
statue
महेन्द्र सिंह शेखावत
श्रीगंगानगर.
पोपा बाई का नाम सुनते ही चेहरे पर डेढ़ इंच मुस्कान तो जरूर दौड़ती है, लेकिन पोपाबाई कौन थी? के सवाल पर चेहरे की हवाईयां भी उड़ जाती हैं। विशेषकर सियायत में 'पोपाबाई का राज' नामक जुमला खूब चलता है। राजस्थान में तो गाहे-बगाहे इस जुमले का प्रयोग होता ही रहता है। खास तौर पर जहां अव्यवस्था हो, अराजकता हो या लगे कि कानून का राज नहीं है। मतलब जहां किसी तरह की कोई व्यवस्था नजर नहीं आए, उसको 'पोपाबाई का राज' कहा जाता है। इस जुमले को कमोबेश हर कोई चटखारे के साथ बोलता है। पोपा बाई कौन थी? कहां पैदा हुई? इसका राज कैसा था? इसका शासन कौन-से कालखंड में था? जैसे सवालों का संतोषजनक जवाब भले ही कहीं न मिले, लेकिन राजस्थान में एक जगह ऐसी भी है जहां पोपाबाई का छोटा सा मंदिर यानि की दरबार सजा है। यह जगह है श्रीगंगानगर जिले के सादुलशहर उपखंड का मुक्तिधाम। वैसे तो इस मुक्तिधाम में कई देवी-देवताओं की प्रतिमाएं लगी हैं, लेकिन पोपाबाई का दरबार चौंकाता है।
विधानसभा में भी छाया था 'पोपाबाई का राज'
27 जुलाई 2004 में तत्कालीन विधानसभा अध्यक्ष सुमित्रासिंह ने विधानसभा में कहा था कि पोपाबाई का राज मुद्दा इस सदन में एक बार नहीं, अनेक बार उठाया गया है। मैं आपसे एक निवेदन करना चाहती हूं कि क्या दो सौ माननीय सदस्यों में से कोई सदस्य ऐसा है कि जो जानता है कि पोपाबाई कौन थी? इस बार पर खूब चर्चा चली। करीब एक दर्जन सदस्यों ने पोपाबाई के राज पर टिप्पणियां कर सदन को खूब हंसाया। सबसे आखिर में तत्कालीन शिक्षा मंत्री घनश्याम तिवाड़ी पर सदन लगातार हंसता रहा जब उन्होंने विधानससभा अध्यक्ष से मुखातिब होते हुए कहा कि आप पुरस्कार दें तो वो बताएंगे कि पोपाबाई कौन थीं? लेकिन सवाल फिर भी कायम रहा कि आखिर पोपाबाई कौन थीं?
कथाओं व कहानियोंं में पोपाबाई का जिक्र
बुजुर्गों के अनुसार कार्तिक माह में महिलाएं पोपाबाई की कथा सुनती हैं। संभवत: सादुलशहर में यह प्रतिमा उस कथा से प्रेरित होकर लगाई गई है। कथा में बताया गया है कि किस तरह पोपाबाई की मृत्य हो जाती है और फिर उसको किस तरह स्वर्ग का राज मिलता है। मृत्यु के बाद एक दंपती जब स्वर्ग पहुंचता है तो वहां का दरवाजा बंद मिलता है। तब धर्मराज प्रकट होते हैं और कहते हैं कि यहां 'पोपाबाई का राज' है। इसके बाद दंपती को मृत्युलोक जाकर सात दिन तक आठ खोपरा में राई भरकर ,पांच कपड़ा ऊपर रखकर कहानी सुनने और उद्यापन करने को कहते हैं। कथा के आखिर में, राज है पोपा बाई का, लेखा लेगी राई राई का। बोलो पोपा बाई की जय। कहा जाता है। वैसे पोपाबाई को पात्र मानकर कहानियां भी लिखी गई हैं।
Published on:
24 Apr 2018 10:35 pm
बड़ी खबरें
View Allश्री गंगानगर
राजस्थान न्यूज़
ट्रेंडिंग
