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सुकमा के आदिवासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र, जहां श्रीराम ने भू-देवी की पूजा कर, महाकाल की स्थापना कर की थी आराधना

छत्तीसगढ में भगवान श्रीराम के वनगमन के अनुसार कुुंटुमसर से सुकमा होते हुए शबरी नदी के तट पर स्थित रामाराम पहुंचे थे।

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सुकमा के आदिवासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र, जहां श्रीराम ने भू-देवी की पूजा कर, महाकाल की स्थापना कर की थी आराधना

सुकमा के आदिवासियों की आस्था का प्रमुख केंद्र, जहां श्रीराम ने भू-देवी की पूजा कर, महाकाल की स्थापना कर की थी आराधना

सुकमा. जहां भगवान राम ने भू-देवी की आराधना की थी वहां आज प्रतिवर्ष की भांति भव्य मेला का आयोजन हो रहा है। इसमें आसपास के ग्रामीण सहित पड़ोसी राज्य ओडिसा, आंध्रप्रदेश, तेलंगाना के लोग मेले में शामिल होते है। रामाराम मेला लगने के बाद दूसरे दिन बुधवार को सुकमा राजवाड़ा में मेला आयोजन किया जाएगा। मान्यता के अनुसार त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने अपने वनवास काल के दौरान दक्षिण की ओर बढ़ते समय उन्होंने रामाराम जहां वर्तमान में मंदिर है, वहां भू-देवी की आराधना की थी।

आदिवासी को आस्था का प्रमुख केन्द्र
छत्तीसगढ में भगवान श्रीराम के वनगमन के अनुसार कुुंटुमसर से सुकमा होते हुए शबरी नदी के तट पर स्थित रामाराम पहुंचे। यहां पर प्रतिवर्ष फरवरी माह में लगाने वाले मेले स्थानीय देवी.देवताओं के साथ श्रीराम की पूजा किया जाता है। वहीं इसके बाद श्रीराम इंजरम पहुंचाकर भगवान शिव की स्थापना कर महाकाल का मनाया था। किसके भग्नावशेष आज भी यहां के है जो इसके प्रमाण क्षत-विक्षत स्थिति में पेड़ की नीचे मुर्तियों रखी हुई। जहां इंजरम के ग्रामीण पूजा पाठ करते है।

पहले आते थे विदेशी सैलानी
इस मेले का लुत्फ उठाने पहले विदेशी पर्यटक यहां पहुंचा करते है लेकिन नक्सल वारदातों के कारण विदेशी पर्यटकों ने दूरी बना ली है। आदिकाल से लगते आ रही मेला : यहां पर आदिकाल से मेले के आयोजन किया करते आ रहे है इसके बारे में जानकारी बताए कि बस्तर के इतिहास के अनुसार 608 साल हो रहे जिसके मेला का आयोजन होते आ रहा है। वहीं सुकमा जमीदार परिवार द्वारा रियासत काल से यहां पर देवी-देवताओं की पूजा करते आ रहे है। यहां पर प्रतिवर्ष फरवरी में भव्य मेला का आयोजन किया जाता है। इसमें बडी संख्या में क्षेत्र के श्रद्वालू मंदिर पहुंचकर माता के दर्शन करते है।