
इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग का कार्य पूरा, सिग्नल और पटरियों को नियंत्रित करने में बढ़ेगी विश्वसनीयता
ट्रेन चलाने के लिए अंग्रेजों के जमाने से चली आ रही पुरानी व्यवस्था को अब धीरे-धीरे आधुनिक किया जा रहा है। रेलवे के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि पहले ट्रेनें रूट रिले इंटरलॉकिंग एक पुरानी, लेकिन परखी हुई तकनीक पर चलती थी। जबकि इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली अधिक आधुनिक और विश्वसनीय है। भारतीय रेलवे में धीरे-धीरे रूट रिले इंटरलॉकिंग को इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली में बदल रहा है। उन्होंने बताया कि रूट रिले इंटरलॉकिंग और इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली भारतीय रेलवे में सिग्नल और पटरियों को नियंत्रित करने के प्रमुख दो तरीके हैं, लेकिन इनमें कुछ प्रमुख अंतर भी हैं।
कार्यप्रणाली में रूट रिले इंटरलॉकिंग पारंपरिक प्रणाली है, जो विद्युत रिले पर आधारित होती है। ये रिले धातु के संपर्कों को खोलने और बंद करने का काम करते हैं, जो सिग्नल और प्वाइंट्स को नियंत्रित करने वाले सर्किट को पूरा या तोड़ते हैं। वहीं इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली आधुनिक है जो माइक्रोप्रोसेसर और सॉफ्टवेयर पर आधारित होती है। रूट रिले इंटरलॉकिंग चलते हुए पुर्जों के कारण समय के साथ खराब होने की संभावना ज्यादा होती है। वहीं इलेक्ट्रॉनिक इंटरलॉकिंग प्रणाली कम चलते हुए पुर्जों के कारण ज्यादा विश्वसनीय मानी जाती है। उन्होंने बताया कि अब सूरत स्टेशन से गुजरने वाली ट्रेनों के मूवमेंट में नहीं के बराबर भूल और कार्य तेजी से विश्वसनीयता के साथ पूरा किया जा सकेगा।
अप व डाउन लाइन से ट्रेन परिचालन शुरू
इलेक्ट्रोनिक इंटरलॉकिंग का कार्य पूरा होने के पहले डाउन लाइन पर पहली ट्रेन 12432 हजरत निजामुद्दीन-तिरुवनंतपुरम राजधानी एक्सप्रेस और अप लाइन पर 12490 दादर-बीकानेर एक्सप्रेस सूरत स्टेशन पहुंची। ब्लॉक के दौरान पहले ही ट्रेनों के स्टेशन बदल दिए गए थे। वहीं, ब्लॉक के दौरान सूरत से गुजरने वाली ट्रेनें 20 से 25 मिनट की देरी से चली। अब ब्लॉक पूरा होने के बाद पहले की तरह ट्रेनों का परिचालन शुरू हो गया है।
Published on:
08 Apr 2024 09:22 pm
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