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आप मालिक नहीं, सिर्फ उपासक हैं…महाकाल मंदिर विस्तार में तकिया मस्जिद की आपत्ति पर SC

Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने उज्जैन के महाकाल मंदिर के विस्तार से जुड़ी तकिया मस्जिद की उस याचिका को खारिज कर दिया, जिसमें महाकालेश्वर मंदिर के विस्तार में भूमि अधिग्रहण को चुनौती दी गई थी।

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Supreme Court dismissed petition filed Takiya Masjid expansion of Ujjain's Mahakal Temple

तकिया मस्जिद की याचिका पर SC की फटकार

Supreme Court: देश की सर्वोच्च अदालत ने मध्य प्रदेश के उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर परिसर के विस्तार से जुड़ी महाकाल लोक फेज-2 परियोजना के लिए तकिया मस्जिद की भूमि अधिग्रहण को चुनौती देने वाली याचिका खारिज कर दी। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता उस भूमि का मालिक नहीं, बल्कि केवल एक उपासक (भक्त) है। इसलिए उसे भूमि अधिग्रहण की वैधता को चुनौती देने का कोई कानूनी अधिकार (लोकस स्टैंडी) नहीं है। यह फैसला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और न्यायमूर्ति संदीप मेहता की पीठ ने मोहम्मद तैय्यब बनाम शहरी प्रशासन एवं विकास विभाग मामले में सुनाया। अदालत के इस निर्णय के साथ ही महाकाल लोक फेज-2 परियोजना के लिए भूमि अधिग्रहण को अंतिम कानूनी मंजूरी मिल गई है।

अदालत ने क्या कहा?

आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान पाया कि याचिका में भूमि अधिग्रहण की अधिसूचनाओं को सीधे तौर पर चुनौती नहीं दी गई है। याचिकाकर्ता की आपत्ति केवल मुआवजे की राशि और प्रक्रिया तक सीमित थी। ऐसे मामलों में भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन में उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 के तहत वैकल्पिक वैधानिक उपाय पहले से उपलब्ध हैं। पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता हूजेफा अहमदी से कहा, “मूल प्रश्न वही है। अधिग्रहण को चुनौती नहीं दी गई है, केवल अवॉर्ड (मुआवजे) को चुनौती दी गई है।” अदालत ने यह भी दोहराया कि चूंकि याचिकाकर्ता भूमि का स्वामी या टाइटल-होल्डर नहीं है, बल्कि केवल उपासक है, इसलिए उसे अधिग्रहण की वैधता पर सवाल उठाने का अधिकार नहीं है।

याचिकाकर्ता की दलीलें

बार एंड बेंच की रिपोर्ट की मानें तो याचिका दायर करने वाले की तरफ से तर्क दिया गया था कि 2013 के भूमि अधिग्रहण कानून के तहत सामाजिक प्रभाव आकलन (Social Impact Assessment) अनिवार्य है, जिसे इस मामले में नहीं कराया गया। इसके अलावा यह भी कहा गया कि हाई कोर्ट ने यह मानकर फैसला दिया कि अधिग्रहण की प्रक्रिया पहले ही अंतिम रूप ले चुकी है, जबकि वास्तव में ऐसा नहीं था। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने इन दलीलों को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और कहा कि मुआवजे से जुड़े विवादों के लिए कानून में अलग से प्रक्रिया और मंच उपलब्ध हैं।

पहले भी खारिज हो चुकी हैं याचिकाएं

यह कोई पहली बार नहीं है, इससे पहले सुप्रीम कोर्ट तकिया मस्जिद के ध्वस्तीकरण को चुनौती देने वाली एक अन्य याचिका खारिज कर चुका है। उस मामले में अदालत ने राज्य सरकार के इस रुख को सही ठहराया था कि भूमि पहले ही अधिग्रहित हो चुकी है और मुआवजा भी दिया जा चुका है। अदालत ने यह भी कहा था कि किसी भी आपत्ति के लिए 2013 के कानून के तहत वैधानिक रास्ते मौजूद हैं। इससे पहले 11 जनवरी को मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने भी महाकाल लोक फेज-2 परियोजना से संबंधित भूमि के मुआवजे को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं खारिज कर दी थीं। हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया था कि याचिकाकर्ता न तो रिकॉर्डेड भू-स्वामी हैं और न ही टाइटल-होल्डर। ऐसे में वे अधिग्रहण को चुनौती नहीं दे सकते, बल्कि केवल धारा 64 के तहत मुआवजे को लेकर संदर्भ याचिका दाखिल कर सकते हैं।

याचिका में दावा और आगे क्या?

याचिका में दावा किया गया था कि अधिग्रहित भूमि वर्ष 1985 से मध्य प्रदेश वक्फ बोर्ड में वक्फ संपत्ति के रूप में दर्ज है और 11 जनवरी 2025 को तकिया मस्जिद को गिरा दिया गया। इतना ही नहीं यह भी दावा किया गया कि महाकाल मंदिर परिसर के लिए पार्किंग और अन्य सुविधाओं के विस्तार हेतु भूमि लेना ‘सार्वजनिक उद्देश्य’ की परिभाषा में नहीं आता। याचिका में यह आरोप भी लगाया गया कि इस अधिग्रहण से संविधान के अनुच्छेद 14, 25, 26 और 300-A का उल्लंघन हुआ है। साथ ही वक्फ अधिनियम की धारा 91 के उल्लंघन और आपात शक्तियों के दुरुपयोग का आरोप भी लगाया गया। सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद महाकाल लोक फेज-2 परियोजना से जुड़े सभी प्रमुख कानूनी अवरोध समाप्त हो गए हैं। यह परियोजना उज्जैन में महाकालेश्वर मंदिर परिसर और आसपास के सार्वजनिक स्थलों के बड़े पैमाने पर पुनर्विकास का हिस्सा है। यह याचिका अधिवक्ता वैभव चौधरी के माध्यम से दाखिल की गई थी।