिक रूप से मजबूत करने की पहल की।
इंदिरा ने अपने आसपास की महिलाओं के साथ स्वयं सहायता समूह बनाकर इस हुनर की धार तेज की। लुधियाना और नई दिल्ली से कच्चा माल मंगवाकर महिलाएं अपने घर में ही सॉफ्ट टॉयज तैयार कर रही हैं। इन महिलाओं के बनाए टेडी बियर और हाथी हाथों-हाथ बिक रहे हैं। मेलों के जरिए भी इनके बनाए सॉफ्ट टॉयज की बिक्री हो रही है।
साधुवाली की इंदिरा का कहना है कि मैँने गुणवत्ता पर फोकस किया। हैंडीक्राफ्ट में तो रुचि हमेशा से ही थी, लेकिन इस हुनर को उद्योग में उतारने का तरीका ट्रेनिंग के बाद आया। महीने में 50 से 60 हजार रुपए आय होती है, गांव की महिलाओं के जीवन स्तर में सुधार आया है। वह सिर्फ हिसाब-किताब और प़ढ़ना जानती है लेकिन लिखना नहीं। उसके पास पांच फीट के टेडी बियर जैसे खिलौनों के लिए पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान के कई जिलों के अलावा विदेशों से भी ऑर्डर आने लगे हैं। इससे उसका कारोबार बढ़ा है। इसके हाथों से बने टेडी बियर, गुड़िया, हार्ट, बॉल, बंदर, डॉग, खरगोश, गिलहरी, शार्क, कछुआ, जिराफ, हाथी, डोरीमोन, पेपापिंग, यूनिकोन आदि खिलौने पुष्कर, उदयपुर और जयपुर मेले से विदेशों में पहुंच गए हैं। विदेशी बच्चों को इतने पंसद आए कि वे अब ऑनलाइन बुकिंग कराने लगे है। मैं तो कभी पढ़ नहीं पाई, लेकिन अपने बच्चों को पढ़ा रही हूं।
तत्कालीन जिला कलक्टर रुकमिण रियार सिहाग ने सॉफ्ट टॉयज की ट्रेनिंग के दौरान महिलाओं को आगे बढ़ने का मूल मंत्र दिया था, इस कारण अब आसपास गांव में महिलाओं में लडडू गोपाल या हैंडी क्रॉफ्ट के साथ साथ सॉफ्ट टॉयज के प्रति हौंसला बढ़ाया। इंदिरा बताती है कि तत्कालीन कलक्टर ने ही मुझे और उसके साथ काम करने वाली महिलाओं को पुष्कर, उदयपुर, जयपुर जैसे मेले में स्टाल निशुल्क लगाने के लिए व्यवस्था की। जिस प्लेटफार्म की तलाश थी, वह मिल गया।