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नन्हे मासूम अनमय के जीवन की कीमत 16 करोड़, जनता ने अब तक इकट्ठे कर दिए 40 लाख

UP News: उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में एक नन्हे मासूम को बचाने के लिए 16 करोड़ की कीमत लगी। अनमय की जान के लिए जनता ने अब तक 40 लाख एकत्रित कर दिए।

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16 crores worth of little innocent Anmay's life public collected 40 lakhs for Treatment

16 crores worth of little innocent Anmay's life public collected 40 lakhs for Treatment

एक नन्हा मासूम, जो अभी इस दुनिया से अंजान है। उसकी जान की कीमत 16 करोड़ रुपए। आपके जहन में भी एक सवाल होगा कि आखिर ऐसा क्या है कि तीन महीने के बच्चे की जान की कीमत इतनी बड़ी है। दरअसल, सौरमऊ निवासी सुमित सिंह बताते हैं कि जब बेटा तीन माह का था तो उसके हाथ और पैर में हरकतें कम दिखने लगीं। गर्दन का संतुलन भी बन पाना मुश्किल होने लगा। बच्चे को किंग जार्ज मेडिकल कालेज, लखनऊ में दिखाना शुरू किया। दो-तीन महीने तक इलाज कराने के बाद उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं हुआ। इसके बाद नई दिल्ली के सर गंगा राम हास्पिटल के डाक्टरों को दिखाया। वहां के चिकित्सकों ने लक्षणों के आधार पर टेस्ट कराया। इस टेस्ट की रिपोर्ट 29 जुलाई को मिलने पर पता चला कि अनमय को स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-वन नामक बीमारी है। डाक्टरों ने बताया कि इस बीमारी बीमारी से ग्रसित बच्चा दो साल से ज्यादा जीवित नहीं रह पाता। इलाज में सिर्फ एक इंजेक्शन कारगर है। इसे नावार्टिस कंपनी बनाती है। विदेश में मिलने वाले इस इंजेक्शन की कीमत 16 करोड़ रुपये है।

इंटरनेट की दुनिया से इकत्रित हुए 40 लाख

नन्हें अनमय की जान बचाने को सैकड़ों हाथ आगे आए हैं। हर कोई उसे अपना मान इंटरनेट मीडिया के जरिए मदद की अपील कर रहा। इसी का नतीजा है कि कुछ ही दिनों में 40 लाख रुपये आ गए। अनमय की मां अंकिता सिंह ने खुद प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर सहायता की मांग की है। जिलाधिकारी ने मुख्यमंत्री विवेकाधीन कोष से 16 करोड़ रुपये की सहायता दिलाने के लिए मुख्यमंत्री को अपनी रिपोर्ट भेजी है।

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सोशल मीडिया से पता चली दुखभरी कहानी

इतना महंगा इंजेक्शन सुनकर परिवारजन के होश उड़ गए। तब बेबस पिता ने बच्चे को बचाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया। सुमित बताते हैं कि उन्होंने सबसे पहले इंटरनेट मीडिया पर अपनी दुखभरी कहानी साझा की। बच्चे का जीवन बचाने के लिए मदद की गुहार लगाई। उसके बाद तो एक बड़ा अभियान ही शुरू हो गया। कई स्वयं सेवी संस्थाओं ने पहल करते हुए इस अभियान को सफल बनाने के लिए दिन-रात एक कर दी। इसका परिणाम यह रहा कि शुक्रवार तक खाते में चालीस लाख रुपये इकट्ठा हो चुके हैं।

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