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एनजीटी के दबाव के बावजूद वेस्ट डिस्पोजल पर गंभीर नहीं

आठ महीने से स्टैंडिंग में लंबित है इंडस्ट्रियल वेस्ट के निस्तारण का प्रस्ताव

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सूरत

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Vineet Sharma

Aug 08, 2018

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एनजीटी के दबाव के बावजूद वेस्ट डिस्पोजल पर गंभीर नहीं

विनीत शर्मा

सूरत. खजोद वेस्ट डंपिंग साइट मामले के बाद नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने भले वेस्ट डिस्पोजल के वर्कप्लान पर दबाव बनाया है, लेकिन मनपा प्रशासन वेस्ट के निस्तारण को लेकर गंभीर नहीं दिखता। इंडस्ट्रियल वेस्ट के निस्तारण का प्रस्ताव मनपा की स्थाई समिति में बीते आठ महीने से अटका पड़ा है, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव में इस पर निर्णय नहीं किया गया। इस मामले पर आधिकारिक रूप से मनपा अधिकारी बात करने को भी तैयार नहीं हैं।

खजोद का मामला एनजीटी में जाने के बाद से मनपा प्रशासन वेस्ट के डिस्पोजल को लेकर मुश्किल दौर से गुजर रही है। मनपा की लापरवाहियों पर नाराजगी जताते हुए एनजीटी ने मनपा पर जुर्माना भी ठोका था। एनजीटी ने मनपा प्रशासन को बार-बार वेस्ट के वैज्ञानिक डिस्पोजल पर हिदायतों की लंबी फेहरिस्त जारी की हुई है। इसके बावजूद मनपा डिस्पोजल को लेकर गंभीरता बरतने को तैयार नहीं। यही वजह है कि इंडस्ट्रियल वेस्ट के निस्तारण के प्रस्ताव पर स्थाई समिति आठ महीने में भी फैसला नहीं कर पाई।

यह था प्रस्ताव

मनपा प्रशासन ने इंडस्ट्रियल वेस्ट के निस्तारण के लिए ऐसी एजेंसियों से प्रस्ताव मंगाए थे, जो सूरत के आसपास नॉन हैजार्डस इंडस्ट्रियल वेस्ट का निस्तारण कर सकें। इसके लिए संबंधित एजेंसी को डोर टु डोर गार्बेज कलेक्शन की तर्ज पर एरियावाइज विभिन्न कंपनियों के पास जाकर इंडस्ट्रियल वेस्ट कलेक्ट करना था। इसका चार्ज संबंधित एजेंसी को कचरा देने वाली कंपनी से ही वसूल करना था। यह प्रस्ताव मनपा प्रशासन ने करीब आठ माह पहले ही स्थाई समिति को भेज दिया था, लेकिन इस पर अब तक कोई फैसला नहीं किया गया है।

राजनीतिक दबाव बड़ी वजह

जानकारों की मानें तो इस प्रस्ताव के अटकने की वजह स्थानीय राजनीति है। शहर भाजपा के एक कद्दावर नेता के दखल के कारण इस प्रस्ताव पर निर्णय नहीं हो पाया। उनका तर्क था कि उद्योगों पर अतिरिक्त दबाव नहीं पडऩा चाहिए। उद्यमी पहले से ही दबाव में हैं और मनपा प्रशासन को विभिन्न सुविधाओं के लिए भुगतान कर रहे हैं। जानकारों के मुताबिक स्थाई समिति इस दबाव के आगे झुक गई और प्रस्ताव को फाइलों में दफन कर दिया गया। प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक इस प्रस्ताव का विरोध कर रहे भाजपा नेता ने पार्टी की संकलन बैठक में सुझाव दिया कि किसी एजेंसी को काम देने के बजाय मनपा प्रशासन खुद ही इंडस्ट्रियल कचरे का निस्तारण करे। इसके लिए बड़े निवेश की जरूरत थी, मनपा प्रशासन जिसके लिए तैयार नहीं था। न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी की तर्ज पर इस प्रस्ताव पर पेंच फंसा दिया गया।

यह हो सकता था विकल्प

जानकारों की मानें तो उद्योगों के प्रतिनिधि और संबंधित एजेंसी को एक साथ बिठाकर मामले का विकल्प खोजा जा सकता था। इसमें जहां थोड़ा दबाव उद्योगों पर पड़ता तो एजेंसी को भी भाव में कमी के लिए कहा जा सकता था। मनपा पदाधिकारी भी इस प्रस्ताव पर जाना चाहते थे, लेकिन ऐसा नहीं होने दिया गया।

नए सिरे से हों प्रयास

प्रदूषण की समस्या जिस तरह से मुंह बांए खड़ी है, लोग चाहते हैं कि औद्योगिक कचरे के निस्तारण के लिए कोशिशें जारी रहनी चाहिए। सत्ता से जुड़े लोगों का मानना है कि इस दिशा में नए सिरे से प्रयास शुरू होने चाहिए। एनजीटी भी भविष्य की जरूरतों को देखते हुए अभी से प्लानिंग की हिदायत दे रही है। जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के मुताबिक अभी चूके तो आने वाला वक्त मनपा प्रशासन के लिए मुश्किल भरा हो सकता है।