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India Pak News: ऐसा होता था 54 साल पहले ब्लैक आउट: दीवारों पर गोबर कर छुपाई जाती थी सफेदी

ग्रामीण महिला बाधु देवी ने बताया कि 1971 के युद्ध के समय वह रायसिंहनगर बॉर्डर क्षेत्र में रहते थे। युद्ध के समय रात को अंधेरा करने सिलसिला उस समय भी होता था। सीमा से सटे सैकड़ों गांवों ने न केवल खुद को अंधेरे में ढाल लेते थे।

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अनूपगढ़ रेड अलर्ट के लिए लगाया गया सायरन।

अनूपगढ़ रेड अलर्ट के लिए लगाया गया सायरन।

अनूपगढ़. भारत-पाक युद्ध की 1971 की वो सर्द रातें जब सीमा से सटे गांवों में न तो बिजली थी, न सायरन बजाने की सुविधा फिर भी हर घर हर एक देश की सुरक्षा में सतर्क प्रहरी बनकर खड़ा था। भारत पाकिस्तान के बीच उपजे तनाव के बीच वृद्धजनों को फिर एक बार 54 साल पुराने दिन याद करवा दिए।

ग्रामीणों ने बताया कि हालांकि 1971 के बाद भी कई बार सीमावर्ती क्षेत्र में तनाव का माहौल बना है लेकिन इस तरह रोजाना रेड अलर्ट तथा ब्लैक आउट की स्थिति नहीं आई। एक बार उपजे तनाव में जब उनके खेतों में माइंस दबा दी गई थी, रोज किसी पशु आदि के माइंस पर चढ़ जाने के कारण धमाके सुने जाते थे।

लालटेन आदि बुझा कर अंधेरा कर देते थे

लेकिन उस दौर में भी ब्लैक आउट की स्थिति नहीं आई। ग्रामीणों ने बताया कि आज गांवों में गुरुद्वारा आदि से मुनियादी करवा कर सतर्क कर दिया जाता है। लेकिन 1971 के युद्ध में लेकिन तब गांवों की जागरूकता ही सबसे बड़ी सुरक्षा दीवार थी।

ग्रामीणों ने बताया कि अब विद्युतीय प्रकाश की व्यवस्था है। 1971 के युद्ध में जब गांवों का विद्युतीकरण नहीं हुआ था। ग्रामीण रात्रि के समय प्रकाश के लिए लालटेन दीपक का आदि का प्रयोग करते थे। सेना के द्वारा जब अंधेरा करने के लिए सन्देश पहुंचाया जाता था तो लोग दीपक, लालटेन आदि बुझा कर अंधेरा कर देते थे।

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खतरे की सूचना ढोल की धीमी थाप या खास सीटी के स्वर से दी जाती थी। ग्रामीण महिलाओं ने बताया कि रात का खाना भी दिन रहते बना लिया जाता था ताकि रात्रि में चूल्हे भी नहीं जलाए और ताकि धुआं दुश्मन को संकेत नहीं दे। उन्होंने बताया कि उस समय एक बार धमाके सुने गए थे, खिड़कियां गेट दरवाजे खटके थे। बताया गया कि भातिवाल में बम गिरा था।

सफेदी को छुपाने के लिए गोबर का लेप

ग्रामीण महिला बाधु देवी ने बताया कि 1971 के युद्ध के समय वह रायसिंहनगर बॉर्डर क्षेत्र में रहते थे। युद्ध के समय रात को अंधेरा करने सिलसिला उस समय भी होता था। सीमा से सटे सैकड़ों गांवों ने न केवल खुद को अंधेरे में ढाल लेते थे। महिला ने बताया कि जहां दीपक लालटेन आदि को बंद कर दिया जाता था। वहीं घरों पर की गई सफेदी या चूना भी दूर से नजर नहीं आए, आबादी क्षेत्र का पता नहीं चले इसलिए घरों पर गोबर का लेप कर सफेदी को भी छुपाया गया था।

तरीका नया, जोश वहीं

गांव के युवा ने बताया कि उनके दादा उन्हें ब्लैक आउट करने के बारे के तरीकों के बारे में बतलाते थे। लेकिन आज उन्होंने खुद ब्लैक आउट रेड अलर्ट ग्रीन अलर्ट आदि शब्दों को सुना है। तनाव का माहौल को महसूस किया गया। लेकिन तनाव के साथ जोश है।

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