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प्रभु श्रीराम के 5 महत्वपूर्ण मंदिर, हर मंदिर का है अपना खास महत्व

- भगवान विष्णु का 7वें अवतार भगवान राम

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Deepesh Tiwari

Oct 22, 2022

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श्रीराम को सनातन हिन्दू धर्म में भगवान विष्णु का 7वां अवतार माना गया है। वहीं जहां एक ओर भगवान शंकर भी राम का ध्यान करते हैं, तो वहीं भगवान शंकर के ही अंश से बने हनुमानजी तो प्रभु श्रीराम के सबसे बड़े भक्त हैं और वे सदैव अपने प्रभु श्रीराम का ही ध्यान करते रहते हैं। मान्यता यह है कि राम के बगैर भवसागर पार होना असंभव है।

राम भारत की आत्मा हैं, ऐसे में अपना शासन स्थापित करने व सनातनियों को कमजोर या नीचा दिखाने के लिए मध्यकाल में आक्रांताओं ने प्रभु श्रीराम और हनुमानजी से जुड़े मंदिर और स्मारकों को ढूंढ-ढूंढकर उनका अस्तित्व मिटाया।

ऐसे में आज हम आपके लिए भगवान श्रीराम से जुड़े महत्वपूर्ण स्थानो के बारे में बताने जा रहे हैं। जानें प्रभु राम के 5 प्रमुख मंदिर...

1- अयोध्या में राम! राम के एक ऐतिहासिक महापुरुष होने के पर्याप्त प्रमाण हैं। शोध के अनुसार पता चलता है कि भगवान राम का जन्म आज से करीब 7128 वर्ष पूर्व अर्थात 5114 ईस्वी पूर्व को उत्तरप्रदेश के अयोध्या नगर में हुआ था।
अयोध्या हिन्दुओं के प्राचीन और 7 पवित्र तीर्थस्थलों में से एक है। सरयू नदी के तट पर बसे इस नगर को रामायण के अनुसार मनु ने बसाया था। मध्यकाल में राम जन्मस्थान पर बने भव्य मंदिर को आक्रांता बाबर ने तोड़कर वहां एक मस्जिद स्थापित कर दी जिस पर विवाद रहा।

अयोध्या के दर्शनीय स्थल : अयोध्या घाटों और मंदिरों की प्रसिद्ध नगरी है। सरयू नदी यहां से होकर बहती है। सरयू नदी के किनारे 14 प्रमुख घाट हैं। इनमें गुप्तद्वार घाट, कैकेयी घाट, कौशल्या घाट, पापमोचन घाट, लक्ष्मण घाट आदि विशेष हैं।

2- राजा राम मंदिर, ओरछा, मध्यप्रदेश:- श्री राम राजा सरकार का महत्व आपको अयोध्या के बाद ओरछा में दिखाई देता है यहां लोग भगवान राम को अपना राजा मानते है यहां पर राम हर धर्म के राजा हैं। दूर-दूर से लोग इस स्थल पर राम राजा के दर्शन करने आते है इस मन्दिर का इतिहास शुरू होता है मधुकर शाह जी के कार्यकाल स,े जो की यहां के महाराजा थे और कृष्ण भक्त थे और महारानी जो कि ग्वालियर जिले से थी वो एक राम भक्त थी, महारानी का नाम कुंवर गणेश था।

एक दिन मधुकर शाह और कुंवर गणेश बातें कर रहे थे और बातों की बातों में दोनों अपने अपने ईष्ट देव को लेकर झगड़ा करने लगे और महाराजा मधुकर शाह ने महारानी से बोल दिया कि यदि वो एक सच्ची राम भक्त है, तो जाएं अयोध्या और रामजी को यहां ओरछा ले आएं। अब महारानी जी ने भी यह बात मान ली और बोली की या तो अब मैं अपने ईष्ट प्रभु राम को अयोध्या से ओरछा लाऊंगी या फिर अयोध्या में ही अपने प्राण त्याग दूंगी।

फिर महारानी कुंवर गणेश आ गई अयोध्या और सरयू नदी के किनारे शुरू कर दो अपने प्रभु राम जी की पूजा 7 दिन हो चुके थे ( कही कही 21 दिन बताया जाता है ) महारानी जी को श्रीराम ने दर्शन नहीं दिए अब महारानी जी हताश होकर अपने प्राण त्यागने का निर्णय लेती है और सरयू में छलांग लगा देती है। तभी मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम एक बालक के रूप में वहां आ जाते हैं ( कुछ लोगों का कहना हैं की सरयू में जब महारानी से छलांग लगाईं थी तो जलधारा में ही भगवान राम महारानी की गोद में बैठ गए थे )।
अब महारानी बालक रूप में आये श्रीराम से ओरछा चलने का निवेदन करती हं,ै श्रीराम मान भी जाते हैं लेकिन तीन शर्तो के साथ अब महारानी कुंवर गणेश भगवान राम से उनकी शर्तें पूछती हैं, ये थीं शर्तें...

