5 दिसंबर 2025,

शुक्रवार

Patrika LogoSwitch to English
home_icon

मेरी खबर

icon

प्लस

video_icon

शॉर्ट्स

epaper_icon

ई-पेपर

राजस्थान विधानसभा चुनाव: आजादी के तीन साल बाद बना इस जिले में कांग्रेस का संगठन

Rajasthan Election: प्रदेश में विधानसभा के प्रथम चुनाव 1952 में हुए तो कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल चुनावी रण में उतरे। आजादी के आंदोलन में कांग्रेस ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और आजादी के बाद इसी पार्टी के नेताओं के नाम जनता की जुबान पर चढ़े हुए थे।

2 min read
Google source verification
election_.jpg

Rajasthan Assembly Election 2023 : प्रदेश में विधानसभा के प्रथम चुनाव 1952 में हुए तो कांग्रेस सहित कई राजनीतिक दल चुनावी रण में उतरे। आजादी के आंदोलन में कांग्रेस ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया और आजादी के बाद इसी पार्टी के नेताओं के नाम जनता की जुबान पर चढ़े हुए थे। इसी वजह से कांग्रेस सबसे ज्यादा सत्ता में रही। श्रीगंगानगर जिले में कांग्रेस पार्टी की विधिवत स्थापना आजादी के तीन साल बाद 1950 में हुई। वर्ष 1964 में इसकी सदस्य संख्या 30 हजार थी।

विधानसभा के प्रथम चुनाव तक कांग्रेस पार्टी का सांगठनिक ढांचा तैयार हो चुका था। जिले के सभी तहसील मुख्यालयों पर इसकी कार्यकारिणी बन चुकी थी। इस चुनाव में सभी पांच सीटें जीत कर पार्टी ने अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत की तो विपक्ष को सत्ता में आने के लिए लंबा इंतजार करना पड़ा। आपातकाल के बाद 1977 में हुए चुनाव में जनता ने आपातकाल के दौरान भोगी पीड़ा का गुस्सा कांग्रेस पर उतारा। आपातकाल के बाद बनी जनता पार्टी की सरकार प्रदेश में बनी और भैंरोसिंह शेखावत मुख्यमंत्री बने।

आई और चली गई: राम राज्य परिषद पार्टी की स्थापना 1950 में हुई। इसकी शाखाएं सादुलशहर, हनुमानगढ़, नोहर, सूरतगढ़, रायसिंहनगर और संगरिया में थी। पार्टी के शुरुआती सदस्यों की संख्या तीन हजार थी। वर्ष 1952 में तीन सीट पर चुनाव लड़ा। स्वतंत्र पार्टी, किसान जनता संयुक्त पार्टी, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी सहित सेड्यूल कास्ट पार्टी भी राजनीति में भाग्य आजमाने के लिए चुनावी मैदान में आई। जनता से ज्यादा समर्थन नहीं मिला तो यह पार्टियां हाशिये पर चली गई। आपातकाल के बाद जनता पार्टी, जनता दल, लोकदल सहित कई और पार्टियों का उदय हुआ, लेकिन आज इन पार्टियों का इस इलाके में कोई अस्तित्व नहीं। कांग्रेस और भाजपा के बाद अब बसपा, आम आदमी पार्टी और राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी के चर्चे चुनावी रण में हो रहे हैं। इन पार्टियों की नजर कांग्रेस और भाजपा के बागियों पर है।

यह भी पढ़ें : राजनीतिक दलों की कथनी और करनी में अंतर, महिलाओं को टिकट देने में रुचि नहीं दिखा रहीं पार्टियां

जनसंघ की लंबी पारी: विधानसभा के पहले चुनाव से पहले वर्ष 1951 में जिला शाखा के साथ जनसंघ का उदय हुआ। उस समय इसके सदस्यों की संख्या मात्र 800 थी। वर्ष 1964 में सदस्य संख्या पांच हजार हो गई। जनसंघ को शुरुआती चार चुनावों में बहुत कम वोट मिले। पहले चुनाव में मात्र 1.1 प्रतिशत वोट तथा 1964 में हुए चौथे चुनाव में 3.2 प्रतिशत वोट ही जनसंघ को मिले। कम वोट मिलने पर भी जनसंघ ने चुनावी रण से मुंह नहीं मोड़ा। वर्ष 1980 के चुनाव से पहले जनसंघ का नया चेहरा भारतीय जनता पार्टी के रूप में जनता के सामने आया। बाद के चुनावों में भाजपा सरकार बनाने में भी सफल रही। वर्तमान में प्रदेश में कांग्रेस की प्रतिद्वन्द्वी पार्टी कोई है तो वह भाजपा ही है।

कम्युनिस्ट पार्टी बढ़ी नहीं: श्रीगंगानगर जिले में माकपा और भाकपा दोनों की राजनीतिक विचारधारा साथ-साथ चली। कम्युनिस्ट पार्टी ने सरकार विरोधी कई आंदोलनों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विधानसभा के प्रथम चुनाव में कम्युनिस्ट पार्टी ने हिस्सा नहीं लिया। वर्ष 1957 के चुनाव में पार्टी ने एक सीट पर चुनाव लड़ा तो वोट मिले 0.90 प्रतिशत, लेकिन 1962 के चुनाव ने पार्टी के दो प्रत्याशी चुनावी रण में उतरे और दोनों विजयी रहे। कांग्रेस पार्टी का राजनीतिक संघर्ष अब भी जारी है। पार्टी सीटों का विस्तार करने में सफल नहीं हुई। इस बार के चुनाव में पार्टी कांग्रेस से भादरा और रायसिंहनगर सीट समझौते में मांग रही है।