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दस दिन बाद भी बरसाती पानी निकासी नहीं

-सड़ांध मारने लगे पानी पर जमी -काई मच्छरों की शरणस्थली बनी

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दस दिन बाद भी बरसाती पानी निकासी नहीं

श्रीगंगानगर.

इलाके के लाभार्थियों को शनिवार को जयपुर में आए पीएम मोदी ने विकास का मुद्दा उठाकर संबोधित किया, लेकिन जिला मुख्यालय पर हालात देखकर लगता है कि विकास गंगानगर आते-आते कहीं गायब हो गया है।


बरसात के दस दिनों बाद भी हालात में सुधार नहीं आया है। नई धानमंडी के पास एकत्रित बरसाती पानी ने जलाशय का रूप ले लिया है। इसी पानी में प्रेमनगर और सेतिया कॉलोनी के अलावा नई धानमंडी का गंदा पानी डाला जा रहा है, इससे यहां पानी पर काई जम चुकी है और यह मच्छरों की शरणस्थली बन चुकी है। जवाहरनगर स्थित इंदिरा वाटिका से थोड़ी दूर मीरा मार्ग पर बरसाती पानी दस दिनों से ठहरा हुआ है जो सड़ंाध मारने लगा है।

वहीं सुखाडिय़ा पार्क में प्रवेश करते ही ऐसा लगता है कि जैसे किसी गड्ढा क्षेत्र मे आ गए हो। इधर, सुखाडिय़ा सर्कि ल के पास रामलीला मैदान में बरसात के बाद पानी पसरा पड़ा है। नगर परिषद प्रशासन ने इस इलाके से पानी को तो इस मैदान में डलवा दिया, लेकिन अब तक इस पानी का निस्तारण नहीं हो पाया है। सड़कों में पानी भरने से शहरवासियों को खासी परेशानी हो रही है। दुर्घटनाएं हो रही हैं। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

नगर परिषद प्रशासन चुप क्यों?
शहर में बरसात हुए दस दिन से अधिक हो चुके हैं, इसके बावजूद अभी तक कई जगह सड़कों के किनारे बरसाती पानी खड़ा है जो सड़ंाध मारने लगा है। पानी पर काली परतें बता रही हैं कि नगर परिषद के अधिकारियों के आदेश उनके अधीनस्थ कार्मिकों पर बेअसर हैं। जहां-जहां सड़कों की हालत खराब है, वहां पैचवर्क की बजाय झाडृ से बुहारी निकलवाने के लिए कलक्टर या कोर्ट के आदेश की बाट जोहनी पड़ती है। रही कही कसर नगर परिषद के माननीय सदस्यों ने पूरी कर दी है।

ये अपने वार्डों में ठेके के टेण्डर कराने के लिए आयुक्त कक्ष के बाहर धरना लगाने में तो आगे रहते हैं, लेकिन शहर के मुख्य मार्गो पर बरसात के बाद उडऩे वाली धूल से लोगों को निजात दिलाने के लिए इन्होंने कभी प्रयास नहीं किए। यही वजह है कि जगह-जगह इतने खड्ढे हो चुके हैं कि ऐसा लग ही नहीं रहा है कि यह श्रीगंगानगर कभी स्मार्ट सिटी बन पाएगा। सीवर प्रभावित इलाके को पाकिस्तान का हिस्सा मानकर भुला दिया गया है।

इस एरिया को नगर परिषद और नगर विकास न्यास दोनों अपने क्षेत्राधिकार से बाहर होने की बात कह रहे हैं, जबकि सड़कें और वहां बसने वाले लोग तो शहर के हैं। विधानसभा चुनाव और निकाय चुनाव में वोट लेने के लिए जिम्मेदार जन प्रतिनिधि मिन्नतें निकालने के लिए संकोच नहीं करते, लेकिन जब उन्हीं के वोटर समस्याओं से जूझते हैं, तब ये जन प्रतिनिधि एकाएक गायब हो जाते हैं।