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पहली शर्त : जहां हम जा रहे हैं, वहां के सिर्फ हम ही राजा होंगे कोई दूसरा नहीं।
दूसरी शर्त : अयोध्या से ओरछा तक आपके साथ हम पैदल जाएंगे वो भी पुण्य नक्षत्र में।
तीसरी शर्त : यदि हम कहीं पर भी बैठ गए तो वहां से उठेंगे नहीं।

महारानी कुंवर गणेश ने श्रीराम की तीनो शर्तें मान ली, फिर श्रीराम एक मूर्ति के रूप में महारानी की गोद में बैठ गए और महारानी पैदल ही ओरछा की तरफ चल दी और 8 महीने 28 दिन में वो ओरछा आ गई थी, यहां यह भी कहा जाता है महारनी के ओरछा पहुचने से पहले महाराजा मधुकर शाह को सपना आया था कि महारानी भगवान राम को लेकर आ रही है। तो मधुकर शाह ने भगवान राम के लिए मन्दिर बनवाना शुरू कर दिया जिसे चतुर्भुज मन्दिर कहते हैं।

लेकिन यह चतुर्भुज मन्दिर पूर्णता पर पहुंच पाता, उससे पहले ही महारानी कुंवर गणेश जी श्रीराम को लेकर ओरछा आ गई और श्रीराम को अपने महल की रसोई घर में थोड़े समय के लिए स्थापित कर दिया। फिर जब चतुर्भुज मंदिर बन गया तब उस मूर्ति को रसोई घर से उठाकर, इसे चतुर्भुज मंदिर में स्थापित किया जाना था, लेकिन श्रीराम की वह मूर्ति वहां से उठी ही नहीं। इसी को सभी ने भगवान राम का चमत्कार माना और उसी महल को मंदिर बना दिया इसी महलनुमा मंदिर में आज आपको श्री राम राजा दर्शन देते हैं, इस मंदिर को ही श्री राम राजा मन्दिर कहा जाता है।

3- त्रिप्रायर नदी के किनारे स्थित त्रिप्रायर श्रीराम मंदिर :- केरल का कोडुन्गल्लुर का प्रमुख धार्मिक स्थान है। यह त्रिप्रायर में स्थित है, जो कोडुन्गल्लुर शहर से लगभग 15 किलोमीटर और त्रिशूर से 25 किलोमीटर दूर स्थित है। भगवान विष्णु के 7वें अवतार भगवान श्रीराम की इस मंदिर में पूजा की जाती है।
इस मंदिर के बारे में कई लोकोक्तियां प्रचलित हैं। माना जाता है कि इस मंदिर में स्थापित मूर्ति यहां के स्थानीय मुखिया को समुद्र तट पर मिली थी। इस मूर्ति में भगवान ब्रह्मा, भगवान विष्णु और भगवान शिव के तत्व हैं अतः इसकी पूजा त्रिमूर्ति के रूप में की जाती है।मंदिर के परिसर में एक गर्भगृह और एक नमस्कार मंडपम है, जहां रामायण काल के चित्र हैं और नवग्रहों को दर्शाती हुई लकड़ी की नक्काशी और प्राचीन भित्तिचित्र हैं।
त्रिप्रायर श्रीराम मंदिर में पारंपरिक कलाओं जैसे कोट्टू (नाटक) का नियमित प्रदर्शन किया जाता है। यह मंदिर अरट्टूपुझा पूरम उत्सव के लिए प्रसिद्ध है।

4- रघुनाथ मंदिर :- भारत के जम्मू और कश्मीर के जम्मू शहर में यह राम मंदिर स्थित है, जो एक आकर्षक वास्तुकला का नमूना है। इस मंदिर को 1835 में महाराजा गुलाब सिंह ने बनवाना शुरू किया था जो महाराजा रणजीतसिंह के काल में पूर्ण हुआ। इस मंदिर में 7 ऐतिहासिक धार्मिक स्थल मौजूद हैं। मंदिर के भीतर की दीवारों पर तीन तरफ से सोने की परत चढ़ी हुई है। इसके अलावा मंदिर के चारों ओर कई मंदिर स्थित है जिनका सम्बन्ध रामायण काल के देवी-देवताओं से हैं।

5- श्रीसीतारामचंद्र स्वामी मंदिर (भद्राचलम):- यह मंदिर दक्षिण की अयोध्या’ के नाम से प्रसिद्ध है । भद्राचलन में वैसे तो कई मंदिर हैं लेकिन यहां का श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है जिसकी वजह से इस शहर को दक्षिण की अयोध्या के नाम से भी जाना जाता है।

गोदावरी नदी के किनारे बसे भद्राचलम शहर के श्री सीता रामचंद्र स्वामी मंदिर में आमतौर पर हर दिन करीब 5 हजार श्रद्धालु पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि अपने भक्त भद्र को आशीर्वाद देने के लिए खुद भगवान राम स्वर्ग से उतरकर नीचे आए थे। भगवान राम ने भद्र को आश्वासन दिया था कि वे इसी जगह पर अपने श्रद्धालुओं के बीच मौजूद रहेंगे। तभी से इस जगह का नाम भद्राचलम पड़ गया।

भद्राचलम से करीब 32 किलोमीटर दूर पर्णशाला नाम की एक जगह है। स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, भगवान राम ने अपने 14 वर्षों के वनवास का एक हिस्सा इसी जगह पर बिताया था और रावण ने इसी जगह से देवी सीता का अपहरण किया था। यहां आने वाले टूरिस्ट्स को रामायण काल से जुड़ी चीजें दिखाने के मकसद से पर्णशाला में देवी सीता के पैरों के निशान मौजूद हैं, स्वर्ण हिरण बनकर आए मारीछ की तस्वीर और भिक्षाटन के लिए सन्यासी बनकर आए रावण की भी तस्वीरें मौजूद हैं।